Thursday, December 26, 2024
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मायावती की BSP से ना मिला होता धोखा तो 12 और सीटें जीतते अखिलेश

नई दिल्ली- यूपी में बीजेपी (BJP) को रोकने के लिए मायावती (Mayawati) के साथ महागठबंधन की छटपटाहट सबसे ज्यादा समाजवादी पार्टी (SP) अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने ही दिखाई थी। वे बसपा (BSP) से तालमेल को लेकर इतने उतावले थे कि उन्होंने अपनी पार्टी के अंदर से उठ रहे विरोध के सुर को भी दबा दिया। उत्तर प्रदेश में मोदी-योगी को रोकने के लिए वे अपने बुजुर्ग पिता को निजी भावनाओं को दूर रखकर भी किसी तरह अपने फैसले के लिए तैयार करा लिया। लेकिन, अब जब चुनाव नतीजों का विश्लेषण हो रहा है, तो पता चल रहा है कि बबुआ तो बुआ के वोट ट्रांसफर कराने वाली बनी विशाल छवि के शिकार हो गए। दरअसल, बीएसपी (BSP) 12 सीटों पर अपना वोट समाजवादी पार्टी (SP) को ट्रांसफर ही नहीं करा सकी। इसमें से 4 सीटें अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav)के परिवार के सदस्यों की हैं।

परिवार के 4 सदस्यों को नहीं मिला बसपा का साथ– अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव (Dimple Yadav),चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव (Dharmendra) और अक्षय यादव ( Akshay Yadav) तीनों इसबार भी चुनाव जीत सकते थे, अगर मायावती (Mayawati)अपनी पार्टी का वोट इनको ट्रांसफर करा पातीं। अलबत्ता खुद अखिलेश यादव खुशनसीब रहे, जिन्हें आजमगढ़ में जरूर बसपा समर्थकों का भी वोट मिला। लेकिन, उनके पिता मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) ने जो ढाई दशकों के बाद मंच शेयर करने के लिए मायावती (Mayawati) का एहसान जताया था, उनपर माया के समर्थक मेहरबान नहीं हुए। जबकि, इसके लिए वे खुद मैनपुरी जाकर अपने समर्थकों से अपील कर आई थीं। वैसे इसके बावजूद बुजुर्ग मुलायम आखिरीबार लोकसभा पहुंचने में कामयाब हो गए। आखिरीबार इसलिए, क्योंकि उन्होंने इसे अपना अंतिम चुनाव बताया है।

बुआ का आशीर्वाद मिला, लेकिन बसपा का वोट नहीं- अगर हम अखिलेश यादव के परिवार को मिले सपा-बसपा के साझा वोट की तुलना 2014 के सपा और बसपा को मिले अलग-अलग वोट शेयर से करें तो साफ हो जाता है कि कैसे डिंपल यादव (Dimple Yadav)का भरी सभा में बुआ (सास) का पैर छूना भी काम नहीं आया। यहां वो सिर्फ 12,000 से कुछ ज्यादा वोटों यानी 1.08% वोट के अंतर से हार गईं। मसलन, 2014 में कन्नौज में उन्हें 43.89% वोट मिले थे और तब वहां बीएसपी के खाते में 11.46% वोट गया था। 2019 में अखिलेश की पत्नी को माया के आशीर्वाद के बावजूद भी सिर्फ 48.29% ही वोट मिला यानी लगता है कि बसपा का सारा वोट उन्हें नहीं मिला।

वोट शेयर में ऐसे लगा अखिलेश के परिवार को धक्का- जैसा कन्नौज में डिंपल यादव के साथ हुआ वैसे ही उनके देवरों धर्मेंद्र यादव और अक्षय यादव के साथ बदायूं और फिरोजाबाद में भी हुआ। बदायूं में धर्मेंद्र यादव को 2014 में 48.50% वोट मिले थे और वहां बीएसपी को 15.27% वोट मिले थे। इसबार बसपा के समर्थन के बावजूद वो सिर्फ 45.59% वोट ही ले पाए। फिरोजाबाद में अक्षय यादव को 2014 में 48.39% वोट मिले थे और बीएसपी का वोट शेयर भी 10.76% था। लेकिन, इसबार गठबंधन का साझा उम्मीदवार होने के बावजूद उन्हें सिर्फ 43.41% ही वोट मिल पाए। मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव तो चुनाव जीत गए, लेकिन उनके वोट शेयर को देखकर साफ लगता है कि बहनजी के वोटरों ने उनपर कोई एहसान नहीं किया है

और भी सीटों पर अखिलेश को मिली मायूसी- अखिलेश यादव के परिवार की 4 सीटों के अलावा कुछ और सीटों पर भी मायावती अपनी पार्टी का सारा वोट समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों को ट्रांसफर करवा पाने में नाकाम रही हैं। इनमें से एक कौशांबी लोकसभा सीट भी शामिल है। 2014 में यहां सपा उम्मीदवार को 31.72% वोट मिले थे और बसपा को 22.11%. लेकिन, 2019 में समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार सिर्फ 35.33% वोट ही ले पाया, जो कि पिछलीबार से महज 3.61% ज्यादा है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि बसपा अपना वोट सपा को ट्रांसफर कराने में नाकाम रही। वैसे इसी आधार पर यूपी की 80 सीटों के विश्लेषण से जो आंकड़ा समझ में आता है, वह 12 सीटों का है, जहां बीएसपी के वोट एसपी को ट्रांसफर नहीं हुए। ऊपर की सीटों के अलावा ये सीटें हैं- हरदोई, उन्नाव, झांसी, बांदा, इलाहाबाद, बहराइच और महाराजगंज।

अखिलेश भी नहीं कर पाए पूरी बबुआगिरी- जिन 38 सीटों पर बीएसपी (BSP) चुनाव लड़ी है वहां इसबार उसे कुल 19.26% वोट मिले हैं। इन्हीं सीटों पर 2014 में मायावती (Mayawati) की पार्टी को 13.41% और अखिलेश की पार्टी को 12.29% वोट मिले थे। इन दोनों के वोट शेयर को जोड़ने पर इसबार बीएसपी का वोट शेयर 25% से भी ज्यादा होना चाहिए था। यानी बुआ की पार्टी के लिए वोट ट्रांसफर करवाने में बबुआ भी पूरी तरह कामयाब नहीं हो सके। मसलन, धौरहरा सीट को ही ले लीजिए, यहां बीएसपी प्रत्याशी को 2014 एवं 2019 में क्रमश: 22.13% और 33.12% वोट मिले। यानी बसपा को इसबार 11% ज्यादा वोट तो मिले, लेकिन पिछलीबार समाजवादी पार्टी (SP) के उम्मीदवार को यहां 22.07% वोट मिले थे। इस आधार पर देखें तो सपा के कम से कम आधा वोटरों ने बहनजी की पार्टी से दूर रहने का फैसला किया। इस तरह का परिणाम 14 सीटों पर है। जैसे- गौतम बुद्ध नगर, अलीगढ़, फतेहपुर सीकरी, शाहजहांपुर, सीतापुर, मिश्रिख, मोहनलालगंज, अकबरपुर, फतेहपुर, कैसरगंज, बस्ती, संत कबीर नगर और देवरिया।

वोट ट्रांसफर हुए भी तो इसलिए नहीं मिला ज्यादा फायदा सभी सीटों के रिजल्ट को देखने के बाद ये समझ में आता है कि उत्तर प्रदेश की 45 से ज्यादा सीटों पर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के वोट एक-दूसरे में ट्रांसफर जरूर हुए। लेकिन, फिर भी इनकी कुल सीटें 15 तक आकर ठहर गईं। इसका कारण ये रहा कि महागठबंधन होने के चलते इनका साझा वोट शेयर तो इन सीटों पर जरूर बढ़ा, लेकिन बीजेपी का जनाधार इनकी तुलना में कहीं ज्यादा बढ़ गया और इसलिए उन सीटों पर ये भाजपा (BJP) से पिछड़ गए।


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