कभी विवाह् हुआ करता था । घर की बेटियां छत की मुडेर से झाँक कर अपने सपनो का शहजादा खोजने लगती थी और दूर से बाबाजी या दादाजी की नज़र जब परकोटो मे पड़ती थी, तब रात मे घर के बुजुर्गो को बिस्तर पर घर की इज्ज़त की चिंता सताने लगती थी। सभी रिश्तेदारों की शादियों मे दादाजी 5 दिन पहले यूं ही नही जाते थे। अपनी पोती के लिए कोई ह्ष्ठ पुष्ठ सुंदर काया और किसी खानदानी दामाद की तलाश मे जूते घिस जाते थे। शादी 5 दिवसीय होगी या 3 दिवसीय होगी कितने बाराती आयेंगे कितने जीजी होंगे कितने मामा होंगे कितने मौसा होंगे कितने सहबोला होंगे इनकी सूची बनती थी। बारात मे नौटंकी किसकी होगी? आतिशबाजी कहाँ की होगी? सुबह को नास्ते के बाद दोपहर का कच्चा खाना होगा। बड़े रिश्तेदारों को नजर मे क्या मिलेगा? घर के नौकरों के लिए क्या होगा? ननद की ननद के लिए क्या कपड़े होंगे? सास के समधौरे मे क्या जाएगा? सातो जातियों के कामगारों के लिए क्या उपहार होगा? बेटी के बटुए मे क्या रखा जाएगा? शादी से पहले की सबसे बड़ी दोस्त भाभी ससुराल जाने पर क्या क्या करना है और कैसे करना है, सब सिखाने लगती। कैसे शर्माना है। बात बात पर हल्ला कम मचाना, पहले पैर छूना। ज्यादा न-नुकुर न करना। कुछ दिन मे अब ठीक हो जाएगा आदि आदि। एक लम्बी फेरहिस्त है दो अलग अलग कोख से पैदा हुए अलग अलग परिवेश मे पले बड़े अल्हड़ को जननी और जनक बनाने के।
मगर अब जमाना बदल गया है। आज माँ बाप को पता भी नही होता है कि मेरा लाडला या लाडली उनके घर बसने की सोचने से पहले ही बड़े बड़े सपने बुन चुके होते है। सुप्रीम कोर्ट तक इन रिलेशनशिप पर मोहर लगा चुकी है। हो सकता है विवाह कोई इतिहास की घटना बन जाए। बहुत वर्षो बाद स्कूल की किताबो मे इसका पाठ हो कि पहले शादी भी होती थी इस समाज मे। अब खुल्ला छूट है। सब रिश्ते ख़त्म। न कोई भाई न कोई बहन न माँ ना बाप न दादा न पोती न कोई बुआ न कोई जीजा सोचो हम क्या जानवर नही हो जायेंगे। ईश्वर/अल्लाह/मूसा की इस प्रथ्वी पर सबसे सर्वश्रेष्ठ रचना इंसान जानवर होगा। कितना भयानक होगा वो परिद्रश्य !