Wednesday, December 25, 2024
spot_img
HomeFARRUKHABAD NEWSआधार भी बन सकता है चुनावी मुद्दा, एक अदद आधार में...

आधार भी बन सकता है चुनावी मुद्दा, एक अदद आधार में सुधार कराने को दर दर भटक रही जनता….

फर्रुखाबाद: 10 साल पहले जब कांग्रेस सरकार ने आधार योजना शुरू की थी तब किसने सोचा था कि सुबह तडके 6 बजे उठकर बिना खाए पिए आधार के लिए आपको बैंक की लाइन में लगना पड़ेगा| मगर 10 साल बाद आज जब सुप्रीम कोर्ट ने आधार के इस्तेमाल की सीमाए तय कर दी है तब भी बिना आधार के कोई काम तो हो नहीं रहा| और जबसे आधार बनाने के काम को प्राइवेट सेक्टर से हटा कर बैंक और सरकारी स्थानों पर किया गया तबसे जनता की मुश्किलें सातवे आसमान पर पहुच गयी है| हर रोज बैंको और पोस्ट के बाहर सुबह पांच बजे जनता लाइन लगाने को मजबूर है| 

 जनता की समस्यायों से कोई सरोकार नहीं-

आज हालात ये है कि सरकारी स्थानों या बैंको में चल रहे आधार सेंटर आधे से ज्यादा सिर्फ आंकड़ो में है| इनमे कोई काम नहीं होता| बैंको में आधे से ज्यादा मशीने केवल आन-ऑफ की जाती है ताकि ऑनलाइन मोनिटरिंग में सब कुछ ठीक दिखाई पड़े| पहले जहाँ प्राइवेट सेण्टर पर औसतन एक मशीन पर 60 से 100 लोगो का काम होता था वहीँ आज बैंक में ये औसत 20 ग्राहकों की सेवा से ऊपर नहीं है| ऊपर से केंद्र भी कम हो गए| जो केंद्र है वे ज्यादातर नगर और बड़े कस्बो में है| ग्रामीण इलाको में तो सेवा नगण्य हो चली है| ऐसे में कमजोर गरीब और ग्रामीण लोगो के लिए आधार बनबाना या सुधार करवाना किसी बड़ी जंग जीत लेने से कम नहीं रह गया है|

बिना आधार अब कुछ काम सम्भव नहीं, मोदी के लिए वोटो में रूकावट बन सकता है आधार से पीड़ित नागरिक

आज भी आधे से ज्यादा आधार में मोबाइल नंबर पंजीकृत नहीं है जिसके न होने पर आधार आज की तारीख में बेकार है| बिना मोबाइल नंबर के ओटीपी आना सम्भव नहीं और ऐसे में खोये आधार को निकाल पाना या मोबाइल बैंकिंग करना नामुमकिन है| बेटियों की शादी के बाद आधार में पता बदलवाना हो या जन्म तिथि में परिवर्तन, ऐसे ऐसे डॉक्यूमेंट की मांग बैंक द्वारा की जाती है जिन्हें उपलब्ध करना टेड़ी खीर साबित हो रहा है| कैम्पों में बने आधार कार्ड में जन्म तिथि के स्थान पर उम्र की संख्या लिख देने के कारण आधे से आधारों में नागरिक की जन्म तिथि 1 जनवरी है ऐसे में अनपढ़ो के लिए जन्म तिथि में बदलाव के लिए बड़ी मुश्किल हो रही है क्योकि उनके पास मीट्रिक पास होने का कोई प्रमाण पत्र ही नहीं| कुल मिलाकर यूआईडीएआई ने जनता के लिए आधार आसान करने की जगह मुश्किलों का पहाड़ खड़ा कर दिया| एक तो वास्तविक सेवा दे रहे आधार केंद्र नाम मात्र के है तो दूसरी तरफ आधार के लिए दस्ताबेज बहुत क्रिटिकल बाना दिए| जो काम कभी ग्राम पंचायत के प्रधान या ग्राम सचिव द्वारा प्रमाणित करने पर हो जाता था उस काम के लिए अब गजटेड ऑफिसर और एमपी एमएलए की मुहर और हस्ताक्षर चाहिए| अब आम गरीब आदमी के लिए इन दोनों तक पहुच बनाना और उनसे काम करा लेना कितना मुश्किल है इस बात को यूआईडीएआई के सीईओ अजय भूषण पाण्डेय समझते होते तो शायद आधार सर्विसेज की डिलीवरी के विकल्पों पर विचार कर चुके होते| आलीशान 5 सितारा वातानुकूलित दफ्तरों में बैठ जेठ की खुले आसमान की दुपहरी की धूप की तपिश और लपट के थपेड़ो को कैसे महसूस किया जा सकता है|

उदहारण के लिए ऊपर लगी तस्वीर को देखे, उत्तर प्रदेश फर्रुखाबाद जनपद के फतेहगढ़ नगर में आईसीआईसीआई  बैंक के बाहर सुबह सुबह 5 बजे से ही लाइन लगनी शुरू हो जाती है आधार से सम्बन्धित काम कराने वालो की| सुबह सुबह लाइन में लगने के बाद भी शाम 5 बजते बजते उसका काम हो पायेगा इस बात की गारंटी नहीं| महिलाये, बुजुर्ग, बच्चो इन सबको लाइन में लगना पड़ रहा है| आसमान में आग उगलते सूरज के नीचे बैंक के बाहर पूरे दिन खड़ा होना पड़ेगा| अन्दर एसी है मगर उसमे एक-एक ही जायेगा| बाकी सबको गार्ड बाहर खड़ा रखेगा| अब आधार केंद्र पर लागू नियम हवा है| बैंको की अपनी दिक्कत है उनके पास जगह ही नहीं है जनता को बैठाने की|

सरकारी व्यवस्था और बैंको के मुकाबले कारगर थे प्राइवेट सेण्टर-

एक और समस्या ये है कि बैंक में 20 से 25 ग्राहकों का ही काम एक दिन में किया जाता है| चूँकि बैंक में 11 बजे से 5 बजे के बीच ही काम हो सकता है| ऊपर से छुट्टियाँ| एक महीने ने बमुश्किल औसतन 22 दिन ही काम होता है| ऐसे प्राइवेट आधार केंद्र जो 365 दिन और औसतन 10 से 12 घंटे जनता को सेवाएं देते थे ज्यादा कारगर थे| जो कामकाजी जनता है वो अपना काम छुट्टियों में करा लेता था अब मुमकिन ही नहीं| और जरुरतमंदो के मुकाबले सेवा केंद्र कम होने और कम लोगो का काम हो पाने के कारण भ्रष्टाचार कम होने की जगह चरम पर है| चुनावी मौसम है, गर्मी बढ़ रही है, बैंको में बैठने की प्रयाप्त जगह नहीं है, आधार के लिए पूरे दिन लाइन में खड़ा होगा तो उसके मुख से सरकार के लिए फूल झड़ने की उम्मीद कैसे की जा सकती है| हो सकता है मतदान केंद्र पर पहुच उसे दर्द याद आ जाए और वो अपनी भड़ास ईवीएम मशीन का बटन दबा कर निकाल ले| ऐसे में आधार में बदली गयी व्यवस्था सरकार के लिए मुश्किल खड़ी करने वाली हो सकती है|

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments