आगरा:विश्व विख्यात तबला वादक एवं पदम पुरस्कार से अलंकृत उस्ताद जाकिर हुसैन ने मंगलवार को ताज महल का दीदार किया। सोमवार रात आगरा पहुंचे तबला वादक ने पत्नी एंटोनियो और पत्नी की दोस्त जूडी के साथ ताज का भ्रमण किया। ताज देखने के बाद उस्ताद जाकिर हुसैन आगरा किला और फिर फतेहपुर सीकरी के भ्रमण के लिए निकल गए।इसके बाद वे जयपुर के लिए रवाना हो जाएंगे।
उस्ताद जाकिर अपनी पत्नी के साथ सोमवार रात को ही आगरा आ गए थे। यहां होटल आइटीसी मुगल में रुके एवं मंगलवार को ताज के दीदार के लिए पहुंच गए। वे स्मारक पर करीब एक घंटे से अधिक समय से रुके और ताज की खूबसूरती में खोए रहे। ताज की सुंदरता को देख उनके लबों से बरबस ही वाह ताज निकल रहा था। इस दौरान पर्यटकों ने उन्हें पहचान लिया और उनके साथ सेल्फी लीं। गाइड से उन्होंने स्मारक की वास्तुकला, इतिहास आदि की जानकारी भी ली।
ताज के साये में जब थिरकी थीं तबले पर उस्ताद की उंगलियां
15 जनवरी 2014 का वो सुरमई दिन ताजनगरी के स्मृति पटल पर सदैव ही ताजा रहेगा। एक ओर मोहब्बत की इमारत और दूसरी और संगीत से बेपनाह मोहब्बत करने वाले उस्ताद। ताजमहल के साए में विख्यात तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन की ताज नेचर वॉक में प्रस्तुति हुई थी। उनकी कला के हुनर को देखकर उस वक्त सब हैरान रह गए, जब तबला राधे-कृष्ण बोलने लगा। तरह-तरह की आवाज में उस्ताद ने तबले पर थाप दी थी।
सर्दियों की उस शाम में खुले आसमान के नीचे सजी उस महफिल में उन्हें सुनने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचे थे। जब उनके तबले से नाचत नंद किशोर के स्वर निकले तो श्रोताओं के मुंह से निकल ही पड़ा, वाह उस्ताद वाह।
उस्ताद ने कभी तबले की थाप से भगवान शिव के रौद्र रूप की कहानी सुनाई थी तो कभी जंगल में शिकारी को देखकर भागते हिरन की रफ्तार। उन्होंने तबले की आवाज से रेल, तोप की आवाज और उसकी नाल की लम्बाई तक के स्वरों को लोगों को सुनाया था। नटवरी नृत्य को तो तबले और सारंगी ने जीवंत ही कर दिया था। संगीत की ध्वनि राधे-कृष्ण, राधे-कृष्ण जप रही थी।
पक्षियों की चहचाहट के बीच तबले पर जब थाप छेड़ी तो उंगुलियों के इस जादूगर का श्रोताओं ने करिश्मा देखा। संगीत प्रेमियों की फरमाइश पर रूपक ताल सुनाकर उन्होंने मंच से विदाई ली थी। तबला वादन कार्यक्रम ‘धा..’ का आयोजन ताज नेचर वॉक समिति ने किया था।