Friday, December 27, 2024
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खास खबर:सलाखों के पीछे दम तोड़ रहा कैदियों का हुनर!

फर्रुखाबाद:(दीपक-शुक्ला)1868 में निर्मित केन्द्रीय कारागार फतेहगढ़ भी एक समय उद्योगों की खान हुआ करता था। एक से एक हुनरदार कैदी विभिन्न उद्योगों से करोड़ों रुपये की आमदनी जेल प्रशासन को देते थे। लेकिन समय की मार और शासन व सरकार की अनदेखी के चलते जेल के उद्योग भी बिलकुल बंद ही हो गये। कहीं न कहीं कैदियों का राजनीतिकरण और हुनरमंदों की कमी भी इसके आड़े आ गयी। कच्चा माल भी जेल प्रशासन को मुहैया नहीं हो पाया रहा है। सेन्ट्रल जेल में बनी हुई जूट व सूत का सामान आज भी बेहतरीन माना जाता है|
केन्द्रीय कारागार के इतिहास की तो अंग्रेजी शासनकाल में एच रावर्ट इण्डियन मेडिकल सर्विसेज के अंग्रेज अधीक्षक के साथ-साथ तीन यूरोपियन जेलर, आठ कार्यालय लिपिक, 25 बार्डर व 27 रिजर्व बार्डर, एक यूरोपियन मेट्रन की देखरेख में कारागार को शुरू किया गया था। एशिया की सबसे बड़ी मानी जाने वाले केन्द्रीय कारागार फतेहगढ़ 989 बीघे में फैली है। दर असल उसी समय से कारागार में कैदियों के हुनर को उत्पादों में बदलने का प्रयास किया गया। कारागार में सन 1882 में कपड़ा, तम्बू, लोहे का तसला, कटोरी बनाने का उद्योग प्रारंभ किया गया। सन 1908 में कारागार में दो लाख 15 हजार 72 रुपये की आमदनी इन उद्योगों से अर्जित की थी। आमदनी ठीक ठाक होने पर जेल प्रशासन ने इस पर पुनः जोर दिया। बढ़ते बढ़ते जेल के साथ-साथ देश भी अंग्रेजों के चंगुल से छूटा तो जेल के इन उद्योगों ने और अधिक तरक्की कर दी।
1982 में कारागार में इन्हीं उद्योगों में एक अच्छी सफलता हासिल की। कारागार ने एक करोड़ 34 लाख रुपये की आमदनी इन उद्योगों से की जो अपने आप में एक इतिहास है। जेल में बना तम्बू, लकड़ी इत्यादि का सामान, बाहरी दूसरी जेलों व अन्य पुलिस बलों को सप्लाई किया जाता था| तत्कालीन जेल अधीक्षक एच पी यादव उस समय तैनात थे। जिन्होंने जेल के उद्योग धन्धों में विशेष रुचि दिखायी और जेल में कैदियों की संख्या भी 15 सितम्बर 1983 को 4515 थी। एच पी यादव ने जेल में उद्योग धन्धों को बढ़ावा देने के लिए जेल के फार्म पर मछली पालन हेतु बहुत बड़े बड़े तालाब खुदवाये और सब्जी इत्यादि भी बड़े पैमाने पर पैदा होती थी। लेकिन समय की मार के चलते यह औद्योगिक जेल आज खुद दूसरों पर निर्भर हो गयी है। कभी कारागार के अंदर बन रहे कारीगरी के नमूनों को देश विदेश के लोग भी खरीदने आते थे। लेकिन अब सब कुछ खत्म सा हो रहा है। कमर टूटे इन जेल उद्योगों पर शासन को पुर्नविचार कर इन्हें गति देनी चाहिए।
जेल में दरी और जूट का सामान बेहतरीन
केन्द्रीय कारागार फतेहगढ़ में दरी का काम भी बेहतरीन है| बंदियों द्वारा निर्मित दरी की जादा मांग होती है| सूत से बनी दरी वर्षों तक प्रयोग में लायी जा सकती है| जेल में बनी दरी 6/4 फीट लम्बी 730 ,7/4 फीट लम्बी दरी 880,12/12 लम्बी दरी 3900 रूपये लगभग कीमत की केन्द्रीय कारागार से खरीदी जा सकती है| झोले लगभग 20 रूपये का एक,गार्डन छाता 4366 रूपये, शुद्ध जुट से बना हुआ आसन 180 रूपये का उपलब्ध है|
बंदियों को मिलता हुनर का ना के बराबर दाम
शासन ने जेल में काम करने वाले कारीगर बंदियों को प्रतिदिन की मजदूरी निर्धारित की है| जिसमे तीन तरह के बंदियों को शामिल किया गया है| जिसमे कुशल कारीगर बंदी,अर्द्ध कुशल कारीगर बंदी,अकुशल कारीगर बंदी शामिल है| कुशल कारीगर बंदियों को 40 रूपये.अर्द्ध कुशल कारीगरों को 30 रूपये व अकुशल कारीगर बंदियों को 25 रूपये का मानदेय दिया जाता है| जेल में जूट व सूत का कारीगर का काम करने वाले बंदियों की संख्या 40 से 45 है| जब बड़ी डिमांड आती है तो संख्या 150 बन्दियो तक पंहुच जाती है|
सर्वाधिक पीएसी में रहती थी जेल के तम्बुओं की मांग
जेल के तम्बुओं की मांग सिचाई विभाग,खनन विभाग,नहर विभाग व नलकूप विभाग में तम्बुओं की मांग रहती थी| सर्वाधिक पीएसी में जेल के तम्बू की मांग बनी रहती थी| लेकिन बीते दो वर्षो से जेल में तम्बू सप्लाई में भारी कमी आ गयी है| सेन्ट्रल जेल अधीक्षक एसएचएम रिजवी ने जेएनआई को बताया कि अभी वह नये आये हुए है| उन्हें पूरी जानकारी नही है| इस तरफ जल्द प्रयास किये जायेंगे|

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