राम मंदिर, गौमाता, अपराध, सरकारी योजनाओ की चिल्ल पौ में कुछ खो सा रहा है……..

EDITORIALS FARRUKHABAD NEWS

कार्तिक माह के आते आते वर्षांत का एहसास होने लगता है| नवम्बर में चुपके से गरीब के बिस्तर में सेंध लगाती मीठी सर्दी कब चिल्ला जाड़े में तब्दील हो जाती है इसका एहसास गरीब, अमीर और हुक्मरानों को अलग अलग तरीके से होता है| साहब लोगो को गरीबो के लिए कम्बल खरीदने के उपक्रम से इसका एहसास होता है तो छोटे साहबो को अलाव की| बच्चो के साहबो को स्वेटर और मोज़े खरीदने होते है तो ठेकेदारों को इन सबसे सरोकार होता है| इन सबके हिस्से में कुछ न कुछ आना होता है| मगर जिनके कारण साहब के हाथ गरम होने है उनकी चर्चा के बिना पूरी रामकथा बेकार है|

हर सकारात्मक पहलु का महत्त्व तभी है जब उसका नकारात्मक प्रभावशाली हो| गरीब और कमजोर है तभी जबर साहब के हाथ और जेब गरम है| अपराध और अपराधी है तभी पुलिस की पूछ है| वर्ना रामराज में पुलिस की क्या जरुरत? छाते तो तभी बिकेंगे जब बरसात होगी| अब बरसात होगी तो गरीब की छत टपकेगी| और बरसात नहीं होगी तो किसान बेहाल होगा| यानि सूखा पड़ेगा| सूखा पड़ेगा तो बीमा कम्पनी की पूछ होगी| यानि हर सुख दुःख के पीछे कोई न कोई कारण होना जरुरी है|

जनवरी में गंगा के तट पर रामनगरिया मेला का आयोजन होना है| अब लोकसभा चुनावो की तैयारियो का असर हिन्दुओ के तीज त्योहारों में खूब दिखेगा| तमाम बजट भी आएगा| गंगा के किनारे मेलो के लिए भी पैसा आने की भरपूर सम्भावना है| मगर अभी तक तो गंगा के पुल और उसके दोनों तरफ 10 किलोमीटर तक टूटी सड़के विकास के होने और न होने के बीच का अंतर खूब दिखा रहा है| गंगा में कल कल अविरल गिरता फर्रुखाबाद नगर का नाला और फतेहगढ़ में अर्धशोधित नालो का गन्दा पानी गंगा में नगर से गंगा के बहाव के बाद गिरता रहे, साहब की बला से| पिछले तमाम वर्षो में गंगा सफाई के नाम पर सैकड़ो करोड़ खर्च हो चुके है, गंगा अविरल हुई हो या नहीं, गंगा सफाई वाले साहब का विकास 2 किलोमीटर दूर से उनके आलिशान आशियाने से दिखाई पड़ने लगा है| इसमें विधायक, नगर पालिका अध्यक्ष और सांसद जैसे जनप्रतिनिधियो को दोष देना बेकार है| इन तीनो के ही पास समाजसेवा का वो डमरू है जिसे बजाकर मदारी खेल सजाता है और जनता को ही जमूरा बना देता है| अब जनता भी इनके कहने पर जमा नहीं होती स्वागत सत्कार के लिए माला और तलवार अपने चमचो से पहले खुद ही भेजनी पड़ती है| खैर नेताओ से तो जनता का भरोसा उठ ही चुका है| मगर साहब की क्या कहे जिन्हें सब कुछ सही करने का वेतन करदाताओ की जेब से मिलना होता है| अब साहब गंगा में गिरने से न नाला रोक पाए और न ही गाय का पेट भर पाए| पाप लगना था लग गया| एक्स्ट्रा बगलियाई कुर्सी और चली गयी| और नासपीटे ये नारदियो को भी दूसरा कोई काम नहीं है… एक भी गाय दूध दे रही होती तो थोडा थोडा सबके घर भिजवा देते| अब ठंठ से क्या आसरा|

जाड़े में सबकी जय जय होगी| जन प्रतिनिधि से लेकर जिले के आला अफसरों को रात्रि प्रवास पर गाँव जाड़े में ही भेजा जाता है| क्या सुखद एहसास| प्रधान , ग्रामसचिव और लेखपाल सब व्यवस्था करेंगे| झमाझम टेंट, अलाव, और संगीत के साथ साथ भुने आलू और शकरकंद का आनंद लिया जायेगा| कुछ घंटे में ही भोज आदि कर छायाचित्र कैद कर वापसी होगी और वातानुकूलित (हीटर) कमरे में बची रात गुजरेगी| रामनगरिया मेला में गरीबो की बाढ़ आएगी| कुछ मिटटी का तेल चुरायेंगे कुछ मेले के प्लाट| दान पुण्य करने के पवित्र माघ के महीने में मजाल है कि साहब की जेब से एक रुपये का भी पुण्य दान हो जाए| दाल बाटी से लेकर भुने आलू का स्वाद भरपूर मिलेगा| मगर जिस पैसे से ये खरीद कर साहब को खिलाया जायेगा वो पैसा मालूम है कहाँ से आता है….इस दुनिया में सबसे अभिशप्त गरीब की खाल खीच कर….. यकीन नहीं होता| साइकिल स्टैंड के ठेकेदार जरूर होंगे| कार वाला भले ही मेले में बिना कर दिए मेले में चला जाए मगर मजाल क्या साइकिल वाला बिना पैसा दिए मेले में घुस जाए| कुछ कुछ समझ में आ रहा है न….| बड़ी मोटी खाल के होते रहे है इंचार्ज इन मेलो के| इस बार क्या अलग थोड़ी होगा| राम के नाम पर लगने वाले मेले की वो वो असल कहानियां जरुर आपको पेश करेंगे जिसे पढ़ कर आपकी रूह कांप उठेगी|