नई दिल्ली: #MeToo के तहत यौन शोषण के आरोपों का सामना कर रहे विदेश राज्य मंत्री ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। अकबर का कहना है कि उन पर लगाए गए आरोप झूठे हैं और वे अब कोर्ट में कानूनी लड़ाई लड़ेंगे।
हालांकि, एक वक्त ऐसा भी था जब अकबर ने अपने ऊपर लगे आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताया था। अकबर पर अब तक करीब 16 महिलाएं सार्वजनिक रूप से आरोप लगा चुकी हैं और 20 महिलाओं ने इन्हें समर्थन दिया है। अकबर पर लगे आरोप लगातार सरकार के गले की फांस बनते जा रहे थे। आइए डालते हैं एक नजर अकबर पर आरोप लगने से लेकर इस्तीफे तक के सफर पर।
7 अक्टूबर- गुमनाम पत्र से शुरुआत
अकबर पर आरोपों की शुरुआत प्रेरणा सिंह बिंद्रा ने की थी। 6 अक्टूबर को जर्नलिस्ट प्रेरणा सिंह बिंद्रा ने ट्वीट करके बताया कि उन्हें एक संपादक ने होटल के कमरे में बुलाया था। जब बिंद्रा ने आने से इनकार कर दिया, तब उन्हें परेशान किया गया। हालांकि, #MeToo के तहत जो खुलासे उन्होंने किए उसमें अकबर का नाम नहीं था। लेकिन बाद में 9 अक्टूबर उसी ट्वीट में उन्होंने सार्वजनिक तौर पर अकबर का नाम लिया और कहा कि उनका शोषण करने वाले कोई और नहीं बल्कि अकबर ही हैं।
बिंद्रा ने बताया कि अकबर ने एक बार पूरी फीचर्स टीम के साथ मीटिंग के दौरान ‘गलत टिप्पणियां’ की थीं। बिंद्रा ये भी याद बताया कि अकबर ऑफिस टीम की दूसरी लड़कियों को भी होटल के कमरों में बुला चुके हैं।सार्वजनिक तौर पर सबसे पहले प्रिया रमानी 8 अक्टूबर को अकबर का नाम लिया।
8 अक्टूबर, 2018 – अकबर पर 6 महिला पत्रकारों ने लगाए आरोप
#MeToo के तहत पत्रकार प्रिया रमानी ने सबसे पहले अकबर पर सार्वजनिक रूप से आरोप लगाए। रमानी ने #MeToo की स्टोरी बताने के लिए एक आर्टिकल लिखा। हालांकि, आर्टिकल में रमानी ने अकबर का नाम नहीं लिया था, लेकिन 8 अक्टूबर को ट्वीट करके उन्होंने सीधे एमजे अकबर का नाम लिया। इसके बाद एक-एक कर करीब 6 महिला पत्रकारों ने अकबर को लेकर कई तरह की आपत्तिजनक बातों और शोषण का खुलासा किया। अकबर पर ये आरोप एशियन एज के संपादक रहने के दौरान के थे।
प्रिया रमानी के बाद एक दूसरी जर्नलिस्ट महिला शुमा राहा ने ट्वीट करके अकबर के बारे में अपनी कहानी सुनाई। शुमा ने कहा कि 1995 में अकबर ने उन्हें कोलकाता के एक होटल में इंटरव्यू के लिए बुलाया था। तब अकबर एशियन एज में संपादक थे। शुमा के बयान के मुताबिक, अकबर ने उनके साथ कुछ नहीं किया था, लेकिन होटल के एक कमरे में बिस्तर पर बैठकर जिस तरह इंटरव्यू लिया जा रहा था, उस वजह से उन्होंने जॉब का ऑफर ठुकरा दिया।
9 अक्टूबर 2018- भाजपा सांसद ने बताया गलत प्रथा शुरू हो गई है
9 अक्टूबर को भाजपा सांसद उदितराज ने कहा कि #MeToo के तहत गलत प्रथा की शुरुआत हो गई है। उदितराज ने कहा, #MeeToo कैंपेन जरूरी है लेकिन किसी व्यक्ति पर 10 साल बाद यौन शोषण का आरोप लगाने का क्या मतलब है? इतने सालों बाद ऐसे मामले की सत्यता की जांच कैसे हो सकेगा? जिस व्यक्ति पर झूठा आरोप लगा दिया जाएगा उसकी छवि का कितना बड़ा नुकशान होगा ये सोचने वाली बात है. गलत प्रथा की शुरुआत है।’
10 अक्टूबर- अकबर के खिलाफ आरोपों की गिनती बढ़ी, इस्तीफे की मांग उठी
10 अक्टूबर को एक और महिला पत्रकार सुतपा पॉल ने अकबर पर आरोप लगाए। उन्होंने साल 2010-11 के वाकये के बारे में बताया। तब सुतपा इंडिया टुडे में पत्रकार थीं. और एमजे अकबर भी यहीं काम कर रहे थे। सुतपा का आरोप है कि अकबर ने उन्हें कई बार ड्रिंक करने की जिद की। मना करने पर अकबर कहते थे, ‘न ड्रिंक करती हो, न स्मोक करती हो, किस तरह की जनर्लिस्ट हो तुम’ सुतपा पॉल ने बताया कि उनके पास बहुत सारे स्टोरी आइडियाज थे, लेकिन अकबर किसी भी स्टोरी आइडिया के बारे में बात नहीं करना चाहते थे।
इसी दिन कनिका गहलोत ने भी अकबर पर आरोप लगाए। फ्रीलांस जर्नलिस्ट कनिका गहलोत ने कहा कि 1995 से 1997 के दौरान उन्होंने एमजे अकबर के साथ काम किया है, सभी लोगों के साथ उनका व्यवहार बहुत खराब था। घटना के बारे में गहलोत ने बताया कि एक दिन उन्हें भी होटल में बुलाया गया, लेकिन कनिका के एक बार मना करने के बाद अकबर ने फिर दोबारा कभी नहीं बुलाया।
‘अकबर ने मेरी ब्रा का स्ट्रैप खींचा’
कुछ ऐसे ही आरोप एशियन एज की एडिटर सुपर्णा शर्मा ने भी एमजे अकबर पर लगाए। सुपर्णा ने कहा कि साल 1993 से 1996 के दौरान अकबर उनके बॉस थे और वो अपने काम की रिपोर्ट उन्हें देती थीं। सुपर्णा कहती हैं, “मैं एक दिन ऑफिस में काम कर रही थी और अकबर मेरे पीछे खड़े थे। उन्होंने मेरी ब्रा का स्ट्रैप खींचा और धीरे से कुछ कहा, जो मुझे फिलहाल याद नहीं है। मैं डर गई थी।”
एक आर्टिकल में पत्रकार सबा नकवी ने अपने साथ हुए हैरासमेंट का जिक्र किया है। सबा ने सीधे तौर से उस शख्स का नाम नहीं बताया है। लेकिन हिंट देते हुए कहा कि उसका नाम ‘ग्रैंड मुगल सम्राट’ से मिलता जुलता है। सबा ने उस शख्स का नाम लिए बगैर कहा कि उसने पहले ऑफिस में प्रताड़ित किया, फिर बाद में वो एक राजनेता बन गया।
गजाला वहाब बोलीं- छाती पर हाथ फेरा
अकबर की बारे में कुछ ऐसी ही कहानी पत्रकार गजाला वहाब ने सुनाई। गजाला लिखती हैं, ”साल 1994 में मैंने इंटर्न के रूप में एशियन एज अखबार ज्वाइन किया था, जहां अकबर एडिटर थे। इस दौरान अकबर ने उन्हें भद्दे मैसेज भेजे और कई बार अपने केबिन में बुलाकर प्रताड़ित भी किया।
गजाला कहती हैं, ‘एक दिन अकबर ने जब मुझे अपने केबिन में बुलाया, तो वह अपना वीकली कॉलम लिख रहे थे। उन्होंने मुझे डिक्शनरी से कुछ शब्द ढूंढने के लिए कहा।शब्दों को ध्यान से देखने के लिए जब झुकी, तो उन्होंने मेरी छाती से लेकर कमर तक हाथ फेरा। मैं तब बहुत डर गई थी। वहाब कहती हैं कि नौकरी के दौरान कई बार अकबर ने उन्हें छूने की कोशिश की। वहाब के मुताबिक उन्होंने ब्यूरो चीफ सीमा मुस्तफा से भी इसकी शिकायत की थी, लेकिन कुछ एक्शन नहीं लिया गया।
इसी दिन कांग्रेस ने पहली बार अकबर के इस्तीफे की मांग उठाई। कांग्रेस ने बुधवार को कहा कि केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर को यौन उत्पीड़न के आरोपों पर संतोषजनक सफाई देनी चाहिए या तत्काल इस्तीफा देना चाहिए। पार्टी के वरिष्ठ प्रवक्ता एस जयपाल रेड्डी ने कहा, ‘जब उनके साथ काम कर चुकी सीनियर पत्रकारों ने आरोप लगाए हैं तो फिर वह पद पर कैसे बने रह सकते हैं।
इसके अलावा AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी एमजे अकबर को मंत्री पद से हटाए जाने की मांग की। उन्होंने ट्वीट किया, “अकबर शर्म करिए! और आप तीन तलाक विधेयक पर बहस के दौरान संसद में खड़े होकर मुस्लिम महिलाओं के सशक्तिकरण और उनके उत्पीड़न को रोकने की बात करते हैं।” ओवैसी ने आगे कहा कहा, “प्रधानमंत्री कार्यालय अगर सच में बेटी बचाओ में यकीन रखता है तो अपने इस मंत्री को हटाएं।”
सुषमा सवाल सुनकर आगे बढ़ीं, निर्मला ने भी टाल दिया सवाल
एमजे का अकबर का मामला गरमाने लगा था। लेकिन विदेश में होने के चलते उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आ रही थी। विदेश राज्यमंत्री सुषमा स्वराज से अकबर पर प्रतिक्रिया मांगी गई तो उन्होंने अनसुना कर दिया और पत्रकारों को छोड़ आगे बढ़ गईं।
कुछ ऐसा ही रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी किया। एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा कि एमजे अकबर पर लगे आरोपों पर कमेंट करने के लिए वह सही पर्सन नहीं हैं।
11 अक्टूबर- ईरानी बोलीं- आपबीती बताने वाली महिलाओं को न करें बदनाम
11 अक्टूबर को सुबह सूत्रों के हवाले से मीडिया में ख़बर आई कि एमजे अकबर विदेश से लौटते ही इस्तीफा दे सकते हैं। शाम को जब अकबर के मामले पर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से प्रतिक्रिया मांगी गई तो उन्होंने महिलाओं का साथ दिया।
ईरानी ने कहा, वैसे तो इन आरोपों पर तो अकबर ही सही से बता सकते हैं लेकिन #MeToo के जरिए जो भी महिलाएं आपबीती बता रही हैं उन्हें न तो बदनामी का शिकार बनाया जाना चाहिए और न उनका मजाक उड़ाना चाहिए।
12 अक्टूबर- स्वामी का #MeToo को समर्थन, मालीवाल का पीएम को पत्र
एक और महिला पत्रकार ने एमजे अकबर पर आरोप लगाए। महिला पत्रकार का कहना था कि अकबर ने उन्हें तब प्रताड़िता किया जब वे एशियन एज अखबार में इंटर्न थीं। यह घटना साल 2007 की बताई गई। पत्रकार के मुताबिक, ‘वो (अकबर) उठे और जहां मैं बैठी थी वहां आए, तो मैं भी उठी और उनकी तरफ मैंने हाथ बढ़ाया। उन्होंने मेरे सीधे कंधे के नीचे से, मेरे हाथों को पकड़ा और अपनी तरफ खींच लिया। उन्होंने मेरे मुंह पर किस किया और जबरदस्ती अपनी जीभ मेरे मुंह में घुसाने लगे। मैं सिर्फ खड़ी रही।”
दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने भी आरोपों के बाद एमजे अकबर को प्रधानमंत्री पद से हटाने के लिए पत्र लिखा। मालीवाल ने कहा, ”ये सही वक्त है, सामने आइए और इसकी रिपोर्ट करिए ताकि हमारे समाज में मौजूद ऐसे लोगों को सबक सिखाया जा सके और उन्हें सलाखों के पीछे भेजने की जरूरत है।”
12 अक्टूबर को एक और भाजपा नेता और सांसद सु्ब्रमण्यम स्वामी ने बयान दिया। उन्होंने #MeToo कैंपेन को समर्थन दिया और कहा ”अकबर मंत्री हैं। उन्हें पीएम मोदी ने मंत्री बनाया है। मैं मीटू कैंपन का समर्थन करता हूं। इन पर कई महिलाओं ने आरोप लगाए हैं। प्रधानमंत्री को इस पर बोलना चाहिए।”
स्वामी ने कहा, “मैंने 20 साल पहले कई नेताओं पर सवाल उठाए थे। उन्होंने महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया था। तब मीडिया ने मुझसे कहा कि आप बहुत पर्सनल हो रहे हैं। पर्सनल चीजों पर नहीं जाना चाहिए लेकिन आज परिस्थिति बदल गई है। यहां ये सवाल नहीं पूछा जाना होना चाहिए कि पहले शिकायत नहीं की, अब क्यों कर रहे हैं।”
वहीं, जब केंद्रीय मंत्री उमा भारती से एमजे अकबर पर लगे आरोपों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने इस पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया। उमा भारती ने कहा, “ये मामला उस समय का है, जब वो केंद्र सरकार में शामिल नहीं थे। इसलिए ये मामला अकबर और उन महिलाओं के बीच का है। सरकार इस पर कुछ नहीं कर सकती है।”
13 अक्टूबरः शाह बोले- आरोपों की जांच की जरूरत
पहली बार भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने अकबर के मामले पर चुप्पी तोड़ी। उन्होंने कहा कि वह इस मामले पर टिप्पणी करने की स्थिति में नहीं हैं क्योंकि अकबर पर लगे आरोपों की जांच किए जाने की जरूरत है। एक इंटरव्यू में शाह ने कहा, “किसी चीज पर यूं ही टिप्पणी करना बहुत मुश्किल है, जो एक वेबसाइट पर छपा हो। कोई भी एक वेबसाइट पर कुछ भी डाल सकता है। इसलिए इसकी जांच की जरूरत है. चाहे वह सच हो या झूठ या फिर इस तरह की घटना हुई हो या नहीं।”
14 अक्टूबर- अकबर स्वदेश लौटे, बोले- जल्द अपना पक्ष रखेंगे
एमजे अकबर नाइजीरिया से स्वदेश लौट आए। जब पत्रकारों ने उनसे आरोपों को लेकर सवाल पूछा तो उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा कि जल्द ही वे अपना पक्ष रखेंगे। इसके बाद शाम होते-होते उन्होंने मीडिया से कहा कि उन पर लगे सभी आरोप झूठे हैं और वे कानूनी कार्रवाई करेंगे।
अकबर ने कहा, ‘मेरे खिलाफ जो भी आरोप लगे हैं वो झूठे हैं और मसाला लगाकर पेश किए जा रहे हैं। क्योंकि मैं ऑफिशियल विदेशी दौरे पर थे तो इसलिए जवाब नहीं दे सका लेकिन अब मैं लौट आया हूं। मेरे वकील इन झूठे आरोपों की जांच करने के बाद भविष्य के लीगल एक्शन की तैयारी करेंगे।
15 अक्टूबर- प्रिया रमानी पर मानहानि का केस
इसके बाद अगले दिन एमजे अकबर पहली बार सार्वजनिक रूप से नाम लेकर आरोप लगाने वाली प्रिया रमानी के खिलाफ मानहानि का केस करते हैं। इसके बाद प्रिया का बयान आता है। प्रिया कहती हैं कि अकबर ने अपना रवैया साफ कर दिया है, वे पीड़िताओं को डरा-धमका कर चुप कराना चाहते हैं। अकबर की ओर से दायर मुकदमे की सुनवाई पटियाला हाउस कोर्ट में गुरुवार को होगी।
16 अक्टूबरः प्रिया रमानी को समर्थन बढ़ा तो अकबर पर इस्तीफे का दबाव
अकबर की ओर से दायर मुकदमे को लेकर प्रिया रमानी के समर्थन में करीब 20 और महिलाएं आ गईं। एम जे अकबर पर मी टू के तहत ‘द एशियन एज’ अखबार में काम कर चुकीं पत्रकारों ने संयुक्त बयान पर दस्तखत किए। इन महिलाओं में मीनल बघेल (1993-1996), मनीषा पांडेय (1993-1998), तुषिता पटेल (1993-2000), कणिका गहलोत (1995-1998), सुपर्णा शर्मा (1993-1996), रमोला तलवार बादाम (1994-1995), होइहनु हौजेल (1999-2000), आयशा खान (1995-1998), कुशलरानी गुलाब (1993-1997), कनीजा गजारी (1995-1997), मालविका बनर्जी (1995-1998), ए टी जयंती (1995-1996), हामिदा पार्कर (1996-1999), जोनाली बुरागोहैन, मीनाक्षी कुमार (1996-2000), सुजाता दत्ता सचदेवा (1999-2000), रेशमी चक्रवाती (1996-98), किरण मनराल(1993-96) और संजरी चटर्जी शामिल हैं। डेक्कन क्रॉनिकल की एक पत्रकार क्रिस्टीना फ्रांसिस (2005-2011) ने भी इस बयान पर हस्ताक्षर किए हैं।
17 अक्टूबर को एमजे अकबर विदेश राज्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देते हैं। अकबर के इस्तीफे के की नींव कई कारणों से पड़ीं। इनमें आरोपों और महिला पत्रकारों की बढ़ती एकजुटता के अलावा कांग्रेस का राजनीतिक दांव और सरकार का भी एक कदम शामिल है। दरअसल, बुधवार को कांग्रेस ने यौन शोषण के आरोपों के बाद NSUI के अध्यक्ष फिरोज खान का इस्तीफा ले लिया। जिसके बाद सरकार पर भी अकबर का इस्तीफे लेने का दबाव बढ़ने लगा।
इसके अलावा #MeToo के तहत लग रहे यौन उत्पीड़न के आरोपों को लेकर केंद्र सरकार की ओर से भी एक जांच कमेटी बनाने की बात सामने आ रही थी। महिला एवं बाल विकास मंत्री के मुताबिक सेवानिवृत्त जज और वकील इस जांच कमेटी का हिस्सा होंगे और यौन उत्पीड़न के खुलासों पर सरकार को रिपोर्ट सौंपेंगे। ऐसे में शायद सरकार के सामने ये भी बड़ी दुविधा रही हो कि जांच कमेटी से पहले खुद के मंत्री को लेकर जांच की मांग पर क्या किया जाए और अगर अकबर मंत्री पद पर बने रहते जांच की निष्पक्षता पर भी सवाल उठते।