Saturday, December 28, 2024
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नवरात्रि विशेष: जिन्दगी की सांझ में अकेली माँ की ममता

फर्रुखाबाद:(दीपक शुक्ला) माँ एक शब्द जिसमे पूरा विश्व समाहित है आज वृद्धावस्था में किसी वृद्धाश्रम के एक कोंने में पड़ी अस्तिस्व को तलाश कर रही है| वही ममता की तलाश में लोग माँ के दरवार में हाजिरी लगाने और ममता पाने की चाह में घंटो लाइन में लगे इंतजार करते देखे जा सकते है| माँ लाड़-प्यार से बच्चों की परवरिश करती हैं। उन्हें अच्छे से अच्छा खिलाने-पिलाने की कोशिश करती हैं। खुद पुराने कपड़े बरसों तक पहन लेती हैं, लेकिन अपने बच्चों को नये-नये कपड़े पहनाती हैं। खुद मेहनत-मजदूरी करके अपने बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए उन्हें अच्छी तालीम दिलाती हैं, लेकिन बाद में यही बच्चे अपनी मां को बोझ समझने लगते हैं। जिस तरह
पुराना सामान घर के स्टोर में पहुंचा दिया जाता है या कबाड़ी को बेच दिया जाता है, उसी तरह कुछ बच्चे अपनी मां को वृद्धाश्रम
छोड़ आते हैं। अपनी जिन्दगी की सांझ में बुजुर्ग उस वक्त अकेले रह जाते हैं, जब उन्हें अपने बच्चों की सबसे ज्यादा जरूरत होती है।नवरात्र का त्योहार चल रहा है| हिन्दू धर्म से ताल्लुक रखने वाले लगभग सभी घरों में माँ की प्रतिमा की स्थापना की गयी है| मंगलवार को मेरा भी मन हुआ की मन्दिर में माँ के दरबार में माथा टेक कर आशीर्वाद ले लूँ| तभी रास्ते में इटावा-बरेली हाई-बे पर एक वृद्धा आश्रम का बोर्ड लगा देखा| अचानक मन में ख्याल आया की क्यों ना पहले वृद्धा आश्रम में झांककर देख लिया जाये| माँ तो यंहा भी होंगी|
आश्रम के भीतर घुसते ही एक राजेपुर निवासी 65 वर्षीय रामदेवी पत्नी पुत्तु लाल डंडे के सहारे आते मिली| गेट पर ही उन्होंने देखते हुये कहा की बेटा खुश रहो खूब बड़े आदमी बनो, जीवन में तरक्की करो अचानक मन में पुन: ख्याल आया की मै मंदिर क्यों जा रहा था इसी आशीर्वाद के लिये| लेकिन यंहा तो इतने सारे आशर्वाद मिल गये की अब मंदिर जाने का ख्याल मन से निकाल दिया| रामदेवी ने बताया की लगभग एक साल पूर्व उनका बेटा रामनिवास उन्हें यंहा छोड़ गया था| उसका विवाह हो गया वह पत्नी के साथ रहता है| लेकिन अचानक उनकी आँखों से आंसू छलक उठे| इतना सब होने के बाद भी रामदेवी के मुंह से अपने बेटे के लिये कोई अपशब्द नही निकला|
जब अंदर गये तो कई बुजुर्ग महिलायें बैठी अपने भूत, भविष्य व वर्तमान को याद करती मिली| उन्ही में मोहम्मदाबाद के पिपरगाँव निवासी कलावती मिली| वह भी जिन्दगी के अंतिम पायदान पर नजर आ रही थी| उन्होंने बताया की उनके तीन पुत्र है| एक बड़े पुत्र की मौत हो चुकी है| दो पुत्र है| पौत्र-पौत्री भी है| उनकी याद आती है कभी कभी मिलने आते है| यह कहते हुये कलावती के आंखो में भी आंसू आ गये| माँ को इस तरह रोते संतान होने के बाद भी पहली बार देखा वह भी उस समय जब लोग माँ के दर्शन के लिये लम्बी कतारों में खड़े हो|
समाज कल्याण विभाग द्वारा अनुदानित वृद्धाश्रम फूलमती भवन नरायनपुर में संचालित है| जिसके लिपिक मयंक ने जेएनआई को बताया की उनके पास 28 वृद्ध महिलाएं है| जिसकी व्यवस्था वृद्धाश्रम में की जाती है| लेकिन एक बात फिर खनी पड़ेगी क्या इन माँ से मिलने के लिये समाज में कोई नही जो उन्हें वह प्यार दे सके जिसकी वो इस उम्र में हकदार है|

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