इक्कसवी सदी के लिए आज 1 जनवरी 2018 का दिन महत्वपूर्ण हो चला है| खुशियां मनाने का दिन तो उसी का है| मन में जवान होने की उमंग और अभिलाषा में एक एक कर 17 साल कब गुजर गए पता ही नहीं चला| अब जब सदी जवानी की दहलीज छू रही है तो वो सवाल भी पूछेगी| बताओ बीते 17 साल में क्या क्या किया| इक्कसवी सदी का सपना राजीव गाँधी ने पाला था| सदी की शुरुआत में देश की कमान अटल बिहारी बाजपेयी के हाथो में हुआ करती थी और जवान होते होते मनमोहन सिंह की परिवरिश में नरेंद्र मोदी के हाथो में आ चुकी है| कैसे मेरे देश की परवरिश की?
सवालों और जबाबो के बीच देश का युवा भी खड़ा है| स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार की तुलना अपने से ज्यादा तरक्की कर चुके पडोसी चीन से कर रहा है| चीन से हमने किसी चीज में तरक्की की हो या नहीं जनसंख्या वृद्धि में हम उनसे आगे निकलने में कामयाब रहे| देश में कोई काम करना हो चीन की तरफ देखना ही पड़ रहा है| द्वितीय विश्व युद्ध काल के दौरान जो औद्यौगिक क्रांति फ़्रांस, इंग्लैंड, जर्मनी जैसे पश्चिमी देशो में हुई वैसी ही औद्यौगिक क्रांति चीन में हो रही है| चीन का बना सामान छोटे बड़े हर घर की जरुरत पूरी कर रहा है| इस दबदबे को भारतीय युवा को एक चुनौती मान कर चलना होगा| आखिर अब वो जवान हो चला है|
बात सवालों की है तो पहला सवाल ही युवा पूछता है कि सरकार ने 17 सालो में क्या किया? सरकार कहती है कि हमने विकास किया| सड़के बनबा दी| नए साल के पहले दिन घपलो घोटालो जैसी नकरात्मक बात नहीं करना चाहता| सरकार के विकास में बनी सड़को के निर्माण में इस्तेमाल होने वाली मशीनरी विदेश से आयी| अब तैयार सड़को पर ढुलने वाला अधिकांश सामान भी चीन से बंदरगाहों के रास्ते होता हुआ हमारे घरो तक पहुंचेगा| आज़ादी के बाद स्वदेशीकरण के नाम पर चालू हुई सरकार की देशी कम्पनिया अधिकांश बंद हो चुकी है| इसलिए सरकार के भरोसे कोई काम करना इस सदी की सबसे बड़ी बेबकूफी होगी| युवाओ को जैसे हालात है की दशा में ही अपने लिए सरोकार तलाशना होगा क्योंकि अब वो जवान हो चला है| जोखिम लेने की हिम्मत जुटानी होगी| लोकतंत्र के माने तो अब बदल से गए है| आम जनता से सरोकार मात्र वोट लेना, सरकार बनाना और फिर अगले चुनाव की तयारी में जुट जाना भर रह सा गया है|
ऐसा नहीं कि हमने इक्क्सवी सदी के बचपन में कोई विकास नहीं किया मगर पडोसी का बच्चा दौड़ने लगा और हमारे ने अभी अभी ट्राईसाइकिल छोड़ी है इतना फरक तो हो ही चला है| हम सिर्फ पाकिस्तान से तुलना कर खुश होते रहे और चीन सिल्क रुट से आगे निकल गया| हम अपने घर में सिर्फ 2जी, 3जी और जीजाजी में उलझे रहे और पडोसी के घर में दुनिया भर से रिश्ते आने लगे| क्या शानदार तरक्की की है हमने| देश के किसान के हिस्से में हाइब्रिड बीज आ गया| बेचारा अपना देशी बीज जो हर साल पैदावार से बचा कर बो लेता था उसे भी खो चुका| अन्नदाता किसान “बेचारा” हो गया| हिन्दुस्तान में औद्यौगिक क्षेत्र में अनिश्चितता की स्थिति बानी हुई है| विदेशी सामान भारत के सामान से सस्ता होने के कारण बाजार से गायब हो रहा है| कारखाने बंद हो रहे है| हम बना बनाया सामान बाहर से मगा कर मात्र पैकिंग कर मेक इन इंडिया (मोबाइल और सोलर कम्पनिया) बनने में लग गए| क्या यही इक्कसवी सदी का भारत है? मेरे जवान होने पर यही तोहफा भारत के नेताओ ने मुझे दिया|
कुल मिलाकर दूर दूर तक झाँकने पर एक मात्र बाबा रामदेव ही इस इक्क्सवी सदी में क्रांतिदूत समझ में आते है| स्वदेशी अपनाओ के नारे को साकार करते करते वे स्वामी से योगा करते करते हुए उद्योगपति बन गए| एक पतंजलि ही इक्क्सवी सदी के बचपन में भरपूर जवानी की ओर चल पाया है| कोई सरकारी सहायता नहीं| खुद का हौसला और दूरदृष्टि| फिर सरकारी सहायता जो मिली वो बाबा की जरुरत नहीं प्रदेश की सरकारों की जरुरत थी| बाबा के व्यापार और उद्योग से टैक्स जो मिलना था| आज देश में जवानी की दहलीज पर खड़े युवा के सामने बहुत से रास्ते है| देश में एक बार फिर से औद्यौगिक क्रांति की जरुरत है| जिसे बिना किसी सरकारी सहायता से खड़ा करने का यत्न तलाशना होगा| सरकारों से उम्मीद लगाने में जैसे बचपन गुजरा है वैसे ही जवानी भी ढल जाएगी| देश में सिस्टम कहीं दिख नहीं रहा| कदम कदम बढ़ते हुए खुद के रास्ते के बनाने होंगे| स्वास्थ्य, शिक्षा जो सेवा थे अब चरम पर व्यवसाय है| और जो व्यवसाय होना था उसे पडोसी से पूरा कर लेने की फितरत हमारे कुछ नया सोचने के रास्ते बंद चुका है| जरुरत है उन्ही बंद रास्तो को फिर से खोलने की| भाषण देने से सब कुछ हो जाता तो भारत इक्कसवी सदी के शुरू होते ही जवान हो जाता क्योंकि तब जिन हाथो में भारत था उनसे अच्छा भाषण अभी मोदी नहीं दे पाते है| तो इक्क्सवी सदी के बालिग़ होने पर एक बार फिर से सभी को शुभकामनाये इस उम्मीद के साथ कि अब तुझ पर किसी की बंदिश नहीं है| 18 की हो गयी है तू अब फैसला लेने का हक तेरा है………