फर्रुखाबाद: जरा फ़्लैश बैक में चलिए| तारीख 2 नवम्बर 2015 | जिला पंचायत सदस्य का चुनाव| स्थान राजेपुर मतगणना केंद्र| और राजेपुर चतुर्थ क्षेत्र का काउंटिंग हाल| यहाँ सीधा मुकाबला सांसद मुकेश राजपूत के समर्थक संतोष यादव और सुबोध यादव की पत्नी रश्मि यादव के बीच था| राजेपुर में जब कुछ मतपेटिया ही खुलनी बाकी रह गयी थी, लगभग आखिरी राउंड तक की गिनती तक संतोष यादव लम्बे अंतराल से बढ़त बनाये हुए थे फिर भी हारे घोषित किये गए और अपनी आवाज भी बुलंद नहीं कर पाए| तमाम प्रयासों के बाबजूद सांसद मदद को नहीं आये| और सुबोध यादव की पत्नी रश्मि यादव विजयी घोषित हुई और सुबोध यादव को फर्रुखाबाद की राजनीति मे पहला कदम रखने का मौका मिल गया| स्वयं तो वे कायमगंज क्षेत्र से हार ही गए थे| जिला पंचायत अध्यक्षी के दूसरे दौर में सांसद समर्थक प्रत्याशी की हार सांकेतिक रूप से सांसद की ही हार है जिसका बीज 2 नवम्बर 2015 में बोया गया था| आज पौधा बनकर लहराने लगा है| कल किसने देखा, वृक्ष बन कर अपने नीचे की हरियाली को भी सुखा दे|
जरा अतीत में लौटते है| उस समय जब जिला पंचायत सदस्य के चुनाव कई मतगणना चल रही थी| देर रात तक जिला मुख्यालय के एक दर्जन पत्रकार राजेपुर में ही डेरा डाले हुए थे| सांसद ने जिस सदस्य को चुनाव लड़ाया था वो पुकार रहा था| उसे जीत का प्रमाण पत्र न मिलने का अन्देशा हो चला था| तत्कालीन सरकार के अफसर सपा नेताओ की मदद आँख मीच कर रहे थे| लखनऊ से राजनेताओ और सचिवों के फोन जिले अधिकारियो को बार बार निर्देशित कर रहे थे| राजेपुर चतुर्थ क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे संतोष यादव मतगणना के आखिरी दौर तक आगे थे और अचानक मतगणना रुकी और फिर कई घंटे के बाद परिणाम आया कि संतोष यादव चुनाव हार गए| मीडिया और पुलिस कप्तान जो निरंतर मतगणना पर निगाह लगाये थे, वे भी बाजीगरी के आगे हार चुके थे| भाजपा समर्थित प्रत्याशी जिसे मुकेश राजपूत ने ही खड़ा किया था वो संतोष यादव तब विरोध की आवाज बुलंद न कर सका| उसकी मदद के लिये सांसद मुकेश राजपूत को भी कई फोन किये गए मगर वो भी मदद के लिये राजेपुर नहीं पहुचे| और फर्रुखाबाद में वो राजनैतिक बीज अंकुरित हो गया जो आज पौधा बन गया और उसी की मामूली हवा में ही मुकेश की चौसर के सारे पत्ते हवा में बिखर गए| न विधायक काम आये और न समर्थक| राजनीति मे गिरती विश्वसनीयता और धनबल का बढ़ता प्रभाव इसी का नाम है|
जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठने वाला निरक्षर है| उसकी कमान निश्चित रूप से वही चलाएगा जिसने उन्हें जीतने के लिये आवश्यक व्यवस्था की है| ऐसा पहली बार नहीं हुआ है| मुकेश राजपूत को इसका बेहतर तजुर्बा है| अपनी पत्नी की अध्यक्षता वही चलाते रहे| इसलिए उन्हें टोकने का नैतिक अधिकार ही नहीं है| फिर दो साल के कार्यकाल के लिये बची जिला पंचायत की कुर्सी मुकेश राजपूत के लिये केवल आर्थिक सौदा था वहीँ सुबोध के लिये राजनैतिक स्थापत्य का पहला खम्भा| कौन नहीं जनता कि जिला पंचायत में पैसा कमाने के लिये ही पैसा लगाते रहे है राजनैतिक लोग| खेल धनबल का था| एक का पहले से ही फसा हुआ था दूसरे को लगाना था| नए खरीददार के लिये ज्यादा पैसा देकर सदस्य खरीदना घाटे का सौदा था लिहाजा सदस्य कम रह गए| इतिहास फिर दोहरा रहा है| सबक लेने की जरुरत है| एक पत्रकार गुरु की सलाह थी कभी कि घर की किसी दीवार पर पंछियों के परांगन के द्वारा पीपल का पौधा अगर उग आये तो उसे वृक्ष बनने से पहले ही उखाड़ देना चाहिए| वर्ना किसी दिन बड़ा होकर वो दीवार ही उखाड़ देगा| देश में मोदी की राजनीति से ये बेहतर समझा जा सकता है| विपक्ष शून्य की ओर भाजपा निरंतर प्रयास करती दिखाई पड़ रही है| मोदी और शाह की जोड़ी कांग्रेस मुक्त भारत की ओर चल पड़ी है| नया उदहारण तमिलनाडु का है| अब शीर्ष से भी भाजपाई सबक न ले सके तो फिर भगवान् ही मालिक………
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