नोट बंदी असर: गरीब खोमचे वालो की सेल बढ़ी, शोरूम सन्नाटे में

EDITORIALS FARRUKHABAD NEWS

फर्रुखाबाद; प्रधानमंत्री मोदी के 500 और 500 के पुराने नोटों के चलन से बाहर कर देने के बाद गरीबो को फायदा दिखने लगा है| रोज मजदूरी करके कमाने वालो को काम मिल रहा है| पहले भवन निर्माण में कमर तोड़ने वाली मजदूरी मिलती थी इन दिनों काले धन वाले उन्हें नोट बदलवाले के लिए ले जा रहे है| बस लाइन में लगे रहो और नोट बदलवाओ| इस दौरान उनके खाने पीने और नाश्ते का इंतजाम भी किया जा रहा है| इधर बैंको के सामने भीड़ लग है उधर रेहड़ी और ठेले वालो की लाटरी निकल आई है| भीड़ वाली जगह पर केले, मूंगफली, सेव चाट के ठेले लगाने को मिल रहे है| लाइन में लगे बोर न हो इसलिए मूंगफली का लिफाफा हर तीसरे हाथ में नजर आ रहा है| अब योजना का विरोध करने का मतलब ये भी हो सकता है कि

वैसे किसी भी घटना के दो पहलु होते ही है| नजरिया आपका है कि आप किस अंदाज में किस नजरिये से उसे देखते और महसूस करते है| घर की वो महिलाए जो बाहर जाने तो तरसती रहती है उन्हें खुले में लाइन में लगकर नोट बदलना किसी नए काम को सीखने जैसा लग रहा है| हालाँकि कुछ बुजुर्ग महिलाए और पुरुष जिनकी उम्र लाइन में लगने की नहीं रह गयी है उन्हें मजबूरी में लगना पड़ रहा है| तकलीफ हो रही है| मगर ऐसे लोगो को तकलीफ केवल नोट बदलने में ही हो रही है ऐसा नहीं है| उन्हें तो कोटेदार से भी हर माह दो चार पड़ रहा है जहाँ लाइन भी है, घटतौली भी है और घटिया सामान भी मिलता है| मोदी के फैसले का विरोध करने वाले शायद उनकी तकलीफों को दूर करने के लिए कभी कोटेदारो से नहीं भिड़े होंगे| खैर नजरिया अपना अपना है| सबसे बड़ा दर्द तो उस आदमी का है जो काला धन लिए बैठा है| ऐसे लोगो की कमाई पर बट्टा लगा है|

8 नबम्बर की रात 8 बजे जब भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पुराने नोटों को बंद करने का फैसला लिया उसके तुरंत बाद हमारे एक व्यापारी मित्र ने तर्क किया की इससे भाजपा को नुक्सान होगा| समझाने में मैंने सिर्फ इतना ही कहा की पिछले 70 साल में इस देश में हर फैसले सिर्फ वोट बैंक को निशाने पर रख कर किये गए कभी राष्ट्र हित में फैसला नहीं हुआ, इस बार हुआ है| नरेगा चालू हुई इसमें 18 साल से ऊपर के लोगो को काम मिलना था| उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने लैपटॉप बाटे जिन्हें भी 18 साल से ऊपर की उम्र के लोगो को मिलना था| समाजवादी पेंशन योजना में भी शत प्रतिशत वोटरों को ही फायदा मिलना है| कुल मिलाकर चुनावों में घोषित की गयी भिविन्न पार्टियों द्वारा योजनाओ पर नजर डाले तो निशाने पर कहीं न कहीं वोटर ही रहा| शून्य से 17 साल तक उम्र वालो के लिए क्या हुआ| केंद्र सरकार का प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा का सालाना बजट कुल 23 हजार करोड़ से ज्यादा अब तक न हो पाया जबकि समाजसेवा के नाम पर देश में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के प्राइवेट स्कूलों की कमाई 1 लाख 32 हजार करोड़ सालाना से ज्यादा है| ये प्राइवेट स्कूल चलाने वाले कोई आम आदमी नहीं है| पिछले सत्तर सालो में केंद्र और राज्य सरकारों के संरक्षण में इन्हें फलने फूलने का मौका मिला| इन संस्थानों में पढ़ने वाले बच्चे वोटर नहीं थे लिहाजा इन्हें न तो लैपटॉप मिला और न ही इनके लिए केंद्र और राज्य सरकार ने मनरेगा जैसी कोई टैक्स पोषित योजना से लाभ पहुचाया| चूँकि वे वोटर नहीं थे|

आजाद भारत में देश के अपना सविधान लागू होते समय आरक्षण को दस साल के लिए लागू किया गया था मगर उसे सात बार बढ़ाया गया| चूँकि उसे बढ़ाए जाने या बंद किये जाने से वोटर प्रभावित हो रहा था| देश की सत्ता के शीर्ष पद पर बैठ कर राष्ट्र हित की जगह वोट हित में फैसला लेने का सिलसिला चलता रहा है| कोई बदलाव आया तो विरोध और समर्थन की स्थिति सामने आई है| मोदी ने नोट बंदी के फैसले से एक लकीर खीच दी है जहाँ से दो रास्ते होने तय है| वनवास या एक बार फिर राजतिलक| जनता उन्हें किस रास्ते पर भेज ये जनता पर छोड़ दीजिये| जनता को बरगलाने की कोशिश राजनितिक दल न करे तो ही अच्छा क्योंकि अब तकनीक की क्रांति का युग है| आप तो बस राजेश खन्ना पर फिल्माया और किशोर कुमार का गया फिल्म “रोटी’ के गीत का आनद ले– ये पब्लिक है सब जानती है….|