Wednesday, December 25, 2024
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बीएसए के गोद लिये स्कूल तक में ना किताबें ना पेपर, हो रही कैसी परीक्षा?

bsa-prishapeparpriska-bsaफर्रुखाबाद: कहते हैं कि बच्चे ही देश का भविष्य होते है| लेकिन जब भविष्य का ही भविष्य खराब करने की ठान ली जाये तो देश का भविष्य तो अपने आप खराब हो जायेगा| जिले में कही भी पेपर ना वितरित किये जाने की सूचना है|

जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के द्वारा गोद लिया विधालय प्राथमिक विधालय पुलिस लाइन उनके कार्यालय में ही है| जिले के सभी बेसिक शिक्षा के अधिकारी वही मौजूद रहकर शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने के कागजी घोड़े दौड़ते रहते है| लेकिन हकीकत से रूबरू होना कोई नही चाहता| यह जिम्मेदारी सरकार की है या सरकारी तन्त्र की | शिक्षा का अधिकार क्या कहता है| सरकार शिक्षा में सुधार के लाख प्रयास करे लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है| सोमबार को परिषदीय विधालयो की अर्धवार्षिक परीक्षा शुरू हुई लेकिन किताबे तो अभी तक पूर्ण रूप से बांटी ही नही गयी| हद तो तब हो गयी जब परीक्षा के दौरान बीएसए के गोद लिये उनके कार्यालय के सामने के विधालय में पेपर तक नही पंहुचे|

विधालय में पेपर के समय बच्चे मस्ती करते नजर आये| विधालय की हेड मास्टर पदमा ने बताया कि उनके विधालय में 120 बच्चे पंजीकृत है और अभी तक किताबे तक नही मिली| सोमबार को पेपर नैतिक शिक्षा का प्रथम पाली में और द्वितीय पाली में कार्यानुभव का था| लेकिन इस विधालय में तक पेपर बच्चो को नसीब नही हुआ| कई पेपर भरे बोरे बेसिक शिक्षा कार्यालय के एक कोने में कूड़े की तरह नजर आये| वही कुछ कर्मचारी लीख पीटने के लिये पेपरों को बंडल बनाकर रख रहे थे | उनका यह कहना है कि नैतिक शिक्षा का पेपर नही बांटा जाता है| लेकिन अभी तक विभाग ने नैनिहालो के प्रति अपनी जिम्मेदारी क्यों नही समझी|

सबाल बहुत है लेकिन जबाब किसी के पास नही| जनता की समस्या सुनने के लिये जो सीयूजी अफसरों को मिला है उसे वह उठाते ही नही| इस मामले पर पहले बीएसए संदीप चौधरी को फोन किया गया लेकिन कई बार फोन बजने में बाद भी नही उठा| उसके बाद नगर शिक्षा अधिकारी सुमित वर्मा को फोन पर इस सम्बंध में जानकारी मांगी तो उन्होंने भी फोन नही उठाया| सीडीओ के पास फोन किया गया तो उन्होंने भी झंझट से बचने के लिये फोन किसी अन्य को पकड़ा दिया और उसने कहा साहब बाहर है| अब किसकी गलती मानी जाये| वजह केबल इतनी है कि इन अफसरों के मासूम बच्चे इन विधालयो में नही पढते, नेताओ के बच्चे इन विधालयो में नही पढ़ते अन्यथा यह विधालय भी आज कान्बेंट से कम नही होते|

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