Monday, December 23, 2024
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21 जनवरी को पाक के ‘थंडर’ से भिड़ेगा हमारा ‘तेजस’, पूरी दुनिया देखेगी टक्कर

tejas_india1नई दिल्ली: 21 जनवरी से बहरीन में होने जा रहे एयर शो में पहली बार भारतीय तेजस का जलवा दिखाई देगा। यहीं पर तेजस का मुकाबला पाकिस्तान के लड़ाकू विमान थंडर से होगा। सब हैरान हैं कि आखिर बहरीन एयरशो के आयोजकों ने दोनों देशों के लड़ाकू विमानों को एक साथ जगह कैसे दे दी। लेकिन ऐसा हो चुका है और अगले कुछ दिन में दोनों विमानों का एक-दूसरे से मुकाबला होना तय हो गया है।

ऐसा पहली बार होगा जब भारत का लड़ाकू विमान तेजस देश के बाहर दुनिया की नजर में होगा। यही मौका है तेजस के पास पाकिस्तानी थंडर के मुकाबले खुद को बेहतर साबित करने का। सूत्रों की मानें तो बहरीन एयरशो के लिए तेजस ने काफी तैयारियां की हैं। कोशिश ये कि बहरीन के आसमान को भारतीय तेज से चमका दिया जाए।सब हैरान हैं कि आखिर बहरीन एयरशो के आयोजकों ने दोनों देशों के लड़ाकू विमानों को एक साथ जगह कैसे दे दी। लेकिन ऐसा हो चुका है। और अगले कुछ दिन में दोनों विमानों का एक-दूसरे से मुकाबला होना तय हो गया है।

रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक भारतीय तेजस पाकिस्तान के थंडर लड़ाकू विमान से कहीं ज्यादा ताकतवर है। अब बहरीन में इसे डंके की चोट पर साबित किया जाएगा। सखीर एयरबेस पर विमानों के प्रदर्शन का आकलन तकनीकी आधार पर होगा।आंकड़े इकट्ठा करने के लिए एयर शो पर बारीक नजर रखने के लिए एक ऑटोमैटिक कम्यूनिकेशन सिस्टम लगाया गया है। ये सिस्टम परखेगा तेजस और थंडर का दम। प्रोजेक्ट शुरू होने से लेकर अब तक तेजस लंबे वक्त तक विवादों से भले घिरा रहा हो लेकिन अब जब ये लड़ाकू विमान आसमान में अपना तेज दिखा रहा है तो पाकिस्तानी थंडरों की आवाज तेजस के आगे फीकी पड़ गई है।

पाकिस्तान का थंडर पांच साल पहले पाकिस्तानी वायुसेना में शामिल किया गया था। तेजस इस मामले में थंडर से पीछे है लेकिन तकनीक और ताकत दोनों की ही तुलना करें पाकिस्तानी थंडर कहीं से भी तेजस के आगे नहीं टिकता। सूत्रों की मानें तो भारतीय वायुसेना ने 20 विमानों के स्क्वाड्रन को बहरीन ले जाने की इजाजत दी है। इसमें कई प्रोटोटाइप हैं और बाकी परीक्षण विमान हैं। लेकिन बावजूद इसके पाकिस्तानी थंडर तेजस के आगे कमजोर ही है।

पाकिस्तानी थंडर और भारतीय तेजस का मुकाबला

-पाकिस्तानी थंडर JF-17 2039 किलोमीटर तक उड़ान भर सकता है जबकि तेजस उससे ज्यादा 2300 किलोमीटर की लंबी दूरी तय कर सकता है।

-पाकिस्तानी थंडर JF-17 की ईंधन क्षमता 2300 लीटर ही है जबकि भारतीय तेजस की ईंधन क्षमता 2500 लीटर है यानि ईंधन क्षमता के मामले में भी तेजस थंडर से आगे है।

-पाकिस्तानी थंडर में हवा में ईंधन भरना नामुमकिन है जबकि तेजस उस तकनीक से लैस है जिसके जरिए उसमें हवा में ही ईंधन भरा जा सकता है।

-पाकिस्तानी विमान को हवा में पहुंचने के लिए 600 मीटर लंबा रनवे चाहिए जबकि हमारा तेजस सिर्फ 460 मीटर के रनवे पर दौड़कर हवा में पहुंच सकता है।

-पाकिस्तानी थंडर एल्यूमीनियम और स्टील से बना है जबकि तेजस में कार्बन फाइबर का इस्तेमाल किया गया है। इसका मतलब ये कि तेजस पाकिस्तानी लड़ाकू विमान से कहीं ज्यादा हल्का और मजबूत है।

-भारी धातु से बने थंडर को रडार से आसानी से पकड़ा जा सकता है, निशाना बनाया जा सकता है। हवा में उड़ते हुए जमीन पर गिराया जा सकता है लेकिन तेजस के साथ ऐसा किया जाना नामुमकिन है।

-तेजस का डिजाइन भारतीय वैज्ञानिकों ने तैयार किया है जबकि पाकिस्तानी थंडर का डिजाइन पुराने रूसी विमानों से चुराया हुआ है।

-तेजस में विमान कंट्रोल की आधुनिक तकनीक है जबकि थंडर में विमान पर कंट्रोल की बेहद पुरानी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है।

-खराब मौसम में भी तेजस अपना नियंत्रण नहीं खोता जबकि पाकिस्तानी थंडर खराब मौसम में लड़खड़ाने लगता है।

-तेजस को पायलट लंबे वक्त तक लगातार उड़ा सकते हैं जबकि थंडर को उड़ाने वाले पायलट जल्दी थक जाते हैं।

-तेजस का रडार सिस्टम 100 किलोमीटर के दायरे के पार भी देख सकता है जबकि पाकिस्तानी थंडर का रडार 75 किलोमीटर से ज्यादा दूर नहीं देख सकता।

यानि छोटे-मोटे हमले करके भागना हो तो थंडर थोड़ा-बहुत अपना काम कर सकता है लेकिन अगर उसका मुकाबला आधुनिक रडार सिस्टम से लैस तेजस से हो गया तो थंडर को धूल में मिलते देर नहीं लगेगी। हवाई युद्ध में मिग 21 को आज भी दुनिया के बेहतरीन लड़ाकू विमानों में से एक माना जाता है। लेकिन बात जब तेजस मार्क वन की होगी तो ये मिग 21 विमानों से भी 21 साबित होता है। तेजस को विकसित करने वाले HAL और DRDO का दावा है कि एक पायलट वाला ये विमान दुनिया का सबसे बेहतरीन हल्का लड़ाकू विमान है।

माना जाता है कि इस साल के अंत में या 2017 तक भारतीय वायुसेना 20 तेजस विमानों के पहले स्क्वाड्रन के साथ तमिलनाडु के सुलूर एयरबेस से संचालन करने लगेगी। हालांकि तेजस की असली कहानी तब शुरू होगी जब 2021 में मार्क-टू तेजस विमान का पहला स्कवाड्रन वायुसेना में शामिल होगा। फिलहाल, भारत के पास तेजस मार्क-वन विमान है, जो हर मामले में अपनी श्रेणी के आधुनिक विमानों को टक्कर देने की ताकत रखता है।

आसान नहीं था तेजस को बनाना, 1986 में देखा गया था सपना

भारतीय वायुसेना में तेजस मिग-21 की जगह लेगा। इसकी कीमत भी दूसरे विदेशी लड़ाकू विमानों से बहुत कम है, सिर्फ 200 करोड़ रुपये। बड़ी बात ये भी है कि तेजस बनने से पहले भारत के पास ऐसे विमान बनाने का कोई अनुभव नहीं था। लिहाजा तेजस की कहानी मुश्किलों और चुनौतियों से भरी हुई है।

तेजस-भारत की स्वदेशी लड़ाकू विमान बनाने की ख्वाहिश का प्रदर्शन ही नहीं है, ये भारत की जरूरत भी है। आज दुनिया के किसी भी हिस्से में होने वाली जंग का नतीजा पैदल सेना के भरोसे नहीं हासिल किया जा सकता है। जंग के नतीजे तय करने में हवाई ताकत का किरदार सबसे अहम है। इस हवाई ताकत को हासिल करने का भरोसा सिर्फ विदेशी विमानों की बदौलत भी नहीं पाया जा सकता है यही वजह है कि भारत की कोशिश हमेशा से खुद का लड़ाकू विमान विकसित करने की रही है।

भारत जिस दिन तेजस के मार्क-2 विमानों को आसमान में उतार देगा, उस दिन वो अपनी हवाई सुरक्षा के लिए किसी भी विदेशी ताकत का मोहताज नहीं रह जाएगा। यही वजह है कि भारत ने करीब तीन दशक पहले ही अपना लड़ाकू विमान बनाने का लक्ष्य तय किया था, जिसे पाने के लिए 1983 में डीआरडीओ और एचएएल को LCA विकसित करने की जिम्मेदारी दी गई। 1984 में LCA की डिजाइन तैयार करने के लिए एयरोनॉटिकल डेवलेपमेंट एजेंसी बनाई गई, 1986 में LCA कार्यक्रम के लिए सरकार ने 575 करोड़ का बजट भी स्वीकृत किया।

लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट को बनाने की योजना तैयार होने से पहले भारत के पास ऐसे विमान बनाने का कोई तजुर्बा नहीं था। लिहाजा तेजस को बनाने की कहानी बाधाओं और चुनौतियों से पार पाने की कहानी है। जिस प्रोजेक्ट के लिए शुरुआत में 575 करोड़ का बजट रखा गया था उसकी लागत अब पांच गुना से ज्यादा बढ़ चुकी है। हालांकि डीआरडीओ का दावा है कि तेजस के विकास की लागत सिर्फ

8000 करोड़ ही है, जिसे वो घाटे का सौदा नहीं मानते।

तेजस को फिलहाल अगर कोई चीज पूरी तरह स्वदेशी होने से रोकती है तो वो है उसका इंजन। तेजस में अमेरिकी इंजन लगा हुआ है। लेकिन कावेरी नाम से भारतीय इंजन के विकास के दौरान भारतीय वैज्ञानिकों ने जो तकनीकी जानकारी हासिल की है वो आने वाले वक्त में स्वदेशी इंजन के विकास की उम्मीद बांधती है। तमाम सीमाओं के बावजूद तेजस ने एक के बाद एक सफलता के झंडे गाड़े हैं।

-4 जनवरी 2001 को एलसीए ने पहली सफल उड़ान भरी। तब तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने इसका नाम एलसीए से बदलकर तेजस रखा था।

-2006 में तेजस ने पहली बार सुपरसोनिक उड़ान भरी, यानी आवाज की रफ्तार से तेज उड़ान।

-इसके बाद 2009 में सरकार ने तेजस के लिए 8,000 करोड़ रुपये के बजट को हरी झंडी दे दी।

स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस का इंतजार अब वायुसेना को ही नहीं नौसेना को भी है। इसका नौसैनिक संस्करण भारत के पहले स्वदेशी विमान वाहक पोत के सपने को भी साकार करेगा। यकीनन जिस दिन पूरी तरह स्वदेशी तेजस का सपना सच होगा उस दिन आधुनिक हथियार प्रणालियों के मामले में भारत बड़ी महाशक्तियों के कतार में शामिल हो जाएगा। तेजस की सफलता की ये कहानी कई और सफलताओं को जन्म देगी।

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