मन की बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्या कहा

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modimanनई दिल्ली:प्यारे देशवासियो, नमस्ते।

दीपावली के पावन पर्व के दरम्यान आपने छुट्टियाँ बहुत अच्छे ढंग से मनाई होंगी। कहीं जाने का अवसर भी मिला होगा और नए उमंग-उत्साह के साथ व्यापार रोज़गार भी प्रारंभ हो गए होंगे। दूसरी ओर क्रिसमस की तैयारियाँ भी शुरू हो गई होंगी। समाज जीवन में उत्सव का अपना एक महत्त्व होता है। कभी उत्सव घाव भरने के लिए काम आते हैं, तो कभी उत्सव नई ऊर्जा देते हैं। लेकिन कभी-कभी उत्सव के इस समय में जब संकट आ जाए तो ज्यादा पीड़ादायक हो जाता है, और पीड़ादायक लगता है। दुनिया के हर कोने में से लगातार प्राकृतिक आपदा की खबरें आया ही करती हैं। और न कभी सुना हो और न कभी सोचा हो, ऐसी-ऐसी प्राकृतिक आपदाओं की खबरें आती रहती हैं।

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कितना तेजी से बढ़ रहा है यह अब हम लोग अनुभव कर रहे हैं। हमारे ही देश में, पिछले दिनों जिस प्रकार से अति वर्षा और वो भी बेमौसमी वर्षा और लम्बे अरसे तक वर्षा, खासकर के तमिलनाडु में जो नुकसान हुआ है, और राज्यों को भी इसका असर हुआ है। कई लोगों की जानें गईं। मैं इस संकट की घड़ी में उन सभी परिवारों के प्रति अपनी शोक-संवेदना प्रकट करता हूँ। राज्य सरकारें राहत और बचाव कार्यों में पूरी शक्ति से जुट जाती हैं। केंद्र सरकार भी हमेशा कंधे से कंधा मिलाकर काम करती है। अभी भारत सरकार की एक टीम तमिलनाडु गई हुई है। लेकिन मुझे विश्वास है तमिलनाडु की शक्ति पर इस संकट के बावजूद भी वो फिर एक बार बहुत तेज गति से आगे बढ़ने लग जाएगा और देश को आगे बढ़ाने में जो उसकी भूमिका है वो निभाता रहेगा।

लेकिन जब ये चारों तरफ संकटों की बातें देखते हैं तो हमें इसमें काफी बदलाव लाने की आवश्यकता हो गई है। आज से 15 साल पहले प्राकृतिक आपदा एक कृषि विभाग का हिस्सा हुआ करता था, क्योंकि तब ज्यादा से ज्यादा प्राकृतिक आपदाएँ यानि अकाल यहीं तक सीमित था। आज तो इसका रूप ही बदल गया है। हर स्तर पर हमें अपनी क्षमता निर्माण के लिए काम करना बहुत अनिवार्य हो गया है। सरकारों ने, सिविल सोसायटी ने, नागरिकों ने, हर छोटी-मोटी संस्थाओं ने बहुत वैज्ञानिक तरीके से क्षमता निर्माण के लिए काम करना ही पड़ेगा। नेपाल के भूकंप के बाद मैंने पकिस्तान के प्रधानमंत्री श्रीमान नवाज शरीफ से बात की थी। और मैंने उनसे एक सुझाव दिया था कि हम सार्क देशों ने मिल करके आपदा से निबटने की तैयैरी के लिए एक संयुक्त अभ्यास करना चाहिए। मुझे खुशी है कि सार्क देशों के एक मेजवार्ता और सेमिनार वर्कशॉप दिल्ली में संपन्न हुआ। एक अच्छी शुरुआत हुई है।

मुझे आज पंजाब के जलंधर से लखविंदर सिंह का फोन मिला है। ‘मैं लखविंदर सिंह, पंजाब जिला जलंधर से बोल रहा हूँ। हम यहाँ पर जैविक खेती करते हैं और काफी लोगों को खेती के बारे में गाइड भी करते हैं। मेरा एक सवाल है कि जो ये खेतों को लोग आग लगाते हैं, पुआल को या गेहूँ के झाड़ को कैसे इनको लोगों को गाइड किया जाए कि धरती माँ को जो सूक्ष्म जीवाणु हैं, उन पर कितना खराब कर रहे हैं और जो ये प्रदूषण हो रहा है दिल्ली में, हरियाणा में, पंजाब में इससे कैसे राहत मिले। लखविंदर सिंह जी मुझे बहुत खुशी हुई आपके संदेश को सुन कर। एक तो आनंद इस बात का हुआ कि आप जैविक खेती करने वाले किसान हैं। और स्वयं जैविक खेती करते हैं ये इतना ही नहीं आप किसानों की समस्या को भली-भाँति समझते हैं और आपकी चिंता सही है लेकिन ये सिर्फ पंजाब, हरियाणा में ही होता है ऐसा नहीं है।

पूरे हिंदुस्तान में ये हम लोगों की आदत है और परंपरागत रूप से हम इसी प्रकार से अपने फसल के अवशेषों को जलाने के रास्ते पर चल पड़ते हैं। एक तो पहले नुकसान का अंदाज नहीं था। सब करते हैं इसलिए हम करते हैं वो ही आदत थी। दूसरा, उपाय क्या होते हैं उसका भी प्रशिक्षण नहीं हुआ। और उसके कारण ये चलता ही गया, बढ़ता ही गया और आज जो जलवायु परिवर्तन का संकट है, उसमें वो जुड़ता गया। और जब इस संकट का प्रभाव शहरों की ओर आने लगा तो जरा आवाज भी सुनाई देने लगी।

लेकिन आपने जो दर्द व्यक्त किया है वो सही है। सबसे पहला तो उपाय है हमें हमारे किसान भाइयों-बहनों को प्रशिक्षित करना पड़ेगा उनको सत्य समझाना पड़ेगा कि फसल के अवशेष जलाने से हो सकता है समय बचता होगा, मेहनत बचती होगी, अगली फसल के लिए खेत तैयार हो जाता होगा लेकिन ये सच्चाई नहीं है। फसल के अवशेष भी बहुत कीमती होते हैं। वे अपने आप में एक जैविक खाद होता है। हम उसको बर्बाद करते हैं। इतना ही नहीं है अगर उसको छोटे-छोटे टुकड़े कर दिये जाएँ तो वो पशुओं के लिए तो सूखा चारा बन जाता है। दूसरा ये जलाने के कारण जमीन की जो ऊपरी परत होती है वो जल जाती है।

मेरे किसान भाई-बहन पल भर के लिए ये सोचिए कि हमारी हड्डियाँ मजबूत हों, हमारा हृदय मज़बूत हो, किडनी अच्छी हो, सब कुछ हो लेकिन अगर शरीर के ऊपर की चमड़ी जल जाए तो क्या होगा? हम जिंदा बच पाएंगे क्या? हृदय साबुत होगा तो भी जिंदा नहीं बच पाएंगे। जैसे शरीर की हमारी चमड़ी जल जाए तो जीना मुश्किल हो जाता है, वैसे ही फसल के अवशेष ठूंठ जलाने से सिर्फ ठूंठ नहीं जलते, ये पृथ्वी माता की चमड़ी जल जाती है।

हमारी जमीन के ऊपर की परत जल जाती है, जो हमारे उर्वरा भूमि को मृत्यु की ओर धकेल देती है और इसलिए उसके सकारात्मक प्रयास करने चाहिए। इस ठूंठ को फिर से एक बार जमीन में दबोच दिया, तो भी वो खाद बन जाता है या अगर किसी गड्ढे में ढेर करके केंचुए डालकर के थोड़ा पानी डाल दिया तो उत्तम प्रकार का जैविक खाद बन करके आ जाता है। पशु के खाने के काम तो आता ही आता है, और हमारी जमीन बचती है इतना ही नहीं, उस जमीन में तैयार हुआ खाद उसमें डाला जाए, तो वो दोगुनी फायदा देती है।

मुझे एक बार केले की खेती करने वाले किसान भाइयों से बातचीत करने का मौका मिला। और उन्होंने मुझे एक बड़ा अच्छा अनुभव बताया। पहले वो जब केले की खेती करते थे और जब केले की फसल समाप्त होती थी तो केले के जो ठूंठ रहते थे, उसको साफ करने के लिए प्रति हेक्टेयर कभी-कभी उनको 5 हजार, 10 हजार, 15 हजार रूपये का खर्च करना पड़ता था। और जब तक उसको उठाने वाले लोग ट्रैक्टर-वैक्टर लेकर आते नहीं तब तक वो ऐसे ही खड़ा रहता था।

लेकिन कुछ किसानों ने साबित किया। उन्होने उस ठूंठ के ही 6-6, 8-8 इंच के टुकड़े किए और उसको जमीन में गाड़ दिए। इससे अनुभव ये आया कि इस केले के ठूंठ में इतना पानी होता है कि जहाँ उसको गाड़ दिया जाता है, वहाँ अगर कोई पेड़ है, कोई पौधा है, कोई फसल है तो तीन महीने तक बाहर के पानी की जरुरत नहीं पड़ती। वो ठूंठ में जो पानी है, वही पानी फसल को जिन्दा रखता है। और आज तो उनके ठूंठ भी बड़े कीमती हो गए हैं। उनके ठूंठ में से ही उनको आय होने लगी है। जो पहले ठूंठ की सफाई का खर्चा करना पड़ता था, आज वो ठूंठ की मांग बढ़ गई है। छोटा सा प्रयोग भी कितना बड़ा फायदा कर सकता है, ये तो हमारे किसान भाई किसी भी वैज्ञानिक से कम नहीं हैं।

प्यारे देशवासियो आगामी 3 दिसम्बर को ‘अंतरराष्ट्रीय विकलांग दिवस’ पर पूरा विश्व याद करेगा। पिछली बार ‘मन की बात’ में मैंने ‘अंगदान’ पर चर्चा की थी। ‘अंगदान’ के लिए मैंने नोटो के हेल्पलाइन की भी चर्चा की थी और मुझे बताया गया कि मन की उस बात के बाद फोन कॉल में करीब 7 गुना वृद्धि हो गई और वेबसाइट पर ढ़ाई गुना वृद्धि हो गई। 27 नवम्बर को ‘भारतीय अंगदान दिवस’ के रूप में मनाया गया। समाज के कई नामी व्यक्तियों ने हिस्सा लिया। फिल्म अभिनेत्री रवीना टंडन सहित, बहुत नामी लोग इससे जुड़े। ‘अंगदान’ मूल्यवान जिंदगियों को बचा सकता है।

‘अंगदान’ एक प्रकार से अमरता ले करके आ जाता है। एक शरीर से दूसरे शरीर में जब अंग जाता है तो उस अंग को नया जीवन मिल जाता है लेकिन उस जीवन को नई जिंदगी मिल जाती है। इससे बड़ा सर्वोत्तम दान और क्या हो सकता है। ट्रांसप्लांट के लिए इंतज़ार कर रहे मरीजों, अंगदानकर्ताओं, अंग ट्रांसप्लांट की एक राष्ट्रीय पंजीकरण 27 नवम्बर को लांच कर दी गई है। नोटो का लोगो, डोनर कार्ड और स्लोगन डिजायन करने के लिए मायगॉव.इन (mygov.in) के द्वारा एक राष्ट्रीय प्रतियोगिता रखी गई और मेरे लिए ताज्जुब था कि इतने लोगों इतना हिस्सा लिया और इतने इनोवेटिव और बड़ी संवेदना के साथ बातें बताईं। मुझे विश्वास है कि इस क्षेत्र पर भी व्यापक जागरूकता बढ़ेगी और सच्चे अर्थ में जरूरतमंद को उत्तम से उत्तम मदद मिलेगी, क्योंकि ये मदद कहीं से और से नहीं मिल सकती जब तक कि कोई दान न करे।

जैसे मैंने पहले बताया कि 3 दिसम्बर विकलांग दिवस के रूप में मनाया जाता है। शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांग वे भी एक अप्रतिम साहस और सामर्थ्य के धनी होते हैं। कभी-कभी पीड़ा तब होती है जब कहीं कभी उनका उपहास हो जाता है। कभी-कभार करुणा और दया का भाव प्रकट किया जाता है। लेकिन अगर हम हमारी दृष्टि बदलें, उनकी ओर देखने का नजरिया बदलें तो ये लोग हमें जीने की प्रेरणा दे सकते हैं। कुछ कर गुजरने की प्रेरणा दे सकते हैं। हम छोटी सी भी मुसीबत आ जाए तो रोने के लिए बैठ जाते हैं। तब याद आता है कि मेरा तो संकट बहुत छोटा है, ये कैसे गुजारा करता है? ये कैसे जीता है? कैसे काम करता है? और इसलिए ये सब हमारे लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। उनकी संकल्प शक्ति, उनका जीवन के साथ जूझने का तरीका और संकट को भी सामर्थ्य में परिवर्तित कर देने की उनकी ललक काबिले-दाद होती है।

जावेद अहमद, मैं आज उनकी बात बताना चाहता हूँ। 40–42 साल की उम्र है। 1996 कश्मीर में, जावेद अहमद को आतंकवादियों ने गोली मार दी थी। वे आतंकियों के शिकार हो गए, लेकिन बच गए। लेकिन, आतंकवादियों की गोलियों के कारण किडनी गंवा दी। आँत का एक हिस्सा खो दिया। गंभीर प्रकृति की स्पाइनल इंजरी हो गई। अपने पैरों पर खड़े होने का सामर्थ्य हमेशा-हमेशा के लिए चला गया, लेकिन जावेद अहमद ने हार नहीं मानी।

आतंकवाद की चोट भी उनको चित्त नहीं कर पायी। उनका अपना जज्बा, लेकिन सबसे बड़ी बात ये है बिना कारण एक निर्दोष इंसान को इतनी बड़ी मुसीबत झेलनी पड़ी हो, जवानी खतरे में पड़ गई हो लेकिन न कोई आक्रोश, न कोई रोष इस संकट को भी जावेद अहमद ने संवेदना में बदल दिया। उन्होंने अपने जीवन को समाजसेवा में अर्पित कर दिया। शरीर साथ नहीं देता है लेकिन 20 साल से वे बच्चों की पढ़ाई में डूब गए हैं।

शारीरिक रूप से विकलांग लोगों के लिए अवसंरचना में सुधार कैसे आए? सार्वजनिक स्थानों पर, सरकारी दफ्तरों में विकलांग के लिए व्यवस्थाएँ कैसे विकसित की जाएँ? उस पर वो काम कर रहे हैं। उन्होंने अपनी पढ़ाई भी उसी दिशा में ढाल दी। उन्होंने समाज सेवा में मास्टर्स की डिग्री ली और एक समाजसेवक के रूप में एक जागरूक नागरिक के नाते विकलांगों के मसीहा बन कर के वे आज एक साइलेंट क्रांति कर रहे है। क्या जावेद का जीवन हिंदुस्तान के हर कोने में हमे प्रेरणा देने के लिए काफी नहीं है क्या?

मैं जावेद अहमद के जीवन को, उनकी इस तपस्या को और उनके समर्पण को 3 दिसम्बर को विशेष रूप से याद करता हूँ। समय अभाव में मैं भले ही जावेद की बात कर रहा हूँ लेकिन हिंदुस्तान के हर कोने में ऐसे प्रेरणा के दीप जल रहे हैं। जीने की नई रोशनी दे रहे हैं, रास्ता दिखा रहे हैं। 3 दिसम्बर ऐसे सब हर किसी को याद कर के उनसे प्रेरणा पाने का अवसर है।

हमारा देश इतना विशाल है। बहुत-सी बातें होती हैं जिसमें हम सरकारों पर निर्भर होते हैं। मध्यम-वर्ग का व्यक्ति हो, निम्न-मध्यम वर्ग का व्यक्ति हो, गरीब हो, दलित, पीड़ित, शोषित, वंचित उनके लिए तो सरकार के साथ सरकारी व्यवस्थाओं के साथ लगातार संबंध आता है। और एक नागरिक के नाते जीवन में कभी न कभी तो किसी न किसी सरकारी बाबू से बुरा अनुभव आता ही आता है। और वो एकाध बुरा अनुभव जीवन भर हमें सरकारी व्यवस्था के प्रति देखने का हमारा नजरिया बदल देता है। उसमें सच्चाई भी है लेकिन कभी-कभी इसी सरकार में बैठे हुए लाखों लोग सेवा-भाव से, समर्पण-भाव से, ऐसे उत्तम काम करते हैं जो कभी हमारी नज़र में नहीं आते। कभी हमें पता भी नहीं होता है, क्योंकि इतना सहज होता है हमें पता ही नहीं होता है कि कोई सरकारी व्यवस्था, कोई सरकारी मुलाजिम ये काम कर रहा है।

हमारे देश में आशा कार्यकर्ताओं का पूरे देश में नेटवर्क है। हम भारत के लोगों के बीच में कभी-कभी आशा वर्कर्स के संबंध में चर्चा न मैंने सुनी है न आपने सुनी होगी। लेकिन मुझे जब बिलगेट्स फाउंडेशन के विश्व प्रसिद्ध परिवार के रूप में दुनिया में उनकी सफलता एक मिसाल बन चुकी है। ऐसे बिलगेट्स और मिलिंडागेट्स उन दोनों को हमने संयुक्त रूप से पद्म विभूषण दिया था पिछली बार। वे भारत में बहुत सामाजिक काम करते हैं। उनका अपना निवृत्ति का समय और जीवन भर जो कुछ भी कमाया है गरीबों के लिए काम करने में खपा रहे हैं।वे जब भी आते हैं, मिलते हैं और जिन-जिन आशा कार्यकर्ताओं के साथ उनको काम करने का अवसर मिला है, उनकी इतनी तारीफ करते हैं, इतनी तारीफ करते हैं, और उनके पास कहने के लिए इतना होता है कि ये आशा-वर्कर को क्या समर्पण है कितनी मेहनत करते है। नया-नया सीखने के लिए कितना उत्साह होता है। ये सारी बातें वो बताते हैं।

पिछले दिनों उड़ीसा गवर्नमेंट ने एक आशा कार्यकर्ता का स्वतंत्रता दिवस पर विशेष सम्मान किया। उड़ीसा के बालासोर जिले का एक छोटा सा गाँव तेंदागाँव एक आशा-कार्यकर्ता और वहाँ की सारी जनसंख्या शिड्यूल-ट्राइब की है। अनुसूचित-जनजातियों के वहाँ लोग हैं, गरीबी है और मलेरिया से प्रभावित क्षेत्र है। और इस गाँव की एक आशा-वर्कर, जमुना मणिसिंह उसने ठान ली कि अब मैं इस तेंदागाँव में मलेरिया से किसी को मरने नहीं दूँगी। वो घर-घर जाना छोटे सा भी बुखार की खबर आ जाए तो पहुँच जाना। उसको जो प्राथमिक व्यवस्थाएं सिखाई गई हैं उसके आधार पर उपचार के लिए लग जाना।

हर घर कीटनाशक मच्छरदानी का उपयोग करे उस पर बल देना। जैसे अपना ही बच्चा ठीक से सो जाए और जितनी केयर करनी चाहिए वैसी आशा वर्कर, जमुना मणिसिंह का पूरा गाँव मच्छरों से बच के रहे इसके लिए पूरे समर्पण भाव से काम करती रहती हैं। और उसने मलेरिया से मुकाबला किया, पूरे गाँव को मुकाबला करने के लिए तैयार किया।ऐसे तो कितनी जमुना मणि होंगी, कितने लाखों लोग होंगे जो हमारे अगल-बगल में होंगे। हम थोड़ा सा उनकी तरफ एक आदर भाव से देखेंगे।ऐसे लोग हमारे देश की कितनी बड़ी ताकत बन जाते हैं। समाज के सुख-दुख के कैसे बड़े साथी बन जाते हैं। मैं ऐसे सभी आशा कार्यकर्ताओं को जमुना मणि के माध्यम से उनका गौरवगान करता हूँ।

मेरे प्यारे नौजवान मित्रो, मैंने खास युवा पीढ़ी के लिए जो कि इंटरनेट पर, सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं। मायगॉव(mygov) उस पर मैंने 3 ई- किगाबें रखी है। एक ई-बुक है स्वच्छ भारत की प्रेरक घटनाओं को लेकर के, सांसदों के आदर्श ग्राम के संबंध में और हेल्थ सेक्टर के संबंध में, स्वास्थ्य के संबंध में। मैं आपसे आग्रह करता हूँ आप इसको देखिए। देखिए इतना ही नहीं औरों को भी दिखाइए इसको पढ़िए और हो सकता है आपको कोई ऐसी बातें जोड़ने का मन कर जाए। तो ज़रूर आप मायगॉव डॉट इन (MyGov.in) को भेज दीजिए।

ऐसी बातें ऐसी होती है कि बहुत जल्द हमारे ध्यान में नहीं आती है लेकिन समाज की तो वही सही ताकत होती है। सकारात्मक शक्ति ही सबसे बड़ी ऊर्जा होती है। आप भी अच्छी घटनाओं को शेयर करें। इन ई-किताबों को शेयर करें। ई-किताबों पर चर्चा करें और अगर कोई उत्साही नौजवान इन्हीं ई-किताबों को लेकर के अड़ोस-पड़ोस के स्कूलों में जाकर के आठवीं, नोवीं, दसवीं कक्षा के बच्चों को बताएं कि देखों भाई ऐसा यहाँ हुआ ऐसा वहाँ हुआ। तो आप सच्चे अर्थ में एक समाज शिक्षक बन सकते है। मैं आपको निमंत्रण देता हूँ आइए राष्ट्र निर्माण में आप भी जुड़ जाइए।

मेरे प्यारे देशवासियों, पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन से चिंतित है। जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, डगर-डगर पर उसकी चर्चा भी है चिंता भी है और हर काम को अब करने से पहले एक मानक के रूप में इसको स्वीकृति मिलती जा रही है। पृथ्वी का तापमान अब बढ़ना नहीं चाहिए। ये हर किसी की जिम्मेवारी भी है चिंता भी है। और तापमान से बचने का एक सबसे पहला रास्ता है, ऊर्जा की बचत “उर्जा संरक्षण” 14 दिसम्बर “राष्ट्रीय उर्जा संरक्षण दिवस” है। सरकार की तरफ से कई योजनाएं चल रही हैं। एलइडी बल्ब की योजना चल रही है। मैंने एक बार कहा था कि पूर्णिमा की रात को स्ट्रट लाइट्स बंद करके अँधेरा करके घंटे भर पूर्ण चाँद की रोशनी में नहाना चाहिए।

उस चाँद की रोशनी का अनुभव करना चाहिए। एक किसी मित्र ने मुझे एक लिंक भेजा था देखने के लिए और मुझे उसको देखने का अवसर मिला, तो मन कर गया कि मैं आपको भी ये बात बताऊँ। वैसे इसका क्रेडिट तो जी-न्यूज को जाता है। क्योंकि वो लिंक जी-न्यूज का था। कानपुर में नूरजहाँ करके एक महिला, टीवी पर से लगता नहीं है कि कोई उसको ज्यादा पढ़ने का सौभाग्य मिला होगा। लेकिन एक ऐसा काम वो कर रही हैं जो शायद किसी ने सोचा ही नहीं होगा। वह सौर ऊर्जा से सूर्य शक्ति का उपयोग करते हुए गरीबों को रोशनी देने का काम कर रही है।

वह अंधेरे से जंग लड़ रही है और अपने नाम को रोशन कर रही है। उसने महिलाओं की एक समिति बनाई है और सौर ऊर्जा से चलने वाली लालटेन उसका एक प्लांट लगाया है और महीने के 100/- रू. के किराए से वो लालटेन देती है। लोग शाम को लालटेन ले जाते हैं, सुबह आकर के फिर चार्जिंग के लिए दे जाते हैं और बहुत बड़ी मात्रा में करीब मैंने सुना है कि 500 घरों में लोग आते हैं लालटेन ले जाते हैं। रोज का करीब 3-4 रू. का खर्च होता है लेकिन पूरे घर में रोशनी रहती है और ये नूरजहाँ उस प्लांट में सौर उर्जा से ये लालटेन को रिचार्ज करने का दिनभर काम करती रहती है। अब देखिए जलवायु परिवर्तन के लिए विश्व के बड़े-बड़े लोग क्या-क्या करते होंगे लेकिन एक नूरजहाँ शायद हर किसी को प्रेरणा दे, ऐसा काम कर रही है। और वैसे भी, नूरजहाँ को तो मतलब ही है संसार को रोशन करना। इस काम के द्वारा रोशनी फैला रही हैं। मैं नूरजहाँ को बधाई देता हूँ और मैं जी टीवी को भी बधाई देता हूँ क्योंकि उन्होंने कानपुर के एक छोटे से कोने में चल रहा इस काम देश और दुनिया के सामने प्रस्तुत कर दिया। बहुत-बहुत बधाई।

मुझे उत्तर प्रदेश के श्रीमान अभिषेक कुमार पाण्डे ने एक फोन किया है ‘जी नमस्कार मैं अभिषेक कुमार पाण्डे बोल रहा हूँ गोरखपुर से बतौर उद्यमी मैं आज यहाँ कार्यरत हूँ, प्रधानमन्त्री जी को मैं बहुत ही बधाइयाँ देना चाहूँगा कि उन्होंने एक कार्यक्रम शुरू किया मुद्रा बैंक, हम प्रधानमंत्री जी से जानना चाहेंगे कि जो भी ये मुद्रा बैंक चल रहा है इसमें किस तरह से हम जैसे उद्यमियों को सपोर्ट किया जा रहा है? सहयोग किया जा रहा है?

अभिषेक जी धन्यवाद। गोरखपुर से आपने जो मुझे संदेश भेजा। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना जिसको धनराशि नहीं मिलती है उनको धनराशि मिले की एक योजना है और मकसद है अगर मैं सरल भाषा में समझाऊं तो “3 तीन ई- इंटरप्रइज, अर्निंग और इंपावरमेंट। मुद्रा इंटरप्राइज को बल प्रदान कर रहा है, मुद्रा कमाई के अवसर पैदा करता है और मुद्रा सच्चे अर्थ में सशक्तिकरण करता है। छोटे-छोटे उद्यमियों को मदद करने के लिए ये मुद्रा योजना चल रही है। वैसे मैं जिस गति से जाना चाहता हूँ वो गति तो अभी आनी बाकी है। लेकिन शुरुआत अच्छी हुई है इतने कम समय में करीब 66 लाख लोगों को 42 हजार करोड़ रूपया प्रधानमंत्री मुद्रा योजना से उन लोगों को मिला। धोबी हो, नाई हो, अखबार बेचनेवाला हो, दूध बेचनेवाला हो।

छोटे-छोटे कारोबार करने वाले लोग और मुझे तो खुशी इस बात की हुई कि करीब इन 66 लाख में 24 लाख महिलाए है। और ज्यादातर ये मदद पाने वाले एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के लोग हैं जो खुद मेहनत करके अपने पैरों पर सम्मान से परिवार को चलाने का प्रयास करते हैं। अभिषेक ने तो खुद ने अपने उत्साह की बात बताई है। मेरे पास भी काफी कुछ खबरें आती रहती हैं। मुझे अभी किसी ने बताया कि मुंबई में कोई शैलेश भोसले करके हैं। उन्होंने मुद्रा योजना के तहत बैंक से उनको साढ़े आठ लाख रुपयों का कर्ज मिला और उन्होंने सीवेज ड्रेस, सफाई का व्यापार शुरू किया। मैंने अपने स्वच्छता अभियान के समय संबंध में कहा था कि स्वच्छता अभियान ऐसा है के जो नए उद्समियों को तैयार करेगा। और शैलेश भोसले ने कर दिखाया। वे एक टैंकर लाए हैं उस काम को कर रहे हैं और मुझे बताया गया कि इतने कम समय में 2 लाख रूपए तो उन्होंने बैंक को वापिस भी कर दिया।

आखिरकार हमारा मुद्रा योजना के तहत ये ही इरादा है। मुझे भोपाल की ममता शर्मा के विषय में किसी ने बताया कि उसको ये प्रधानमंत्री मुद्रा योजना से बैंक से 40 हजार रूपए मिले। वो बटुवा बनाने का काम कर रही है। और बटुवा बनाती है लेकिन पहले वो ज्यादा ब्याज से पैसे लाती थी और बड़ी मुश्किल से कारोबार को चलती थी। अब उसको अच्छी मात्रा में एक साथ रूपया हाथ आने के कारण उसने अपने काम को आधिक अच्छा बना दिया। और पहले जो अतिरिक्त ब्याज के कारण और, और कारणों से उसको जो अधिक खर्चा होता था इन दिनों ये पैसे उसके हाथ में आने के कारण हर महीना करीब-करीब एक हजार रूपए ज्यादा बचने लग गया और उनके परिवार को एक अच्छा व्यवसाय भी धीरे-धीरे पनपने लग गया। लेकिन मैं चाहूँगा कि योजना का और प्रचार हो। हमारी सभी बैंक और ज्यादा संवेदनशील हों और ज्यादा से ज्यादा छोटे लोगों को मदद करें। सचमुच में देश की अर्थव्यवस्था को यही लोग चलाते हैं। छोटा-छोटा काम करने वाले लोग ही देश के अर्थ का आर्थिक शक्ति होते हैं। हम उसी को बल देना चाहतें है। अच्छा हुआ है, लेकिन और अच्छा करना है।

मेरे प्यारे देशवासियो, 31 अक्टूबर सरदार पटेल की जयंती के दिन मैंने एक भारत-श्रेष्ठ भारत की चर्चा की थी। ये चीजे होती है जो समाज जीवन में निरंतर जागरूकता बनी रहनी चाहिए। ‘राष्ट्रायाम जाग्रयाम व्यम’ देश की एकता ये संस्कार सरिता चलती रहनी चाहिए। एक भारत-श्रेष्ठ भारत इसको मैं एक योजना का रूप देना चाहता हूँ। मायगाव (MyGov) ने उस पर सुझाव माँगे थे। कार्यक्रम की संरचना कैसी हो? लोगो क्या हो? जन-भागीदारी कैसे बढ़े? क्या रूप हो? सारे सुझाव के लिए मैंने कहा था। मुझे बताया गया कि काफी सुझाव आ रहे हैं। लेकिन मैं और अधिक सुझाव की अपेक्षा करता हूँ। बहुत खास योजना की अपेक्षा करता हूँ। और मुझे बताया गया है कि इसमें हिस्सा लेने वालों को सर्टिफिकेट मिलने वाला है। कोई बड़े-बड़े पुरस्कार भी घोषित किये गए हैं। आप भी अपना दिमाग लगाइए।

एकता अखंडता के इस मन्त्र को ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ इस मन्त्र को एक-एक हिन्दुस्तानी को जोड़ने वाला कैसे बना सकते हैं। कैसी योजना हो, कैसा कार्यक्रम हो। जानदार भी हो, शानदार भी हो, प्राणवान भी हो और हर किसी को जोड़ने के लिए सहज सरल हो। सरकार क्या करे? समाज क्या करे? सिविल सोसायटी क्या करे? बहुत सी बातें हो सकती हैं। मुझे विश्वास है कि आपके सुझाव ज़रूर काम आएंगे।

मेरे प्यारे भाइयो-बहनो, ठण्ड का मौसम शुरू हो रहा है लेकिन ठण्ड में खाने का तो मजा आता ही आता है। कपड़े पहनने का मजा आता है, लेकिन मेरा आग्रह रहेगा व्यायाम कीजिए। मेरा आग्रह रहेगा शरीर को तंदुरुस्त रखने के लिए जरूर कुछ न कुछ समय ये अच्छे मौसम का उपयोग व्यायाम-योग उसके लिए जरूर करेंगे। और परिवार में ही माहौल बनाए, परिवार का एक उत्सव ही हो, एक घंटा सब मिल करके यही करना है। आप देखिए कैसी चेतना आ जाती है।और पूरे दिनभर शरीर कितना साथ देता है। तो अच्छा मौसम है, तो अच्छी आदत भी हो जाए। मेरे प्यारे देशवासियो को फिर एक बार बहुत बहुत शुभकामनाएँ।