नई दिल्ली। 2004 में केंद्र में सत्ताधारी अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार की जीत के एग्जिट पोल दावे कर रहे थे और कांग्रेस को सत्ता में आने की कोई उम्मीद नहीं थी लेकिन परिणामों ने सभी को चौंका दिया था। अटल के भरोसे लड़ रही एनडीए बहुमत हासिल नहीं कर सकी और इसके बाद कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए गठबंधन अस्तित्व में आया।
5 साल सत्ता संभालने के बाद 2009 के लोकसभा चुनाव आए। इन चुनावों में आडवाणी जैसा मजबूत छवि वाला नेता एनडीए का चेहरा बना। इस बार भी एग्जिट पोल यूपीए की हार के दावे कर रहे थे लेकिन परिणाम आए तो गणित भिड़ा रहे पंडित बगले झांकते नजर आने लगे। यूपीए-2 2009 में केंद्र पर काबिज हुआ।एग्जिट पोल में दिखाई दे रही दोनों गठबंधनों की टक्कर की बात भी गलत साबित हुई और एनडीए को बहुमत मिलने का अनुमान भी।
अब एक बार फिर एग्जिट पोल की बातें बिहार चुनाव में धुआं हो गई हैं। एग्जिट पोल में दिखाई दे रही दोनों गठबंधनों की टक्कर की बात भी गलत साबित हुई और एनडीए को बहुमत मिलने का अनुमान भी। और सच में, राज्य के चुनाव परिणामों ने एक बार फिर 2004 और 2009 के आम चुनावों की ही याद दिला दी है।5 नवंबर को शाम 5 बजे जब बिहार में आखिरी दौर का मतदान खत्म हुआ न्यूज चैनलों पर आए एग्जिट पोल की बाढ़ ने सभी को हैरत में डाल दिया। लगभग सभी जगह दोनों गठबंधनों के बीच कांटे की टक्कर दिखाई गई। बिहार की राजनीति में दिलचस्पी ले रहे लोग इसे देखकर चकरा गए थे। सबसे ज्यादा दिलचस्प टुडेज चाणक्य का सर्वे रहा जिसमें एनडीए को 155 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया।
चाणक्य के सर्वे से पेंच और फंस गया क्योंकि बीते कई चुनाव से इसने अपनी अहमियत को साबित किया था। इसके अलावा इंडिया टुडे-सिसरो और एनडीटीवी के सर्वे में भी एनडीए को पूर्ण बहुमत मिलने की बात कही गई थी।रविवार को जैसे ही चुनाव परिणाम आने शुरू हुए बीजेपी वाला एनडीए गठबंधन तेजी से आगे बढ़ा। सभी को लगा कि ‘चाणक्य’ की भविष्यवाणी सही साबित होने वाली है लेकिन जैसे ही रुझानों का सिलसिला और आगे बढ़ा स्थिति 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव जैसी हो गई। वहां भी बीजेपी ने शुरुआती बढ़त बनाकर खुद को 100 के पास पहुंचा दिया था लेकिन फिर गिनती आगे बढ़ने के साथ समाजवादी पार्टी आगे बढ़ती रही और बीजेपी पीछे होती रही।
बिहार के चुनाव परिणामों में भी ऐसा ही हुआ। शुरुआती दौर के बाद महागठबंधन ने रफ्तार पकड़ी और खुद को 2 तिहाई सीटों के पार पहुंचाया। महागठबंधन की सीटें बढ़ रही थी और एनडीए की कम हो रही थी। एनडीए कार्यकर्ताओं की आतिशबाजियां थम चुकी थीं और चेहरे मायूस हो चुके थे। बिहार की सड़कों पर महागठबंधन कार्यकर्ता नाच रहे थे, पटाखे फोड़ रहे थे और मिठाईयां खिला रहे थे।बीजेपी और एनडीए की पराजय की कई वजहें हो सकती हैं लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि पराजय सिर्फ एनडीए की ही नहीं एग्जिट पोल के अनुमानों की भी हुई है।