बिहार चुनाव: महिलाओं का हुजूम, मुस्लिम वोटरों में ध्रुवीकरण, क्या है संकेत?

FARRUKHABAD NEWS POLICE Politics

vot 2नई दिल्ली। बिहार में विधानसभा के लिए दो चरणों में 81 सीटों पर मतदान हो चुका है और अब बाकी 162 सीटों पर मतदान दुर्गा पूजा और मोहर्रम के बाद होगा। दो चरणों के चुनाव के बाद भी नेताओं और मतदाताओं से लेकर बड़े-बड़े राजनीतिक विश्लेषकों को भी समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर यह चुनाव किस दिशा में जा रहा है? दोनों गठबंधनों का दावा है कि इस चुनाव में उनकी जीत तय है। यह कहना गलत नहीं होगा कि दो चरण के चुनाव हो जाने के बाद भी पार्टियां अब तक चुनावी रुझानों को ही समझने में लगी है, हालांकि अब तक के रुझान से जो प्रमुख बातें सामने है, उनमें पहला यह कि इस चुनाव में महिलाएं बड़ी संख्या में वोट डालने के लिए घरों से बाहर निकल रही हैं और दूसरा, यह है कि मुस्लिम मतदाताओं में भी ध्रुवीकरण साफ देखा जा सकता है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि महिलाओं का बड़ी संख्या में मतदान के लिए निकलना महागठबंधन के पक्ष में है लेकिन बीजेपी के करीबियों का मानना है कि महिलाएं संस्कृति, धर्म व परंपरा में विश्वास दिखाते हुए एनडीए गठबंधन के लिए वोट कर रहे हैं। इस विधानसभा चुनाव में सबसे मुश्किल काम महादलित वोट बैंक के रुझान को समझना है। हालांकि जातीय और सीट के समीकरण के साथ महादलित वोट बैंक शिफ्ट हो रहा है लेकिन अब तक के रुझान को देखें तो महादलित वोट बैंक पर मांझी और पासवान का दबदबा माना जा रहा है, लेकिन जहां मांझी और पासवान की पार्टी चुनाव नहीं लड़ रही, वहां महादलित वोट एनडीए को मिलेगा या नहीं, यह एक बड़ा सवाल है। महागठबंधन के समर्थन में भी नज़र आए।

एकतरफ जहां बीजेपी लालू के पुराने घोटालों को जनता के सामने ला रही हो तो दूसरी तरफ नीतीश के बिहारी बनाम बाहरी मुद्दे पर भी बीजेपी ने करारा हमला किया है।इस चुनाव में एक बात जिसने सबका ध्यान खींचा है वह है, सुबह तेज रफ्तार मतदान के बाद दोपहर बाद मतदान का धीमा होना। मतदान के इस ट्रेंड पर भी अलग-अलग कयास लगाए जा रहे हैं। राजनीतिक हलकों में चर्चा यह है कि दोपहर बाद धीमे मतदान का नुकसान एनडीए को उठाना पड़ सकता है, लेकिन विपक्षी इस तथ्य को एक सिरे से नकार रहे हैं। उनका कहना है कि इस बार लोग अपने मत को लेकर बहुत स्पष्ट थे और उन्होंने शुरुआती दौर में ही मतदान कर दिया।बिहार के इस सत्ता की लड़ाई में राजनीतिक दल अपनी जीत से ज्यादा विपक्षी की हार पर चर्चा कर रहे हैं, और इसका कारण भी समझा जा सकता है। यहां पर कौन किसके वोट बैंक में सेंध लगा पाता है, यह काफी मायने रखता है। यही कारण है कि दोनों गठबंधनों का दावा है कि उनकी पार्टी बड़ी जीत दर्ज करेगी और अब तक हुए दो चरणों में जिन 81 सीटों पर मतदान हुए हैं, उनमें 55 से 65 सीटें जीतेगी।

अगर तीसरे चरण की बात करें तो हैं एक तरफ महागठबंधन की तरफ से लालू के दोनों लाल की किस्मत का फैसला इसी चरण में होगा तो दूसरी तरफ यह क्षेत्र बीजेपी नेता आर के सिंह और शत्रुघ्न सिन्हा का गढ़ माना जाता है, लेकिन दोनों चेहरे चुनाव प्रचार से नदारद नजर आ रहे हैं। इस चुनाव में खास यह भी है कि राजनीतिक दल अपनी रणनीति बनाने के साथ-साथ विपक्षी दल की रणनीति पर भी करारा प्रहार कर रहे हैं। महागठबंधन पीएम मोदी की बक्सर, पालीगंज और वैशाली में 16 अक्तूबर को निर्धारित रैलियों को रद्द किए जाने के मुद्दे को काफी जोर शोर से उठा रहा है। हालांकि बीजेपी ने साफ किया कि मोदी 25, 26 और 27 अक्टूबर को राज्य के विभिन्न भागों में आयोजित आठ चुनावी सभाओं को संबोधित करेंगे।

इन्हीं अनिश्चितताओं के बीच अब आगे के तीन चरणों के लिए सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी रणनीतियों में बदलाव पर बदलाव किए जा रहे हैं। इसी बदलाव के तहत बीजेपी ने भी अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए अक्रामक शैली अपना ली है। एकतरफ जहां बीजेपी लालू के पुराने घोटालों को जनता के सामने ला रही है तो दूसरी तरफ नीतीश के बिहारी बनाम बाहरी मुद्दे पर भी बीजेपी ने करारा हमला किया है। इस मुद्दे पर बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद इतने आक्रामक हो गए कि पूछ बैठे कि क्या हमलोग बिहारी नहीं हैं। क्या नीतीश केवल खुद को बिहारी समझते हैं। यह अहंकार की पराकाष्ठा है और यह बिहार की जनता के लोकतांत्रिक अधिकार का अपमान है।

बीजेपी ने न सिर्फ अपने चुनाव प्रचार शैली में बदलाव किया है बल्कि पूरी रणनीति बदल दी है। पार्टी ने एक रणनीति के तहत 16 अक्टूबर को पीएम मोदी की प्रस्तावित रैली को 25 अक्टूबर, 26 और 27 के लिए स्थगित करने का फैसला किया है। रिपोर्ट्स के अनुसार मोदी की रैली में भीड़ की प्रतिक्रिया बहुत अच्छी है लेकिन कुछ जगहों में यह वोट में स्थानांतरित नहीं हो पा रहा है। यही कारण है कि बीजेपी मोदी की रैली को चुनावी तारीखों के पास रखना चाहती है ताकि मतदान केंद्रों के लिए जाने के दौरान मतदाताओं के मन में प्रधानमंत्री का संदेश ताजा रखने में मदद मिल सके। बीजेपी ने इस चुनाव में 160 प्रत्याशियों में से 65 सवर्णों को मैदान में उतारा है। गौरतलब है कि बिहार में कुल मतदाताओं की 14-15 फीसदी ऊंची जातियों से हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में सवर्ण मतदाताओं का 78 फीसदी वोटरों ने मोदी के नेतृत्व में एनडीए के पक्ष में मतदान किया था। लेकिन बीजेपी ने इस बार पिछड़े वर्ग के वोटरों में अपनी पैठ बनाने की कोशिश में है।

यही कारण है कि कि बीजेपी ने राम विलास पासवान, उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी के साथ मैदान में उतरने का पैसला किया है। पिछले चुनाव सर्वेक्षणों में ये जाहिर हो चुका है कि पासवान बिहार में सबसे लोकप्रिय दलित नेता रहे हैं, हालांकि वह सभी दलित जातियों में लोकप्रिय नहीं हैं, लेकिन वह अपनी जाति को अपने गठबंधन के पक्ष में मोड़ सकते हैं। पासवान की एलजेपी ने 2004 और 2009 का लोकसभा एवं 2010 का विधानसभा चुनाव आरजेडी के साथ गठबंधन में लड़ा था और इन चुनावों में आरजेडी और उसकी सहयोगी पार्टियों को क्रमश: 42, 31 और 29 फीसदी दलित वोट मिले थे।

आरजेडी गठबंधन को दलितों के वोट कम मिलने की वजह ये थी कि मांझी पहले जेडीयू के साथ थे और उनके चलते गैर-पासवान दलित वोट जेडीयू और बीजेपी के समर्थन में था। 2010 के विधानसभा चुनाव के दौरान पासवान का आरजेडी से गठबंधन था और तब 55 फीसदी पासवानों ने आरजेडी और सहयोगियों को मत दिया था जबकि 21 फीसदी ने एनडीए गठबंधन को। महादलितों में केवल 16 फीसदी मतदाताओं ने आरजेडी को वोट दिया था जबकि 35 फीसदी महादलित वोट एनडीए को मिले थे।

बीजेपी की रणनीति से साफ है कि पार्टी इस चुनाव में खतरा मोल लेने के मूड में नहीं है। यही कारण है कि बीजेपी एक तरफ जहां सवर्णों के साथ-साथ हर वर्गों के वोट बैंक पर फोकस कर रही है वहीं दूसरी तरफ पार्टी ने मोदी की रैली को आगे कर एक और राजनीतिक चाल चल दी है। अब इस चाल में बीजेपी कितनी सफल हो पाती है इसके लिए फिलहाल 8 नवंबर का इंतजार करना पड़ेगा।