Thursday, December 26, 2024
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बसपा से नाता तोडऩे का क्रम होगा और तेज

maayavtiलखनऊ : लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश तथा अन्य राज्यों में खराब प्रदर्शन के बाद से बहुजन समाज पार्टी में शुरू हुआ निकालने और छोडऩे का दौर अब और तेज होने की उम्मीद है। तमाम आरोप लगाकर पार्टी जिन्हें बाहर का रास्ता दिखा रही है अगर उनकी माने तो विधानसभा चुनाव आते-आते बसपा से त्यागपत्र देने वालों की ही झड़ी लग जाएगी। मायावती के नेतृत्व में बसपा का वजूद तक खतरे में पड़ जाएगा।

लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में जिस तरह से बसपा शून्य पर सिमट कर रह गई और फिर राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी कुछ खास नहीं कर सकी है, इससे तमाम वरिष्ठ नेता को भी पार्टी में अपना राजनीतिक भविष्य अंधकारमय दिख रहा है। दो वर्ष बाद 2017 में होने वाले उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सुरक्षित ठिकाने के लिए पार्टी के कई नेता अभी से दूसरी पार्टियों के संपर्क में हैं। ऐसे में बसपा सुप्रीमो मायावती जिन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा रही हैं, वे तो खुलकर कह रहे हैं कि मायावती के नेतृत्व में पार्टी कांशीराम के मिशन से भटक चुकी है। पार्टी नेतृत्व सिर्फ पैसे और पैसे वालों को ही तरजीह दे रहा है। जिससे पार्टी का ग्र्राफ गिरता जा रहा है।

कांशीराम के जमाने से पार्टी से जुड़े रहे राज्यसभा सांसद जुगुल किशोर का कहना है कि बसपा में अब कांशीराम के सपनों पर ग्रहण लगने लगा है। उल्लेखनीय है कि एक समय में पार्टी संगठन में अहम भूमिका निभाने वाले जुगुल को शनिवार को दिल्ली व बिहार के प्रभारी पद से भी हटा दिया गया है। बसपा से राज्यसभा सदस्य होने के नाते तकनीकी तौर पर भले ही इन्हें पार्टी से निष्कासित करने की घोषणा नहीं की गई है लेकिन अब पार्टी से जुगुल का कोई नाता नहीं रह गया है। जुगुल का दावा है कि बसपा के तमाम पदाधिकारियों के साथ ही बड़ी संख्या में विधायक भी मायावती के रवैये से पार्टी छोडऩे को तैयार बैठे हैं। अभी दो वर्ष की विधायकी बाकी है इसलिए वे चुप हैं।

गौरतलब है कि दो माह पहले बसपा से त्यागपत्र देने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री व तत्कालीन राज्यसभा सदस्य डा. अखिलेश दास ने भी कहा था कि बसपा में जमकर वसूली हो रही है। सामान्य सीटों के लिए एक करोड़ व आरक्षित सीटों के लिए भी पचास लाख रुपये का रेट है। अखिलेश दास ने कहा था कि वर्ष 2017 के चुनाव में सर्वसमाज ही नहीं उनके कैडर के लोग भी बसपा से दूर हो जाएंगे। बसपा में इस्तीफे की झड़ी लगेगी और दो तीन वर्ष में पार्टी का वजूद खत्म हो जाएगा।

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