माँ के दर्शन को उमड़ा श्रधालुओ का समुंदर

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durgaफर्रुखाबाद: नवरात्र के प्रथम दिन मन्दिरों में भक्तो की काफी भीड़ उमड़ी| जय कारो के बीच भक्त कतारों में नजर आयी| कई कई घंटे इंतजार के बाद माँ के दर्शन हो सके| शहर के भी मंदिर पूरी तरफ दुल्हन के जैसे सजाये गये थे| नौ दिन चलने वाले इस ब्रत में नौ देवियों की पूजा होगी जिसमे —

श्री शैलपुत्री -इसका अर्थ-पहाड़ों की पुत्री होता है।
श्री ब्रह्मचारिणी -इसका अर्थ-ब्रह्मचारीणी।
श्री चंद्रघरा -इसका अर्थ-चाँद की तरह चमकने वाली।
श्री कूष्माडा -इसका अर्थ-पूरा जगत उनके पैर में है।
श्री स्कंदमाता -इसका अर्थ-कार्तिक स्वामी की माता।
श्री कात्यायनी -इसका अर्थ-कात्यायन आश्रम में जन्मि।
श्री कालरात्रि -इसका अर्थ-काल का नाश करने वली।
श्री महागौरी -इसका अर्थ-सफेद रंग वाली मां।
श्री सिद्धिदात्री -इसका अर्थ-सर्व सिद्धि देने वाली।
को की पूजा की जाएगी| शहर के बढ़पुर शीतला माता मन्दिर, गुरुगांव देवी मन्दिर, गमा देवी मन्दिर, मंशा देवी मन्दिर, वैष्णो देवी मंदिर आदि में सुरक्षा के मभी खास इंतजाम किये गये थे|

शक्ति की उपासना का पर्व शारदेय नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है। सर्वप्रथम श्रीरामचंद्रजी ने इस शारदीय नवरात्रि पूजा का प्रारंभ समुद्र तट पर किया था और उसके बाद दसवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया और विजय प्राप्त की। तब से असत्य, अधर्म पर सत्य, धर्म की जीत का पर्व दशहरा मनाया जाने लगा। आदिशक्ति के हर रूप की नवरात्र के नौ दिनों में क्रमशः अलग-अलग पूजा की जाती है। माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार की सिद्धियाँ देने वाली हैं। इनका वाहन सिंह है और कमल पुष्प पर ही आसीन होती हैं। नवरात्रि के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है।

नवदुर्गा और दस महाविधाओं में काली ही प्रथम प्रमुख हैं। भगवान शिव की शक्तियों में उग्र और सौम्य, दो रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली दस महाविधाएँ अनंत सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं। दसवें स्थान पर कमला वैष्णवी शक्ति हैं, जो प्राकृतिक संपत्तियों की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी हैं। देवता, मानव, दानव सभी इनकी कृपा के बिना पंगु हैं, इसलिए आगम-निगम दोनों में इनकी उपासना समान रूप से वर्णित है। सभी देवता, राक्षस, मनुष्य, गंधर्व इनकी कृपा-प्रसाद के लिए लालायित रहते हैं।
अहमदाबाद का गरबा नृत्य

नवरात्रि भारत के विभिन्न भागों में अलग ढंग से मनायी जाती है। गुजरात में इस त्योहार को बड़े पैमाने से मनाया जाता है। गुजरात में नवरात्रि समारोह डांडिया और गरबा के रूप में जान पडता है। यह पूरी रात भर चलता है। डांडिया का अनुभव बडा ही असाधारण है। देवी के सम्मान में भक्ति प्रदर्शन के रूप में गरबा, ‘आरती’ से पहले किया जाता है और डांडिया समारोह उसके बाद। पश्चिम बंगाल के राज्य में बंगालियों के मुख्य त्यौहारो में दुर्गा पूजा बंगाली कैलेंडर में, सबसे अलंकृत रूप में उभरा है। इस अदभुत उत्सव का जश्न नीचे दक्षिण, मैसूर के राजसी क्वार्टर को पूरे महीने प्रकाशित करके मनाया जाता है।

महत्व

नवरात्रि उत्सव देवी अंबा (विद्युत) का प्रतिनिधित्व है। वसंत की शुरुआत और शरद ऋतु की शुरुआत, जलवायु और सूरज के प्रभावों का महत्वपूर्ण संगम माना जाता है। इन दो समय मां दुर्गा की पूजा के लिए पवित्र अवसर माने जाते है। त्योहार की तिथियाँ चंद्र कैलेंडर के अनुसार निर्धारित होती हैं। नवरात्रि पर्व, माँ-दुर्गा की अवधारणा भक्ति और परमात्मा की शक्ति (उदात्त, परम, परम रचनात्मक ऊर्जा) की पूजा का सबसे शुभ और अनोखा अवधि माना जाता है। यह पूजा वैदिक युग से पहले, प्रागैतिहासिक काल से है। ऋषि के वैदिक युग के बाद से, नवरात्रि के दौरान की भक्ति प्रथाओं में से मुख्य रूप गायत्री साधना का हैं।
नवरात्रि के पहले तीन दिन

नवरात्रि के पहले तीन दिन देवी दुर्गा की पूजा करने के लिए समर्पित किए गए हैं। यह पूजा उसकी ऊर्जा और शक्ति की की जाती है। प्रत्येक दिन दुर्गा के एक अलग रूप को समर्पित है। त्योहार के पहले दिन बालिकाओं की पूजा की जाती है। दूसरे दिन युवती की पूजा की जाती है। तीसरे दिन जो महिला परिपक्वता के चरण में पहुंच गयी है उसकि पूजा की जाती है। देवी दुर्गा के विनाशकारी पहलु सब बुराई प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त करने के प्रतिबद्धता के प्रतीक है।
नवरात्रि के चौथा से छठे दिन

देवी की आरती
व्यक्ति जब अहंकार, क्रोध, वासना और अन्य पशु प्रवृत्ति की बुराई प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त कर लेता है, वह एक शून्य का अनुभव करता है। यह शून्य आध्यात्मिक धन से भर जाता है। प्रयोजन के लिए, व्यक्ति सभी भौतिकवादी, आध्यात्मिक धन और समृद्धि प्राप्त करने के लिए देवी लक्ष्मी की पूजा करता है। नवरात्रि के चौथे, पांचवें और छठे दिन लक्ष्मी- समृद्धि और शांति की देवी, की पूजा करने के लिए समर्पित है। शायद व्यक्ति बुरी प्रवृत्तियों और धन पर विजय प्राप्त कर लेता है, पर वह अभी सच्चे ज्ञान से वंचित है। ज्ञान एक मानवीय जीवन जीने के लिए आवश्यक है भले हि वह सत्ता और धन के साथ समृद्ध है। इसलिए, नवरात्रि के पांचवें दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। सभी पुस्तकों और अन्य साहित्य सामग्रीयो को एक स्थान पर इकट्ठा कर दिया जाता हैं और एक दीया देवी आह्वान और आशीर्वाद लेने के लिए, देवता के सामने जलाया जाता है।
नवरात्रि का सातवां और आठवां दिन

सातवें दिन, कला और ज्ञान की देवी, सरस्वती, की पूजा की है। प्रार्थनायें, आध्यात्मिक ज्ञान की तलाश के उद्देश्य के साथ की जाती हैं। आठवे दिन पर एक ‘यज्ञ’ किया जाता है। यह एक बलिदान है जो देवी दुर्गा को सम्मान तथा उनको विदा करता है।
नवरात्रि का नौवां दिन

नौवा दिन नवरात्रि समारोह का अंतिम दिन है। यह महानवमी के नाम से भी जाना जाता है। ईस दिन पर, कन्या पूजन होता है। उन नौ जवान लड़कियों की पूजा होती है जो अभी तक यौवन की अवस्था तक नहीं पहुँची है। इन नौ लड़कियों को देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक माना जाता है। लड़कियों का सम्मान तथा स्वागत करने के लिए उनके पैर धोए जाते हैं। पूजा के अंत में लड़कियों को उपहार के रूप में नए कपड़े पेश किए जाते हैं।