यूपी में जुगाड़ लगाने के बाद दर्ज हुआ जनहित में आईपीएस का मुकदमा

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Amitabh Thakurलखनऊ: मुख्यमंत्री, डीजीपी के साथ मुख्य सचिव कानून व्यवस्था को लेकर भले ही बड़ी-बड़ी बातें करें लेकिन हकीकत इससे जुदा है। सुप्रीम कोर्ट के भी सख्त निर्देश हैं कि मुकदमा हर हाल में दर्ज होगा लेकिन उत्तर प्रदेश में ऐसा नहीं है। राजधानी लखनऊ में ही जब मुकदमा दर्ज कराना मुश्किल है तो फिर राज्य के अन्य जिलों का क्या हाल होगा यह एक सोचने का विषय है।

लखनऊ में ही एक वरिष्ठ आइपीएस अधिकारी को भी मुकदमा दर्ज कराने के लिए डीजीपी से जुगाड़ लगाना पड़ता है। जब खास लोगों को रिपोर्ट दर्ज कराने में पापड़ बेलने पड़ रहे हैं तो आम आदमी का क्या हाल होगा अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। थानेदार सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की भी अवहेलना कर रहे हैं। एक अप्रैल से 23 मई तक राजधानी के 43 थाना से 1030 पीड़ित लोग एसएसपी कार्यालय पहुंचे। इनको एसएसपी कार्यालय से पीली पर्ची थमा दी गई। कुछ की यहा भी सुनवाई नहीं हुई तो उन्होंने न्यायालय की शरण ली। दो महीने(अप्रैल-मई) में लखनऊ के थानों से संबंधित अदालतों में करीब 250 शिकायतें पहुंचीं।

केस एक : आइपीएस अधिकारी संयुक्त निदेशक नागरिक सुरक्षा, उत्तर प्रदेश अमिताभ ठाकुर ने सोशल नेटवर्किंग साइट के जरिए किडनी की खरीद-फरोख्त करने वाले गिरोह के मामले में नौ मई को गोमतीनगर थाने में तहरीर दी थी। उन्होंने यह भी बताया था कि गिरोह के सदस्य किडनी देने पर उन्हें अपने खर्च पर पुणे से ईरान भेजने की बात कह रहे हैं। गंभीर मामले में मुकदमा दर्ज न होने पर 13 मई को अमिताभ ठाकुर लखनऊ के एसएसपी से मिले। इसके बाद भी जब कोई कार्रवाई नहीं हुई तो अमिताभ ठाकुर ने डीजीपी को प्रार्थनापत्र दिया। तब डीजीपी के आदेश पर 22 मई को लखनऊ के गोमतीनगर थाना में धोखाधड़ी, ट्रासप्लाटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गेस एक्ट 1994 सहित कई धाराओं में रिपोर्ट दर्ज की गई। अमिताभ के मुताबिक थानेदार कह रहे थे कि जब आप के साथ कोई अपराध ही नहीं हुआ तो रिपोर्ट किस बात की।

केस दो : तेलीबाग की एक युवती को शादी का झासा देकर एक युवक ने दुष्कर्म किया। युवती के मुताबिक वह तीन मई को पीजीआइ थाने रिपोर्ट दर्ज कराने गई। थानेदार ने बिना मुकदमा दर्ज किए उसे भगा दिया। एसएसपी कैंप कार्यालय पर भी उसकी कोई सुनवाई नहीं हुई। इसके बाद वह महिला थाने गई। वहा भी उसे टरका दिया गया। इसके बाद एक पत्रकार की सिफारिश पर रिपोर्ट दर्ज हुई। इसके बाद भी युवती अधिकारियों के कार्यालय के चक्कर काटती रही। 23 दिनों बाद उसका मेडिकल हो सका। आरोपी अभी तक फरार है।

केस तीन : 22 नवंबर 2013 को सदर कैंट निवासी राजा से आशियाना क्षेत्र में तीन बदमाशों ने पुलिस बनकर नकदी, एटीएम व मोबाइल फोन लूट लिया। राजा ने इसकी सूचना आशियाना पुलिस को दी। पुलिस राजा को तीन दिन तक टरकाती रही। 25 नवंबर को भुक्तभोगी और उसके साथियों ने लुटेरे को पकड़कर पुलिस के हवाले किया। इसके बाद पुलिस ने गुडवर्क के लिए मुकदमा दर्ज कर लिया।

क्या है सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने 12 नवबंर 2013 को सीआरपीसी की धारा 154 का मंतव्य स्पष्ट करते हुए फैसला सुनाया था कि संज्ञ्‍ोय अपराध के मामलों में एफआइआर दर्ज करना अनिवार्य है। मामला दर्ज करते समय यह देखना महत्वपूर्ण नहीं है कि सूचना सही है कि गलत। इन सारी बातों की जाच मामला दर्ज करने के बाद की जाएगी। अगर पता चलता है कि शिकायत झूठी है तो शिकायतकर्ता के खिलाफ मुकदमा चलाया जाएगा।

डीआइजी ने कहा

डीआइजी रेंज नवनीत सिकेरा कहते हैं कि तहरीर मिलने के बाद थानेदार को तुरंत रिपोर्ट दर्ज करनी चाहिए। अगर कोई थानेदार मुकदमा नहीं दर्ज करेगा तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।

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