हमारे देश में महामारी बन चुकी शुगर की बीमारी यानी मधुमेह ने अब मासूम बच्चों को भी अपना शिकार बनाना शुरू कर दिया है।
बच्चों में मधुमेह के बढ़ते प्रकोप के लिए खान-पान की बिगड़ती आदतों और इंटरनेट एवं टेलीविजन को बच्चों के खेल-कूद से दूर होने को खास तौर पर जिम्मेदार माना जा रहा है। बच्चों में शुगर की बीमारी को ‘जुवेनाइल डायबिटीज” कहा जाता है। देश में डायबिटीज के कुल जितने रोगी हैं, उनमें से करीब पांच प्रतिशत बच्चे हैं। देश में 20 प्रतिशत से ज्यादा बच्चे मोटे हैं और जिनमें से ज्यादातर टाइप-2 मधुमेह के शिकार हैं।
एशियन इंस्टीच्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस के निदेशक डॉ. एनके पांडे ने बताया कि आज गलत जीवन शैली एवं गलत खानपान के कारण बच्चों एवं किशोरों में मधुमेह के प्रकोप में खतरनाक तरीके से वृद्धि हुई है। हालांकि टाइप-वन मधुमेह की रोकथाम नहीं की जा सकती है लेकिन टाइप-2 मधुमेह जीवन शैली की बीमारी अधिक है। समुचित खानपान, संतुलित वजन, नियमित व्यायाम तथा जीवन शैली में परिवर्तन लाकर इसे कुछ मामलों में रोका जा सकता है। अंतरराष्ट्रीय आंकड़ों के आधार पर संकेत मिलता है कि अगले साल तक हमारा देश पांच करोड़ 80 लाख मधुमेह रोगियों का घर होकर विश्व में मधुमेह की राजधानी बन जाएगा। 2030 तक इस संख्या के आठ करोड़ 70 लाख तक हो जाने की संभावना है जो देश की वयस्क जनसंख्या का 8.4 प्रतिशत होगा।
बाल दिवस के रूप में मनाया जाने वाला 14 नवंबर का दिन मधुमेह दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। इसका उद्देश्य बच्चों में मधुमेह के बारे में समाज में जागरूकता कायम करना है। डायबिटीज फाउंडेशन ऑफ इंडिया के एक सर्वे से पता चला है कि दिल्ली में निजी स्कूलों के 32.6 प्रतिशत और सरकारी स्कूलों के 9.6 प्रतिशत बच्चे ज्यादा मोटे है।दिल्ली मधुमेह अनुसंधान केन्द्र के अध्यक्ष डा. ए.के. झिंगन बताते हैं कि बच्चों में मधुमेह की शुरू आत अक्सर अचानक ही होती है। सहसा अधिक प्यास लगने लगती है। भूख बहुत बढ़ जाती है और वजन घटने लगता है। बच्चे बार-बार मूत्र त्याग करते हैं।