फर्रुखाबाद: लाल-नीली बत्ती मामले पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन कराने में प्रदेश के अधिकारियों को पसीने आ जाएंगे। यहां तो छुटभैये नेता तक लाल बत्ती लगाकर घूमते हैं। समय-समय पर सरकारों ने अपने राजनैतिक हित साधने के लिए आदेशों में संशोधन कर इन बत्तियों की फेहरिस्त काफी लंबी कर दी है। अगर नियमो का प्लान हुआ तो कैबिनेट दर्ज प्राप्त सतीश दीक्षित की सरकारी कार में लगी बत्ती (फलेशर वाली) लपलपायेगी और राज्य मंत्री नरेंद्र सिंह यादव की सरकारी कार की लाल बत्ती (बिना फलेशर) चुपचाप जलेगी|
राजनीति में स्टेटस सिंबल के रूप में अपनी पहचान बना चुके लाल बत्तियों के इस तिलिस्म को तोड़ना आसान नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को लाल बत्ती पर सख्त रुख अपनाते हुए राज्यों को केवल उच्च संवैधानिक पदों पर तैनात लोगों को ही इसे लगाने का अधिकार देने के निर्देश दिए हैं।
प्रदेश में बत्ती धारियों की संख्या इतनी अधिक है कि इन्हें नियंत्रित करना काफी मुश्किल है। सरकार ने तो छुटभैये नेताओं को भी मंत्री का दर्जा देकर लाल बत्तियां बांट दी हैं। अब ये अपने निजी वाहनों तक में लाल बत्ती व हूटर लगाकर चल रहे हैं। नियम यह है कि वीआईपी व्यक्ति जब राज्य में सरकारी ड्यूटी या भ्रमण पर हों तभी वाहनों पर लाल या नीली बत्ती लगा सकते हैं।
लेकिन प्रदेश में नेता व अधिकारी निजी वाहनों तक में बत्ती व हूटर लगाकर चलते हैं। जिलों में पार्टी के नेता भी अपने वाहनों में लाल बत्ती व हूटर का दुरुपयोग खूब करते हैं। प्रदेश के अफसर भी नियम तोड़ने में पीछे नहीं हैं। प्रमुख सचिव व सचिव स्तर के अधिकारी अपनी गाड़ियों पर बगैर फ्लैशर वाली नीली बत्ती तभी लगा सकते हैं जब वे लखनऊ नगर निगम की सीमा के बाहर शासकीय कार्य से जा रहे हों।
लेकिन सचिवालय आने-जाने में भी सभी आईएएस अधिकारी नीली बत्ती लगे वाहनों का प्रयोग करते हैं। अपर पुलिस महानिदेशक स्तर के अधिकारियों के साथ भी यही नियम है। अपर महाधिवक्ता भी तभी लाल बत्ती लगा सकते हैं जब वे नगर निगम की सीमा के बाहर जा रहे हों।
मंत्री समूह ने नहीं कटने दी थीं बत्तियां
एक बार पहले भी परिवहन विभाग लाल-नीली बत्तियों को नियंत्रित करने की कोशिश कर चुका है। अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से जब पूछा था कि उनके यहां कितने लोगों को यह बत्तियां मिली हैं तब प्रदेश में परिवहन विभाग ने संवैधानिक पदों पर तैनात लोगों को ही बत्तियां देने की वकालत की थी।
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उस समय यह प्रस्ताव मंत्रियों के एक समूह के पास भेजा गया था। मंत्री समूह ने परिवहन विभाग के इस प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। मंत्रियों ने कहा था, जब आगे सुप्रीम कोर्ट इस मसले पर कुछ कहेगा तब देखा जाएगा।
ये लगा सकते हैं बत्तियां व फ्लैशर
राज्यपाल, मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, विधान परिषद सभापति, हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, लोकायुक्त, कैबिनेट मंत्री, दर्जा प्राप्त कैबिनेट मंत्री, नेता विरोध दल (विधान परिषद व विधानसभा), हाईकोर्ट के न्यायाधीश व सेवानिवृत्त न्यायाधीश जो पूर्णकालिक रूप से पुनर्नियोजित हों, महाधिवक्ता, अध्यक्ष मानवाधिकार आयोग व सदस्य मानवाधिकार आयोग
बिना फ्लैशर के लाल बत्ती
विधान परिषद के उपसभापति, विधान सभा के उपाध्यक्ष, राज्यमंत्री व उपमंत्री, दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री, दर्जा प्राप्त उपमंत्री, मंत्रिमंडलीय सचिव, मुख्य सचिव, अध्यक्ष राजस्व परिषद, पुलिस महानिदेशक, राज्य निर्वाचन आयुक्त, अध्यक्ष लोक सेवा आयोग, जिला न्यायाधीश व उनके समकक्ष उच्चतर न्यायिक सेवा के अन्य अधिकारी, राज्यसभा एवं लोकसभा के सदस्य।