फर्रुखाबाद के 300 वर्ष: ठप हुए केन्द्रीय कारागार में करोड़ों कमाने वाले उद्योग

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FARRUKHABAD : 1868 में निर्मित केन्द्रीय कारागार फतेहगढ़ भी एक समय उद्योगों की खान हुआ करता था। एक से एक हुनरदार कैदी विभिन्न उद्योगों से करोड़ों रुपये की आमदनी जेल प्रशासन को देते थे। लेकिन समय की मार और शासन की अनदेखी के चलते जेल के उद्योग भी बिलकुल बंद ही हो गये। कहीं न कहीं कैदियों का राजनीतिकरण और हुनरमंदों की कमी भी इसके आड़े आ गयी। कच्चा माल भी जेल प्रशासन को मुहैया नहीं हो पाया।CENTRAL JAIL FATEHGARH

बात करें केन्द्रीय कारागार के इतिहास की तो अंग्रेजी शासनकाल में एच रावर्ट इण्डियन मेडिकल सर्विसेज के अंग्रेज अधीक्षक के साथ-साथ तीन यूरोपियन जेलर, आठ कार्यालय लिपिक, 25 बार्डर व 27 रिजर्व बार्डर, एक यूरोपियन मेट्रन की देखरेख में कारागार को शुरू किया गया था। एशिया की सबसे बड़ी मानी जाने वाले केन्द्रीय कारागार फतेहगढ़ 989 बीघे में फैली है।

दर असल उसी समय से कारागार में कैदियों के हुनर को उत्पादों में बदलने का प्रयास किया गया। कारागार में सन 1882 में कपड़ा, तम्बू, लोहे का तसला, कटोरी बनाने का उद्योग प्रारंभ किया गया। सन 1908 में कारागार में दो लाख 15 हजार 72 रुपये की आमदनी इन उद्योगों से अर्जित की थी। आमदनी ठीक ठाक होने पर जेल प्रशासन ने इस पर पुनः जोर दिया। बढ़ते बढ़ते जेल के साथ-साथ देश भी अंग्रेजों के चंगुल से छूटा तो जेल के इन उद्योगों ने और अधिक तरक्की कर दी।

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1982 में कारागार में इन्हीं उद्योगों में एक अच्छी सफलता हासिल की। कारागार ने एक करोड़ 34 लाख रुपये की आमदनी इन उद्योगों से की जो अपने आप में एक इतिहास है। जेल में बना तम्बू, लकड़ी इत्यादि का सामान, बाहरी दूसरी जेलों व अन्य पुलिस बलों को सप्लाई किया जाता था।index

तत्कालीन जेल अधीक्षक एच पी यादव उस समय तैनात थे। जिन्होंने जेल के उद्योग धन्धों में विशेष रुचि दिखायी और जेल में कैदियों की संख्या भी 15 सितम्बर 1983 को 4515 थी। एच पी यादव ने जेल में उद्योग धन्धों को बढ़ावा देने के लिए जेल के फार्म पर मछली पालन हेतु बहुत बड़े बड़े तालाब खुदवाये और सब्जी इत्यादि भी बड़े पैमाने पर पैदा होती थी।

लेकिन समय की मार के चलते यह औद्योगिक जेल आज खुद दूसरों पर निर्भर हो गयी है। कभी कारागार के अंदर बन रहे कारीगरी के नमूनों को देश विदेश के लोग भी खरीदने आते थे। लेकिन अब सब कुछ खत्म सा हो रहा है। वर्तमान में केन्द्रीय कारागार के अंदर कैदियों की संख्या 2144 हो गयी है और उद्योग धन्धे भी बीते तकरीबन 6 माह से बंद हैं। कमर टूटे इन जेल उद्योगों पर शासन को पुर्नविचार कर इन्हें गति देनी चाहिए।

सेन्ट्रल जेल के वरिष्ठ जेल अधीक्षक यादवेन्द्र शुक्ला के अनुसार बीते 6 माह से बंद कारागार के उद्योगों की मुख्य बजह कच्चा माल न मिल पाना है। उन्होंने कहा कि भविष्य में प्रयास कर इसे शुरू किया जायेगा।