फर्रुखाबाद: मध्य प्रदेश की गायब छात्रा की तलाश में उसका भाई आज सुबह से ही इधर-उधर भटकता रहा| पुलिस अधीक्षक के आदेश के बाबजूद भी शहर कोतवाली पुलिस ने छात्रा को बरामद करने के लिए खानापूरी की|
मध्य प्रदेश के जिला रीवा सिटी कोतवाली गोदाबाग कालोनी निवासी भगवान् दास गुप्ता की युवा पुत्री नीलिमा २३ अक्टूबर से अचानक गायब हो गयी| परिवार वालों को आशंका हुयी कि यहाँ के मोहल्ला सिकत्तर्बाग स्थित आध्यात्मिक आश्रम की कोई सदस्य नीलिमा को बहला-फुसला कर ले गयी है|
भगवान दास का पुत्र राजीव आज सुबह नीलिमा की तलाश में आश्रम पहुंचा| नीलिमा के बारे में जानकारी करने पर आश्रम के लोगों ने राजीव के साथ बदसलूकी की और उसे आश्रम के अन्दर नहीं घुसने दिया| परेशान राजीव ने फोन पर पुलिस अधीक्षक अखिलेश कुमार को जानकारी देकर मदद की गुहार लगाई| एसपी ने इन्स्पेक्टर क्रष्ण कुमार से जानकारी कर एसएस आई शिवशंकर शुक्ला को कार्रवाई करने का निर्देश दिया| श्री शुक्ला ने आश्रम जाकर संचालिका प्रभा बहन से जानकारी की तो उन्होंने नीलिमा के आने के बारे साफ़ मना कर दिया|
राजीव ने बताया कि नीलिमा बीसीए का कोर्स कर रही है| आश्रम के सदस्य २३ अगस्त को उसे बहला फुसलाकर यहाँ लाये थे| जिन्होंने उसे एक सप्ताह का प्रशिक्षण देकर आश्रम की सदस्यता ग्रहण कराई| तब नीलिमा ने घर जाकर इस बात की जानकारी दी थी| राजीव ने आशंका व्यक्त की कि नीलिमा आश्रम के अन्दर ही है| उसने अन्दर जाकर बहन को तलाश करने को कहा| तो उसे आश्रम के अन्दर नहीं घुसने दिया गया| यह कहा गया कि कोई महिला ही अन्दर जाकर तलाशी ले सकती है| काफी प्रयास करने के बाबजूद भी राजीव को कोई ऐसी महिला नहीं मिली|
पुलिस को बताया गया कि आश्रम में करीब ८० महिलायें व् युवतियां हैं| देखभाल करने के लिए उड़ीसा प्रान्त के कई लोग मौजूद थे| एसएस आई श्री शुक्ला को भी नीलिमा को तलाशने के लिए अन्दर नहीं घुसने दिया गया| वह यह कहकर मायूस होकर चले गए कि अभी उनके पास कोई लिखा-पढी नहीं है| पुलिस के चले जाने के बाद आश्रम की महिलाओं की पड़ोसी भगत सुनार की पत्नी से तीखी झड़पें हुईं| इसी आश्रम से सम्बंधित मुख्य आश्रम कम्पिल में मौजूद है बाबा वीरेंद्र देव दीक्षित आश्रम के संचालक हैं जो एक दशक पूर्व आश्रम की ही शिष्या को बंधक बनाकर उसके साथ दुष्कर्म करने के आरोप में जेल जा चुके हैं| आश्रम में प्रदेश के बाहर की ही युवतियां व् महिलायें मौजूद हैं जिनको सदस्य बनाने एवं स्वेच्छा से रहने के लिए उनकी सहमति का शपथ पत्र लिया जाता है|
आश्रम की शिष्याएं मुर्गीखाने की तरह रहती हैं. आश्रम का गेट अक्सर बंद रहता है किसी को भी अन्दर घुसने नहीं दिया जाता है|