लखनऊ : बसपा सुप्रीमो मायावती के कभी बेहद करीबी रहे पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की पत्नी शिवकन्या को समाजवादी पार्टी ने गाजीपुर से लोकसभा का टिकट देकर अपने इरादे साफ कर दिए हैं। बाबू के रिश्तों के बहाने सपा की नजरें कुशवाहा बिरादरी के वोटरों पर टिकी हैं। इसीलिए कुशवाहा परिवार पर सपा सरकार की मेहरबानी भी दिख रही है। इस मेहरबानी का ही आलम है कि कुशवाहा की भ्रष्टाचार, लैकफेड, स्मारक घोटाला और आय से अधिक सम्पत्ति की जांच सम्बंधी फाइलें ठंडे बस्ते में चली गयी हैं।
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) घोटाले की सीबीआइ जांच में करीब दो साल से सलाखों के पीछे कैद कुशवाहा पर प्रदेश सरकार की इनायत का ही करिश्मा है कि श्रम निर्माण सहकारी संघ लिमिटेड (लैकफेड) घोटाला और स्मारक घोटाले में उनके खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है, जबकि इन आरोपों में रंगनाथ मिश्र, बादशाह सिंह, चन्द्रदेव राम यादव जैसे पूर्व मंत्री जेल में हैं। जांच एजेंसी कोआपरेटिव सेल का दावा था इन मामलों में कि उसके पास कुशवाहा के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं। राज्य सरकार ने तो सतर्कता विभाग को आय से अधिक सम्पत्ति और भ्रष्टाचार के मामलों में कुशवाहा के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की अनुमति दो जुलाई को ही दे दी, लेकिन बाद में तकनीकी दांव-पेंच में उलझाकर धन उगाही, धोखाधड़ी समेत भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धाराओं में उन पर दर्ज होने वाले मुकदमे रोक दिए गये।
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दरअसल सियासी गोलबंदी में बाबू सिंह जातीय समीकरण का लाभ उठा रहे हैं और सपा उनके बहाने बसपा के वोट बैंक समझे जाने वाले कुशवाहा समाज को लुभाने में जुटी है। कुछ माह पहले बाबू सिंह एकता मंच से ओमप्रकाश राजभर, मुख्तार अंसारी और अफजाल अंसारी के साथ समीकरण बनाकर गाजीपुर लोकसभा क्षेत्र के प्रत्याशी घोषित हो गये थे, लेकिन जिन दिनों उन पर मुकदमे दर्ज होने की प्रक्रिया चल रही थी उन्हीं दिनों पत्नी शिवकन्या और बाबू के भाई शिवशरण कुशवाहा ने सपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। स्वाभाविक तौर पर इससे समीकरण बदलने ही थे। अब सुकन्या के सपा उम्मीदवार बनने के साथ ही तस्वीर बिल्कुल साफ हो गयी और कुशवाहा और सपा के मजबूत रिश्ते भी जगजाहिर हो गये हैं। पिछले दिनों पीजीआइ में कुशवाहा के बार-बार आने और वहां सपा के कुछ शीर्ष नेताओ से उनकी मुलाकात ने इसकी पटकथा पहले ही तैयार कर दी थी। ध्यान रहे यूपी में कुशवाहा मतदाताओं की एक बड़ी संख्या है और उनके नेताओं में एक प्रमुख नाम बाबू सिंह का भी है। इसकी वजह से बिरादरी के मतों में सपा अपना सेंध लगा सकेगी। हालांकि विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी में कुशवाहा को लाने का भाजपा का अनुभव बहुत कारगर नहीं रहा है।