Sunday, January 12, 2025
spot_img
HomeUncategorizedकेवल अनुशासन से ही नहीं संवरता बचपन

केवल अनुशासन से ही नहीं संवरता बचपन

बड़ी उम्र में होने पर बचपन अच्छा लगता है, किंतु यदि किसी बच्चे से पूछा जाए तो वह बचपन को कैद खाना ही बताएगा। बच्चे जब बड़े लोगों को स्वंतत्र जीवन जीते हुए देखते हैं तो उन्हें लगता है कब बचपन खत्म होगा और हम बड़े होंगे। बच्चों को सिखाने के चक्कर में कभी-कभी अत्यधिक अनुशासन लाद दिया जाता है।

बच्चों को लगता है ये न करो, वो न करो की टोका-टोकी के अलावा बचपन और कुछ नहीं होता। दरअसल बड़े लोगों को बाल दिवस की सही ट्रेनिंग लेना होगी। बाल मन के मनोविज्ञान को समझना भी एक तपस्या है। श्रीराम बचपन में गुमसुम रहते थे। स्थिति यहां तक पहुंच गई थी कि वे गहरे मौन में उतर गए थे। गंभीर तो वे थे ही दशरथजी को लगने लगा था राम राजकुमार हैं और इनके भीतर बालपन में ही जो वैराग्य भाव जागा है ये ठीक नहीं है। इसलिए उन्होंने श्रीराम को वशिष्ठजी के पास भेजा तथा गुरु वशिष्ठ ने राम के बाल मनोविज्ञान को समझते हुए जो ज्ञान उन्हें दिया उसे योग वशिष्ठ के नाम से जाना जाता है। श्रीकृष्ण के जीवन में एक घटना आती है। जब उन्होंने इन्द्र की पूजा का विरोध किया था तो उस समय सभी ने इसे बालक का हठ समझा था लेकिन मां यशोदा ने उनका मनोवैज्ञानिक विशषण किया और श्रीकृष्ण के पक्ष में खड़ी हो गईं। वे जानती थीं कि बच्चों का मनोबल कभी-कभी सत्य के अत्यधिक निकट पहुंच जाता है।

बचपन ईसामसीह का हो या मोहम्मद का या ध्रुव प्रहलाद का। इनके लालन-पालन करने वाले लोग यह समझ गए थे कि जीवन हमेशा विरोधाभास या जिसे कहें कॅन्ट्रास्ट में ही उजागर होता है। जैसे बच्चों को ब्लेक बोर्ड पर सफेद चोक से लिखकर पढ़ाया जाता है ये पूरे जीवन का प्रतीक है। काला है तो सफेद दिखेगा। ऐसे ही शरीर में आत्मा प्रकट होगी, शून्य से संगीत आएगा, अंधेरे में से ही प्रकाश निकल आएगा। बचपन से ही पूरे जीवन की तैयारी निकलकर आएगी।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments