संतो के समागम से ज्ञान व व्यावहारिकता से परमात्मा की प्राप्ति होती है

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FARRUKHABAD : डा0 रामबाबू पाठक के संयोजन में आढ़तियान मोहल्ला मिर्चीलाल के फाटक में रजत जयंती वर्ष में चल रहे मानस सम्मेलन में कानपुर देहात से  पघारी मानस कोकिला श्री मती प्रभा मिश्र ने पक्षी प्रसंग की व्याख्या करते हुए कहा रामचरित मानस में सीता हरण के समय पक्षी जटायु ने सीता  की रावण से रक्षा करने में अहम भूमिका रही थी।RAMBABU PATHAK

एक बार जटायु सीता को बचाने के लिए अपनी चोच से लंकापति रावण को घायल कर बेहोश कर देता है  तथा लंकापति रावण के होश में आने पर वह जटायु के पंख काट देता हैं बाद में श्रीराम जटायु का अपने हाथों से अंतिम संस्कार करते है। मानस की  चौपाई हमें शिक्षा देती है कि हमें बहु-बेटी की रक्षा मे अपने प्राण लगा देने चाहिए। ललितपुर से पधारी मानस कोकिला सुश्री कृष्णा मिश्रा ने सुमित्रा चरित्र की  व्याख्या करते हुये कहा जीवात्मा जन्म लेते ही सबसे पहले अपनी मा को जानता है व मा के बताने पर ही अपने पिता, भाई, बहनो को जानता है  उन्होने कहा संतो का समागम, ज्ञान, भक्ति व व्यावहारिकता से ही परमात्मा की प्राप्ति होती है।

पुत्र को हमेशा अपने माता-पिता व आचार्यो का सम्मान करना चाहिये यही संस्कार श्रीराम लक्ष्मण के थे। माता सुमित्रा पुत्र लक्ष्मण को श्रीराम व सीता को अपने माता-पिता के समान मानकर  वनगमन में उनके साथ जाने की आज्ञा देती हैं। लक्ष्मण जी सीता स्वयंवर के समय श्रीराम सहित सभी से अपने को छोटा ही मानते है।  उन्होने निम्न गीत प्रस्तुत किया- सफल हुआ है उन्ही का जीवन जो तेरे चरणो में आ चुके हैं उन्ही को हुये है तेरा दर्शन जो तेरे चरणो में आ चुके  है।

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विलासपुर छत्तीसगढ से पधारी मानस कोकिला श्री मती उमा तिवारी ‘हुइहि सोइ जो राम रचि राखाÓ की व्याख्या करते हुये कहा विधाता की  इच्छा के बिना सृष्टि का पत्ता भी नहीं हिल सकता है जो प्रभु ने लिख दिया है उसे मिटाया नहीं जा सकता। भोलेनाथ की इच्छा के बिना उमा  अपने पिता राजा दक्ष के यहा जाती है एवं अपने पति का अपमान देखकर वहां हो रहे यज्ञ मे अपने को भस्म कर लेती है बाद में हिमांचल की पुत्री  के रुप में जन्म लेती है। जिसका नामकरण ऋषि नारद जी पार्वती के रुप में करते है तथा उन्हे पाच वर्ष की उम्र में ही भोलेनाथ की तपस्या के  लिए प्रेरित करते है माता पार्वती भोलेनाथ को पाने के लिए 41 हजार वर्ष तक बेलपत्री खाकर जंगल में तपस्या करती है।
संयोजक राम बाबू पाठक ने कहा, सगुण को सभी स्वीकारते ह,ै निर्गुण को नहीं। जब घर संसार छुट जाता है, तो केवल ईश्वर व भक्ति  ही काम आती है। जालौन से आये मानस मनोहर  ईश्वरदास ब्रहमचारी ने भजन प्रस्तुत किया, ‘बीत गये दिन भजन बिना रे, श्याम बिना रे राम  बिना रेÓ। संचालन पं0 रामेन्द्र शास्त्री व तबले पर संगत मुन्ना ने की संायकाल बेला में डा0 शिव ओम अंवर, राधे श्याम गर्ग, राधे श्याम तूफानी  सहित पाच जन सम्मानित किये गये। इस अवसर पर नन्द पाल सिहं चौहान, रामाअवतार शर्मा, इन्दू, नीरज चौहान, सुषमा दीक्षित, कमलेश अग्निहोत्री,  मधु गौड., सुजीत पाठक, आलोक गौड़, दिवाकर लाल अग्निहोत्री, आदि लोग मौजूद रहे।