भारतीय प्रशासनिक सेवा के नौकरशाहों को चौराहे पर खड़ा होकर देश का आखिरी नेता (ग्राम पंचायत का प्रधान) जिस तरह से खुलेआम खरीद रहा है वो चौकाने वाला कम, शर्मनाक जरूर लगा……….
अगर जीत गया तो सबसे पहले अपना चुनाव खर्चा निकालूँगा| प्रधान पद के लिए हो रहे चुनाव में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले के एक ग्राम सभा के प्रत्याशी ठाकुर ………. सिंह देश की जड़ो में फैले भ्रष्टाचार के टिप्स बता रहे थे| डेढ़ लाख में सीडीओ ( जिला मुख्य विकास अधिकारी), एक लाख में बीडीओ और एक लाख में ग्राम सचिव खरीदूंगा और इंदिरा आवास के सौ मकान गाँव के लिए आवंटित करा पहले ही झटके में दस लाख वसूलूँगा| प्रधान प्रत्याशी ने बताया कि दस लाख में से साढ़े तीन लाख खर्च करने के बाद भी साढ़े छ: लाख बच जायेंगे और चुनावी खर्चा का हिसाब बराबर हो जायेगा|
नौकरशाहों को चौराहे पर खड़ा होकर देश का आखिरी नेता खुलेआम खरीद रहा है!
प्रधानजी ने अगले पांच साल की संभावित प्रधानी को सफलता पूर्वक चलाने के जो टिप्स बताये वो खासे चौकाने वाले नहीं है मगर बताने का तरीका बेहद चौकाने वाला था| देश की सबसे बेहतरीन उच्चस्तरीय शैक्षिक गुणवत्ता रखने वाले और सबसे शानदार और गौरवशाली नौकरी करने वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा के नौकरशाहों को चौराहे पर खड़ा होकर देश का आखिरी नेता (ग्राम पंचायत का प्रधान) जिस तरह से खुलेआम खरीद रहा है वो जरुर चौकाने वाला कम शर्मनाक जरूर लगा|
फर्जी सूची से होती है शुरुआत
ठाकुर साहब से इंदिरा आवास में पहले ही झटके में साढ़े छ: लाख कमाने की प्रक्रिया को पूछा तो प्रधान प्रत्याशी बोला-
चुनाव जीतने के बाद सौ लोगो की फर्जी सूची बनाऊँगा और पचास हजार सीडीओ साहब को दूंगा| इतने में मेरे सौ गाँव स्वीकृत हो जायेंगे| उसके बाद गाँव में बता दूंगा कि सौ इंदिरा आवास आ गए है जिसे लेने है दस हजार दे दे| अब सौ लोगो से दस लाख आ गया..(ठाकुर साहब आत्मविश्वास से लबरेज बोल रहे थे)| एक लाख ग्राम सचिव के मुह पर, एक लाख सीडीओ के मुह पर और एक लाख बीडीओ के मुह पर मारूंगा|
बात आगे बढ़ाते हुआ उनसे पूछा शिकायत हुई तब क्या करोगे?
सबको मिलता है हिस्सा
ठाकुर साहब बोले- हद से हद शिकायत कहाँ होगी जिला कलेक्टर तक न जाँच कौन करेगा यही सीडीओ, बीडीओ ये क्या करेंगे? इनके मुह तो पहले ही बंद हैं| और परसेंट तो कलेक्टर तक जाता है कौन नहीं जानता.?..
अगली किस्त में पढ़िये- इंदिरा आवास के बाद प्रधान जी और कौन से खजाने पर गिद्ध निगाहे लगाये है|
नोट- अगर ये लेख किसी अफसर की कार्यप्रणाली से मेल खाता हो तो दिल पर न ले| ये लेख पंचायत प्रधान के प्रत्याशी से बातचीत पर आधारित है| ये उसकी सोच है| जरुरी नहीं कि उसकी सोच सच से मेल खाती हो|
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