कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए गुजरात सरकार जल्द ही अपने स्कूली बच्चों के मिड डे मील में केले से बनी कैंडी को शामिल कर सकती है। नवसारी कृषि विश्वविद्यालय में तैयार की गई यह कैंडी विटामिन और आयरन से भरपूर है। राज्य सरकार बच्चों को दोपहर को पौष्टिक भोजन देने के तहत इस पर विचार कर रही है।
विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक बीएल कोलंबे के मुताबिक, ‘केले के पौधे से बनी कैंडी की लागत एक रुपये से भी कम है।साथ ही यह औषधीय गुणों से भी भरपूर है। यह केले के पेड़ के तने से बनाई जाती है। फाइबर, आयरन और विटामिन बी से भरपूर यह कैंडी एनीमिया (रक्त में हीमोग्लोबीन की कमी) से पीड़ित बच्चों के लिए रामबाण है।’
कोलंबे ने दावा किया कि सेंट्रल फूड टेकभनोलाजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट, मैसूर में कराए गए परीक्षण में कैंडी को बच्चों के लिए काफी फायदेमंद और सुरक्षित पाया गया। इसके फाइबर आसानी से पच जाते हैं।
[bannergarden id=”8″][bannergarden id=”11″]
कैंडी के बारे में गुजरात सरकार के प्रवक्ता सौरभ पटेल ने कहा कि कुपोषण से निपटने में यह काफी कारगर है। हम इस पर विचार कर रहे हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के मुताबिक राज्य में 49.2 फीसदी बच्चे कुपोषण की समस्या से जूझ रहे हैं।
मिड डे मील के लिए नए दिशा निर्देश
मिड डे मील की गुणवत्ता और स्वच्छता के लिए केंद्र सरकार ने राज्यों को विस्तृत दिशा निर्देश जारी किए हैं।
मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री शशि थरूर ने राज्यसभा में लोजपा के रामविलास पासवान व अन्य सदस्यों के सवाल का जवाब देते हुए कहा कि मिड डे मील में सुधार के लिए राज्य, जिला और ब्लॉक स्तर पर जिम्मेदारियों के साथ प्रबंध ढांचे की स्थापना करना, भोजन को बच्चों को परोसने से पहले कम से कम एक टीचर द्वारा चखा जाना, स्कूलों को गुणवत्ता परक सामग्री की आपूर्ति और उनका सुरक्षित भंडारण शामिल है।
इसके अलावा व्यापिक आकस्मिक चिकित्सा योजना समेत कई दिशा निर्देश दिए गए हैं।