दिन भर में गंगा का आधा मीटर जल स्तर बढ़ा, सुबह तक स्थिति भयाभय होने की आशंका

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FARRUKHABAD : गंगा में आयी बाढ़ से जनपद के सैकड़ों गांवों का अस्तित्व खतरे में होने से ग्रामीणों में हड़कंप मचा हुआ है। कोई फसलों को काट रहा है तो कोई अपने घरों की ईंटों को निकाल रहा है तो कोई अपने पशुओं को सुरक्षित स्थान पर ले जाना चाहता है, कुल मिलाकर स्थिति भागम भाग की बनी हुई हैं। वहीं प्रशासन ने अब तक जो भी किया है वह सब कागजों पर ही किया है, हकीकत में किसी भी प्रकार की ग्रामीणों को कोई भी सुविधा मुहैया नहीं करायी गयी है। वहीं दिन भर में गंगा नदी का जल स्तर लगभग आधा मीटर बढ़ चुका है। सुबह तक गंगा का जल स्तर और बढ़ने से अत्यधिक भयाभय स्थिति पैदा होने की आशंका जतायी जा रही है।

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उत्तराखण्ड में हुई भीषण बारिश ने जहां अपने प्रदेश में तबाही मचा दी है वहीं उत्तर प्रदेश में भी गंगा की तलहटी में बसे गांवों में सब कुछ तहस नहस करना शुरू कर दिया है। बीते दिन से ही गंगा का जल स्तर बढ़ने से ग्रामीणों में दहशत की स्थिति छा गयी थी। लेकिन बीती रात में लगभग एक मीटर जल स्तर बढ़ जाने से गंगा का फैलाव जारी है। लोगों का मानना है कि गंगा का पानी अभी फैलाव ले रहा है। जैसे ही फैलाव खत्म होगा तो पानी का स्तर एक बार फिर ऊंचाइयां छूने लगेगा। अंदेशा जताया जा रहा है कि गंगा का जल स्तर 137 मीटर से भी अधिक हो सकता है।

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वहीं प्रशासन की तरफ से अभी तक कागजों में नाव चिन्हिंत कर ली गयीं, कागजों में बाढ़ चौकियां स्थापित कर दी गयीं, कागजों में बाढ़ राहत केन्द्र भी बन गये लेकिन हकीकत में किसी ग्रामीण को न नावें उपलब्ध करायी गयीं, न ही कोई लेखपाल या अन्य कर्मी ग्रामीणों के हालचाल लेने पहुंचा। बस एक दो गांव में अधिकारियों ने पहुंचकर ग्रामीणों की बाट जोह कर वापस आ गये। हो गयी बाढ़ पीड़ितों की सहायता। यदि यही हाल रहा तो बाढ़ में अपना सब कुछ खो बैठे ग्रामीण एक बार फिर रोटी कपड़ा के लिए तबाह हो सकते हैं और प्रशासन इसी तरीके से बाढ़ राहत केन्द्र कागजों में चलाता रहेगा। बीते वर्षों में बनाये गये तटबंधों को प्रशासन द्वारा न तो सही करवाया गया और न ही बाढ़ के पानी को रोकने के लिए नये तटबंधों को बनवाया गया। बस ग्रामीणों की तबाही को बैठे बैठे देखने की प्रशासन को पुरानी आदत सी बन गयी है।

इसके साथ ही जन प्रतिनिधि भी समय रहते न ही पुलिया निर्माण न ही तटबंध बनवाने के लिए पैरवी करते नजर आते हैं। उन्हें भी राजनीतिक रोटियां सेंकने का मौका बाढ़ के समय ही मिलेगा। बाढ़ बढ़ने के साथ ही राजनेता भी एक दिन का लंच पैकिट, कुछ माचिस की डिब्बी, बीड़ी के बंडल बांटकर एक पंत दो काज कर बैरंग लौट आयेंगे। बाढ़ पीड़ितों की सहायता भी हो जायेगी और ऊपर से चुनाव प्रचार भी। स्थाई समाधान निकालने वाला कोई नहीं है।