नई दिल्ली। खाद्य सुरक्षा योजना का फायदा देश के कमजोर तबके को होगा। ये योजना तकरीबन दो तिहाई आबादी को फायदा पहुंचाएगी। गांवों की 75% आबादी तक इसकी पहुंच होगी। शहरों में 50% लोगों को इससे फायदा मिलेगा।
योजना के तहत 2 रुपये किलो गेहूं, 3 रुपये किलो चावल और 1 रुपये किलो मोटा अनाज मिलेगा। एक परिवार को हर महीने 25 किलो अनाज मिलेगा। फूड बिल के लागू होने के बावजूद पहले से चल रही अन्त्योदय योजना में बदलाव नहीं होगा। अन्त्योदय लाभार्थियों को 35 किलो अनाज मिलता रहेगा। ये योजना फिलहाल तीन साल के लिए लागू होगी।
मिड डे मील, आईसीडीएस भी फूड बिल का हिस्सा होंगे। इस योजना से सरकार पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा। माना जा रहा है कि इस योजना को लागू करने से सालाना 1 लाख 24 करोड़ रुपए की सब्सिडी देनी होगी। 3 साल में 6 लाख करोड़ की सब्सिडी का अनुमान है। एक किलो चावल पर 23.50 रुपये की सब्सिडी, गेहूं पर प्रति किलो 18 रुपये की सब्सिडी देनी होगी। पूरी सब्सिडी केंद्र सरकार देगी।
फूड बिल को लेकर आखिर जल्दबाजी में क्यों है सरकार?
नई दिल्ली। यूपीए सरकार खाद्य सुरक्षा कानून लागू करने की जल्दबाजी में दिख रही है। सवाल है कि सरकार इस बिल को लेकर जल्दबाजी में क्यों है। इसकी भी कई वजहें हैं लेकिन सबसे बड़ी वजह सरकार की लगातार गिरती लोकप्रियता है। असल में मौजूदा सरकार के कई मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। कई मंत्रियों को इन आरोपों की वजह से इस्तीफा देना पड़ा।
दूरसंचार घोटाले की वजह से ए राजा को इस्तीफा देना पड़ा। बाद में दयानिधि मारन को भी अपना मंत्री पद गंवाना पड़ा। उन पर एयरसेल-मैक्सिस डील में गड़बड़ियों के आरोप लगे। कोयला खदान आबंटन घोटाले में सुबोधकांत सहाय को इस्तीफा देना पड़ा। रेलवे प्रमोशन में भ्रष्टाचार की गाज पवन बंसल पर गिरी। पवन बंसल को रेल मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा।
कोयला घोटाले में CBI के काम में दखल की गाज अश्विनी कुमार पर गिरी। अश्विनी कुमार को कानून मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा। कांग्रेस सांसद नवीन जिंदल पर भी CBI का शिकंजा कस गया है क्योंकि जिंदल पर घूस देकर कोयला खदान लेने का आरोप लगा है। जिंदल पर पूर्व कोयला राज्यमंत्री दसारी नारायण राव को घूस देने का आरोप है। CBI के मुताबिक जिंदल ने नारायण को 2 करोड़ की घूस दी। एक वक्त विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर को आरोपों की वजह से इस्तीफा देना पड़ा था। इसके अलावा भ्रष्टाचार के आरोप में वीरभद्र सिंह को भी केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।
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इस तरह मौजूदा सरकार पर एक के बाद एक भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप लगे। इन आरोपों की वजह से मौजूदा यूपीए सरकार की साख गिरती चली गई इसलिए सरकार आम लोगों को लुभाने वाली जबरदस्त योजना लाने के हक में है ताकि एक साल बाद होने वाले चुनाव में इसका फायदा उठाया जा सके। सरकार को यूपीए-1 के दौरान लागू किए गए मनरेगा कार्यक्रम से मिले फायदे का अहसास है, इसी वजह से सरकार खाद्य सुरक्षा बिल लाने की जल्दबाजी में दिख रही है।