खालिद मुजाहिद की मौत में पूर्व डीजीपी समेत 42 पर मुकदमा

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लखनऊ : फैजाबाद की अदालत से पेशी से कल लौटते वक्त तबीयत खराब होने के बाद अस्पताल में मृत घोषित किये गए हरकत उल जेहाद अल इस्लामी (हूजी) के संदिग्ध सदस्य खालिद मुजाहिद की मौत के मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक तथा अपर पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) समेत 42 लोगों के खिलाफ हत्या तथा कत्ल की साजिश का मुकदमा दर्ज किया गया। प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मुजाहिद के परिजनों की मांग पर मामले की सीबीआई जांच की सिफारिश की है।

Khali Mujahidपुलिस सूत्रों ने यहां बताया कि मुजाहिद के चाचा जहीर आलम ने शहर कोतवाली में प्रदेश के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह, अपर पुलिस महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) बृजलाल, मनोज कुमार झा, चिरंजीव नाथ सिन्हा तथा एस. आनंद नामक पुलिसकर्मियों समेत 42 लोगों के खिलाफ धारा 302 (हत्या) तथा 120 (बी) (कत्ल की साजिश) का मुकदमा दर्ज कराया है। बृजलाल इस समय महानिदेशक (नागरिक सुरक्षा) के पद पर तैनात हैं।

गौरतलब है कि वर्ष 2007 में उत्तर प्रदेश के लखनऊ, फैजाबाद तथा वाराणसी कचहरी परिसरों में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में आरोपी मुजाहिद को शनिवार को फैजाबाद से पेशी से लौटते समय तबीयत खराब होने पर अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया था। इस बीच, सरकारी प्रवक्ता ने बताया कि मुजाहिद के परिजनों की मांग पर राज्य सरकार ने उसकी मौत के मामले की सीबीआई से जांच कराने की सिफारिश कर दी है।

सरकार ने कल मुजाहिद की मौत के बाद एक जांच समिति गठित की थी। इसके अलावा फैजाबाद के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट मामले की न्यायिक जांच कर रहे हैं। दर्ज मुकदमे में आलम ने आरोप लगाया है कि राज्य पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने उनके भतीजे को 16 दिसम्बर 2007 को जौनपुर के मड़ियाहूं से अगवा करके बाद में उसे बाराबंकी रेलवे स्टेशन के पास से गिरफ्तार करके विस्फोटक बरामदगी का फर्जी दावा किया था।

आलम का आरोप है कि वर्ष 2007 में उत्तर प्रदेश के लखनऊ, फैजाबाद तथा वाराणसी कचहरी परिसरों में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में जबरन आरोपी बनाए गए मुजाहिद का अपहरण प्रदेश के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह, अपर पुलिस महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) बृजलाल और मनोज कुमार झा, चिरंजीव नाथ सिन्हा तथा एस आनंद नामक पुलिसकर्मियों समेत 42 लोगों की साजिश का नतीजा था।

तहरीर में कहा गया है कि आर. डी. निमेष आयोग की रिपोर्ट में मुजाहिद की गिरफ्तारी तथा उसके पास से बरामदगी को फर्जी पाये जाने के बाद राज्य सरकार ने मुजाहिद तथा एक अन्य संदिग्ध हूजी कार्यकर्ता तारिक कासमी पर दर्ज मुकदमे को जनहित तथा साम्प्रदायिक सौहार्द के तकाजे का हवाला देते हुए वापस लेने की अर्जी दी थी जिसे बाराबंकी की अदालत ने गत दस मई को ठुकरा दिया था।

आलम ने तहरीर में कहा कि सरकार ने अदालत के फैसले को उच्च अदालत में चुनौती देने का फैसला किया था और उस सूरत में मुजाहिद आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुख्य गवाह होता। इसलिए एक सोची समझी साजिश के तहत 18 मई को फैजाबाद से पेशी से लौटते वक्त मुजाहिद की हत्या कर दी गयी।

गौरतलब है कि राज्य पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने मुजाहिद और कासमी को दिसम्बर 2007 में बाराबंकी रेलवे स्टेशन के पास से गिरफ्तार करके उनके कब्जे से विस्फोटक आरडीएक्स तथा डेटोनेटर की बरामदगी का दावा किया था। कासमी के साथ मुजाहिद भी साल 2007 में गोरखपुर में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों तथा उसी वर्ष लखनऊ, फैजाबाद और वाराणसी कचहरी परिसरों में हुए सीरियल बम ब्लास्ट का आरोपी था।