Tuesday, January 7, 2025
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आजम के अधिकारी एक कुत्ता पकड़ने पर खर्च करते हैं 18 हजार का डीजल..!

लखनऊ। नगर निगम के अधिकारी आवारा जानवर पकड़ने के नाम पर किस तरह अपनी जेबें भरने में जुटे हुए हैं इसका अंदाजा आप शासन के निर्देश पर बनी एक रिपोर्ट पर ही लगा सकते हैं| यहाँ एक सांड पकड़ने में सात हजार और एक कुत्ता पकड़ने में 18 हजार रुपये का डीजल खर्च कर दिया जा रहा है| सरकार को शिकायतें मिली थी कि शहर में आवारा जानवरों के पकड़ने के नाम पर जमकर धांधलेबाजी की जा रही है| सरकार को यह शिकायत मिली थी कि शहर में खुल्ला घूम रहे आवारा जानवरों को पकड़ने के लिए कैटल कैचिंग की गाड़ियाँ तो निकलती हैं डीजल भी भरवाती हैं लेकिन कितने जानवर पकड़े इसका कोई लेखा जोखा ही नहीं है| सवाल यह है कि इन गाड़ियों का तेल कहाँ जाता है? गाड़ियाँ पी जाती हैं या फिर…?
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शिकायत मिलने के बाद शासन के निर्देश पर नगर निगम ने जो रिपोर्ट पेश की उसके आंकड़े चौकाने वाले थे| आर आर विभाग के प्रभारी व अधिशासी अभियंता दीपक यादव ने जो शासन की रिपोर्ट सौंपी उसमें, आवारा गाय, कुत्ता व सांड पकड़ने में 1,40, 024 लीटर डीजल खर्च होने की बात कही गई|रिपोर्ट के मुताबिक, दो वर्षों में नगर निगम ने 967 जानवर पकड़ें हैं| यदि आवारा जानवरों को पकड़ने में खर्च किये गए डीजल को 47 रुपये प्रति लीटर का हिसाब लगाया जाए तो लगभग 65 लाख 81 हजार रुपए बनतें हैं। अगर 967 जानवरों के हिसाब से देखा जाये तो एक जानवर को पकड़ने में 9,805 रुपए का डीजल खर्च किया गया।

वहीँ यदि कुत्ते पकड़ने में हिसाब लगाया जाए तो आवारा कुत्ता पकड़ने के लिए 59, 201 लीटर डीजल खर्च किया गया। यदि इस डीजल को भी 47 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से देखा जाए तो 27 लाख 82 हजार रुपए हुए। यदि सूत्रों की माने तो कान्हा उपवन में करीब 150 आवारा कुत्ते हैं| यानि एक कुत्ते को पकड़ने की कीमत लगभग 18,549 रुपये हुए। इसमें उन कर्मचारियों का भी वेतन जोड़ दिया जाए तो खर्च और भी बढ़ जाएगा|

वहीँ यदि सूत्रों की माने तो यहाँ डेढ़ साल से कुत्ते ही नहीं पकड़े जा रहे हैं और तो और सूत्र यह भी बता रहे हैं कि नगर निगम ने कुत्ता पकड़ने का काम ही बंद कर दिया है कई बार शिकायत करने पर गाड़ी तो दिख जाती है लेकिन कर्मचारी कुत्ता पकड़ने के बजाय भगा देते हैं| केवल उन्हीं कुत्तों को पकड़ा जाता है जो घायल होते हैं या फिर बीमार| इस मामले को लेकर निगम के एक पशुचिकित्साधिकारी का कहना है कि हाईकोर्ट के निर्देश के मुताबिक, कुत्ता पकड़ने का काम बंद कर रखा है। केवल बीमार व घालय जानवरों को उठाने के लिए गाड़ियाँ जाती हैं जिसमें कुछ तेल खर्च होता है|

गौरतलब है कि कुछ इसी तरह का खुलासा मुरादाबाद से 25 अक्टूबर 2012 को पर्दाफाश के एक जागरूक पाठक ने किया था| और एक वीडियो भी पर्दाफाश को उपलब्ध कराया था| जिसमें यह दिखाया गया था कि नगर निगम का एक कर्मचारी अपने ही विभाग की गाड़ी से तेल चोरी कर रहा था| और अपने फायदे के लिए बाज़ार में बेचता है| उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले का है जिसमें एक आदमी दूसरे आदमी से फ़ोन पर बात कर रहा जो जेसीबी गाड़ी का इंतजार कर रहा था| फ़ोन पर वो दूसरे आदमी से बोल रहा था कि वो ट्रैफिक में फंस गया है जबकि सच कुछ और था वो ट्रैफिक का बहाना बनाकर जेसीबी से तेल चोरी कर रहा था|

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आपको ये जानकार आश्चर्य होगा कि प्रतिदिन लाखों लीटर तेल की रसीद ये नगर निगम लेता है जिसको अगर रुपये में जोड़ा जाए तो हिसाब करोड़ों में बैठता है ये संख्याएं कई गुना बढ़ जाती हैं जब हिसाब माह या वर्ष के हिसाब से किया जाता है| पहले जान लेते हैं कि इन विभागों में आज कल क्या चल रहा है लेकिन उसके पहले ये जान लेते हैं कि नगर निगम है क्या| नगर निगम एक स्वतः निर्मित संस्था है जो राज्य के नियमों के मुताबिक़ काम करता है लेकिन अगर जरुरत पड़े तो अपने निर्णय खुद ले सकता है| इस विभाग को ये छूट प्राप्त है कि वो चाहे जितनी भी मात्रा में चाहे तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं जिसका भुगतान सरकार करती है|

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लालच में आकर इस विभाग के कर्मचारी भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाते हैं और इस तरह कि गिरी हुई हरकत को अंजाम देते है| अक्सर ये भी देखने में आता है कि तेल के टैंकर पूरे भरे भी नहीं जाते हैं लेकिन नगर निगम के अधिकारी पूरी रकम की रसीद लेकर सम्बन्धित अधिकारी (जिस कंपनी का टैंकर है) उसको दे देते हैं| गलती से अगर तेल भर भी दिया जाता है तो बाद में इसको चुरा कर बेंच दिया जाता है|

हमारे बनारस के एक सूत्र के अनुसार, एक प्राइवेट कूड़ा प्रबंधन कंपनी को एक कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार एक निश्चित मात्रा में तेल दिया गया था जिसको उसने पूरा 1 महीना चलाया लेकिन एक सरकारी संस्था ने मात्रा 1 सप्ताह में ही उसे खत्म कर दिया| इससे पता चलता है कि है कि सरकारी विभाग के अधिकारी और कर्मचारी किस तरह भ्रष्टाचार में लिप्त हैं यही कारण है कि नगर निगम के काम को निजी हाथों में नहीं दिया जाता अगर दे भी दिया जाता है तो नगर निगम के कुछ कर्मचारी उस काम में बाधा डालने लगते हैं ताकि उनकी मनमानी हो सके| तो आपने देखा कि नगर निगम में किस तरह भ्रष्टाचार को अंजाम दिया जा रहा है अब देखने वाली बात यह होगी कि आजम साहब इस पर क्या कार्यवाई करती है|

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