FARRUKHABAD : दूसरों को कानून और अनुशासन का पाठ पढ़ाने वाली खाकी जब खुद ही अपने आला अधिकारियों के आदेशों की अवहेलना करने में लगे तो फिर आम जनता क्या करे। कोतवाली हो या थाने वहां तो फरमान चलता ही नहीं। कोई भी तहरीर आये मुंशी बगैर सम्बंधित अधिकारी की सहमति के बिना नहीं लिख सकता। लेकिन जब आदेश जनपद के सर्वोच्च पद पर आसीन जिलाधिकारी का हो तो उसे मान लेने में ही भलाई होती है। लेकिन कोतवाली के मुंशी ने जिलाधिकारी के आदेश को दरकिनार कर मुकदमा लिखने से ही इंकार कर दिया। जानकारी होने पर कोतवाल ने मामले को समतल करने के लिए मुंशी को जमकर हड़काया और उसका कर्तव्य और कार्य याद दिलाये।
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मामला लाल दरबाजा तिराहे पर स्थित गैस रिपेयरिंग की दुकान में पकड़े गये सिलेण्डरों की तहरीर का था। तहरीर लेकर पूर्ति निरीक्षक एम एस गौर कोतवाली पहुंचे और जिलाधिकारी पवन कुमार द्वारा एफआईआर कराने के सम्बंध जारी आदेश की तहरीर कोतवाली के मुंशी देवेन्द्र सिंह को दी। मुंशी ने तहरीर देखते ही पहले तो एफआईआर लिखने से ही मना कर दिया और कहा कि कोतवाल का आदेश कराकर लाइए। जिस पर पूर्ति निरीक्षक ने शहर कोतवाल रूम सिंह यादव से फोन पर बात की। कोतवाल उस समय क्षेत्र भ्रमण पर थे। मामले की जानकारी होने पर कोतवाल ने पहले फोन पर ही मुंशी को जमकर खरीखोटी सुनाई और तत्काल कोतवाली आ गये। कोतवाली पहुंचते ही उन्होंने सीधे मुंशी देवेन्द्र सिंह को तलब कर लिया और उससे डीएम के आदेश होने के बावजूद भी एफआईआर लिखने में आनाकानी करने की बजह पूछी। जिस पर मुंशी बगलें झांकने लगा।
यह कोई नई बात नहीं, कोतवाली थानों में बगैर अधिकारियों की मर्जी से तहरीर ही नहीं लिखी जा सकती और जबकि शासनादेश के अनुसार कोतवाली में बैठा मुंशी तहरीर के आधार पर ही तत्काल एफआईआर व एनसीआर दर्ज करेगा। लेकिन अमूवन ऐसा नहीं होता है। फिलहाल डीएम के आदेश की अवहेलना करके मुंशी ने यह तो दर्शा ही दिया कि मामला किसी का भी हो लिखा उसी की कलम से जायेगा। लेकिन वह यह भूल गया कि कानून सब के लिए एक है।