बढ़ता पॉल्युशन, कटते पेड़ और लोगों की अनदेखी के चलते शहर में कुछ पक्षी और छोटे जीव लुप्त होने की कगार पर पहुंच गए हैं। पहले खुशनुमा मौसम होते ही कोयल की आवाज गूंजने लगती थी, लेकिन अब इसे सुनने के लिए कान तरस जाते हैं।
एक्सपर्ट्स के अनुसार इन चहकते पड़ोसियों के लुप्त होने की वजह रहने की जगह का न होना है। शहर का विस्तार होने के कारण पेड़ कट गए हैं जिनमें ये परिंदे घोसले बनाते थे। ब्रीडिंग के लिए उन्हें जो माहौल चाहिए, वह अब शहर में नहीं बचा है इसलिए इनकी संख्या तेजी से कम होती जा रही है।
हजारों थे गिद्ध – एक समय था जब शहर में हजारों की संख्या में गिद्ध हुआ करते थे, लेकिन अब वे भी कम ही नजर आ रहे हैं। बॉम्बे नेचरल हिस्ट्री सोसायटी की रिपोर्ट के अनुसार पूरे भारत में पहले गिद्धों की संख्या 10 लाख थी, जो अब घटकर मात्र 10 हजार रह गई है। ये उन स्थानों के आंकड़े हैं जहां इन्हें संरक्षित किया गया है। इंदौर में इनकी संख्या अंगुलियों पर गिनी जा सकती है।
20 सालों से गिद्धों को बचाने के लिए काम कर रहे किशनलाल पुरोहित बताते हैं आजकल ज्यादा दूध के लिए मवेशियों को कई तरह के इंजेक्शन लगाए जाते हैं। लंबे समय में वे मवेशियों के शरीर में इकट्ठा होते रहते हैं। जब मवेशी मरते हैं और गिद्ध उन्हें खाते हैं तो इससे उनके शरीर में भी जहर पहुंचता है। यही उनकी मौत का कारण बनता है।
न कौए बचे न कोयल- बर्ड वॉचर दिनेश कोठारी कहते हैं गोरैया, गिलहरी, गिद्ध, बाज पिछले कुछ सालों में काफी कम हुए हैं। इसकी वजह पेड़ों का कटना है। दूसरी वजह है फलदार पेड़ों का कम होना। दिनेश कहते हैं हॉन बिल बर्ड,कपासी (ब्लेड शोल्डर काइट),शिक्रा, मैक पाइल रॉबिन आदि पेड़ों में होल बनाकर रहते हैं।
पीपल, चंदन जैसे पेड़ खत्म होने से अब ये पक्षी अपना घरौंदा नहीं बना पा रहे हैं। घने पेड़ों की कमी की वजह से गिलहरी भी कम हो रही है। बर्ड वॉचर कौस्तुभ ऋषि कहते हैं कोयल हमेशा कौए के घोसले में ही अंडे देती है, क्योंकि कौवा ऊंचे पेड़ों पर घोसला बनाते हैं जो सुरक्षा के लिहाज से ठीक होते हैं। अब शहर में ऐसे पेड़ रहे ही नहीं।
कम होने की वजह
फूड चेन खत्म होना
पेड़ों का कटना, खाने की कमी
सुरक्षा का अभाव, बढ़ता पॉल्युशन
ब्रीडिंग का माहौल न मिलना
कैसे बचाएं
अधिक से अधिक पौधे लगाएं
पेड़ों को ट्रांसप्लांट करें
फलदार पेड़ लगाएं
बर्ड हाउस या अन्य माध्यम से इन्हें आश्रय दें
प्रकृति को पॉल्यूशन से बचाएं
दाना-पानी की व्यवस्था करें