Thursday, December 26, 2024
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यूपी में मिड डे मील और दलित रसोइया

उत्तर प्रदेश में शिक्षा का नया सत्र शुरू होते ही पहले से लड़खड़ा रही मिड डे मील योजना में नया बखेड़ा शुरू हो गया| ये बखेड़ा मिड डे मील बनाने वाले रसोइये के चयन को लेकर है| उत्तर प्रदेश सरकार के सचिव जीतेन्द्र कुमार के 24 अप्रैल 2010 के आदेश में रसोइये के चयन में आरक्षण व्यवस्था को लागू करने के अनुपालन में प्रदेश भर से गाँव गाँव में दलित रसोइया खाना बनाने पहुचे और स्कूलों में छात्रों ने खाना खाने से इंकार कर दिया| मिड डे मील बहिष्कार और दलित रसोइया का प्रकरण कोई नया आदेश नहीं है| वर्ष 2007 में प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव ने 24 अक्टूबर 2007 में यह आरक्षण व्यवस्था लागू करने के निर्देश दिए थे| मगर अचानक इसी सत्र में बड़ा बखेड़ा क्यूँ शुरू हुआ ये बात गौर करने लायक है|

वर्ष 2004 में जब मिड डे मील योजना का प्रारंभ उत्तर प्रदेश में हुआ था तब रसोइये के चयन में आरक्षण और प्राथमिकता के नियम जैसी कोई बात नहीं थी| केंद्र सरकार के मिड डे मील योजना के नियम जो प्रदेशो को जारी किये गए उनमे भी आरक्षण जैसी कोई बात नहीं आई थी| सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर चालू हुई मिड डे मील योजना का सञ्चालन बच्चो का बौधिक स्तर ऊँचा करना, बच्चो को शिक्षा के लिए प्रेरित करना, उनके स्वास्थ्य में सुधार लाना तथा शिक्षा का स्तर सुधारते हुए हर बच्चे को शिक्षित करना था| शुरुआत में भी कुछ स्थानों पर दलित रसोइये के चयन को लेकर कुछ जिलों में विवाद हुआ था मगर तब व्यावहारिक रूप से जहाँ इसका विरोध हुआ प्रधान/सरपंच और स्कूल के हेडमास्टर ने रसोइये के चयन में व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए आरक्षण के मानको को दरकिनार कर दिया और 3 साल तक इंतना हो हल्ला नहीं हुआ|

2007 में उठी थी मिड डे मील बहिष्कार की पहली चिंगारी

2007 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव के 24 अक्टूबर 2007 के रसोइये के चयन मे आरक्षण लागू करने के आदेश के बाद ये चिंगारी भड़क गयी थी| सिप्तम्बर 2007 में कन्नौज जनपद के मलिकपुर प्राथमिक और जूनियर विद्यालय में प्रधान ने पहले से खाना बना रही पिछड़ी जाति की महिला को हटाकर दलित महिला को लगा दिया| यादव बाहुल्य गाँव में बबाल हो गया, लगभग 300 पंजीकृत बच्चों में से 2 सैकड़ा बच्चों ने खाना खाने से इंकार कर दिया, मामला जिले के आला अधिकारी तक पंहुचा तो अधिकारिओं ने दबाब बनाया फिर क्या था बच्चों ने स्कूल जाना ही छोड़ दिया| स्कूल के मास्टर और प्रधान सहित 5 लोगों के खिलाफ जाति भेदभाव फैलाने का मुकदमा दर्ज हो गया| शिक्षा में पुलिस का दखल शुरू हो गया| प्रयत्क्ष देखी बात है उस समय इलाके के थाना इंचार्ज भी स्कूल में बच्चो पर दबाब बनाने के लिए स्कूल में मिड डे मील के समय मय पुलिसिया ताम झाम के गए थे, बच्चे स्कूल में वावर्दी पुलिस देख भयभीत हो रहे थे, स्कूल में जाने की रूचि बढाने वाला कार्यक्रम नौनिहालों के दिलों में डर पैदा कर रहा था और आखिर एक दिन में केवल 20-22 बच्चे ही स्कूल आने लगे| राष्ट्रीय समाचार चेनल जी न्यूज़ ने पूरे दिन मिड डे मील कार्यक्रम को सजीव प्रसारित किया, देर रात गाँव में चौपाल लगाकर सभी वर्गों में जाति भेदभाव को मिटाने की चौपाल लगायी| मगर नतीजा कुछ नहीं निकला, आखिरकार रसोइया बदलना पड़ा|

फिर ये बहिष्कार की चिंगारी कानपुर होते हुए प्रदेश के कई जिलों में फ़ैल गयी और अधिअरियो ने दौड़ भाग करने के बाद निराश होकर ये मान लिया था कि ये सामाजिक परिवर्तन में कानून थोपने जैसा है| व्यवस्था परिवर्तन में समय लगता है| और ठन्डे बसते में सब कुछ चला गया| अगले दो साल तक कानपुर देहात जिले के कई ठाकुर बाहुल्य गाँव में मिड डे मील का चूल्हा ठंडा पड़ा रहा|

वर्ष 2009 में कोई बड़ा मामला प्रकाश में नहीं आया और सत्र बीत गया|

क्या केंद्र का कोई नया आदेश है?

वर्ष 2010-11 का सत्र शुरू होने से पहले ही नए सत्र के लिए मिड डे मील बनाने वाले रसोइयों को रखने के लिए केंद्र सरकार ने व्यवस्था परिवर्तन किया| मगर व्यवस्था परिवर्तन में रसोइयों को मिड डे मील बनाने के एवज में मिलने वाले पारिश्रमिक व्यवस्था को बदला गया न कि सख्ती से आरक्षण लागू करने की बात कही गयी| भ्रष्ट्राचार से ग्रसित मिड डे मील योजना में रसोइयों के हित साधने की कोशिश हुई| पहले रसोइयों को खाना खाने वाले प्रति बच्चो के हिसाब से पारिश्रमिक मिलता था अब 25 बच्चो के लिए खाना बनाने पर 1000 रुपये रसोइया देने की व्यवस्था मानदेय के रूप में देने की बात की गयी है| पैसा पहले भी सरकारी मिलता था अब भी सरकारी मिलेगा तो नए सिरे से आरक्षण लागू करने की बात उस मामले में क्यूँ खडी हो गयी जिसमे स्वतंत्रता का अधिकार प्रभावित हो रहा हो (स्वेक्षा से खाना खाने या न खाने की)|

इस व्यवस्था में प्रथम रसोइया अनुसूचित जाति, दूसरा सामान्य जाति से, तीसरा पिछड़ा वर्ग से तो चौथा फिर सामान्य से तथा पांचवा फिर अनुसूचित जाति से होगा ऐसा आदेश उत्तर प्रदेश सरकार से किया गया है|

मौका चुनावी है

उत्तर प्रदेश में इस साल पंचायत के चुनाव होने है| ऐसे में वर्तमान प्रधानो/सरपंचो को गाँव में जातीय राजनीती करने के स्कूल के मिड डे मील का अखाडा मिल गया है| व्यवस्था को सामान्य रूप से चलाने के लिए पिछले उत्तर प्रदेश सरकार के आरक्षण आदेश को पिछले तीन साल से अनदेखा करने वाले प्रधान अब अपनी प्रधानी के अंतिम चरण में इसे लागू क्यूँ करना चाहते है| लोकतंत्र की सबसे छोटी इकाई ग्राम पंचायत में अचानक यह दलित प्रेम जागना वोटो की राजनीती भी हो सकती है| दलित वोटो को इकठ्ठा रखने का बढ़िया हथियार भी हो सकता है| मगर इस सबसे सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का क्या होगा जिसका उद्देश्य देश के लिए स्वस्थ और शिक्षित नौजवान बनाना था| इस पर चर्चा कहीं क्यूँ नहीं| सब नेता खामोश है, अधिकारी कुर्सी बचाने और माया को खुश करने में लगे है और देश के सरकरी प्रारम्भिक शिक्षा की अर्थी निकली जा रही है| क्या ऐसी व्यवस्था जिसके लागू करने से देश की विकासपरख योजना का मूल उद्देश्य प्रभावित होता हो उस पर आरक्षण व्यवस्था को सख्ती से लागू करना उचित होगा विचारणीय प्रश्न है|

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