सिस्टम की लापरवाही की भेंट चढ़ गये गरीबों के चूल्हे

Uncategorized

फर्रुखाबाद: इसे शासन व प्रशासन की लापरवाही कहें या गरीबों के प्रति अन्याय। जिन गंदे नालों के पानी को शोधित करने के लिए प्रशासन द्वारा ट्रीटमेंट प्लांट लगवाये जाने चाहिए व शोधित करने के बाद ही उसे नदी इत्यादि में प्रवाहित करना चाहिए। लेकिन प्रशासन द्वारा कुम्भ मेले को देखते हुए 10 दिन पहले से सैकड़ों कारखानों को बंद कर दिया है। जिससे फर्रुखाबाद से इलाहाबाद तक लाखों गरीब बेरोजगार हो गये। फर्रुखाबाद में ही हजारों गरीबों के बेरोजगार होने से उनके चूल्हे ठंडे होने की स्थिति में आ गये है। नगर मजिस्ट्रेट मनोज कुमार ने बीएन सन्स व एस एस सन्स सहित लगभग एक दर्जन छपाई कारखानों के बंद होने का स्थलीय निरीक्षण किया।

शासन द्वारा प्रदूषण नियंत्रण के लिए जिन फैक्ट्रियों व टेनरियों से निकलने वाले पानी को शोधित किये जाने को ट्रीटमेंट प्लांट लगवाया जाना चाहिए उसे अब तक खुले नालों से गंगा में प्रवाहित किया जाता रहा। लेकिन जब शासन को अचानक कुम्भ मेले की याद आयी तो गंदा पानी व कैमिकल युक्त पानी बहाने वाले चमड़ा कारखानों सहित छपाई उद्योगों को भी बंद कर दिया गया। जिनमें हजारों लोगों को रोजगार मिला हुआ था। इस सर्दी के मौसम में गरीबों के बेरोजगार हो जाने से उन्हें अन्य जगहों पर भी कोई काम काज का ठिकाना नहीं लग रहा है। जिससे अब गरीब इधर उधर अपनी रोजी रोटी कमाने के लिए मजबूर हैं। जनपद के छपाई उद्योग में हजारों मजदूरों को रोजगार मिला हुआ है। जिसमें वह अपनी रोजी रोटी कमाकर अपने बच्चों का भरण पोषण करते हैं। लेकिन आस्था के सैलाव में प्रशासन ने गरीबों व गरीबों के बच्चों के पेट में ठंड के मौसम में लात मार दी।

वहीं इन गरीबों का मानना है कि यदि प्रशासन को अचानक फैक्ट्रिया बंद की जानी थी तो उन लोगों को कम से कम भरण पोषण का इंतजाम करना चाहिए था। लेकिन एसा कुछ भी नहीं किया गया जिससे उन लोगों को अब भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। वहीं कुम्भ स्नान में अभी पांच दिन शेष हैं। अधिकांश फैक्ट्रियां बंद कर दी गयीं हैं। पांच दिन बाद कुम्भ मेला होने के बाद 27 जनवरी से जनपद में रामनगरिया माघ मेला लगने वाला है। जिसमें भी गंदे नाले बंद रखने पड़ेगे। लगभग दो माह तक फैक्ट्रियों के बंद रहने से गरीबों के बच्चे भुखमरी के कगार पर आना तय माना जा रहा है।

शासन व प्रशासन के लिए बड़े ही शर्म की बात है कि जिन गंदे नालों को ट्रीटमेंट प्लांट लगाकर शोधित कर गंगा या अन्य नदी में डालना चाहिए उन्हें एक माह बंद रखने के बाद दोबारा इसी गंगा नदी में डाल दिया जायेगा। जिससे प्रशासन द्वारा कौन सी गंगा नदी को स्वच्छ व निर्मल बनाने का काम किया जा रहा है। एक माह फैक्ट्रियां बंद रखकर गंगा को प्रदूषणमुक्त नहीं बनाया जा सकता। प्रशासन द्वारा पहले तो इन फैक्ट्रियों को बिना मानकों के ही मोटी रकम लेकर लाइसेंस दे दिये जाते हैं। बाद में प्रदूषण फैलाने की खुली छूट दे देती है। जिसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है।