पुलिसिया उवाच: विसरा दिये बिसार, सोवैं अपराधी पायें पसार

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फर्रुखाबाद(दीपक शुक्‍ला): पोस्टपमार्टम के दौरान मृत्युव के कारणों का खुलासा न होने पर विसरा सुरक्षित रखने व उसका वैज्ञानिक परीक्षण कराने की निर्धारित प्रक्रिया है। विसरा अधिकतम छह माह तक ही परीक्षण योग्यल रहता है, जबकि पोस्टरमार्टम हाउस में 2 दशको से भी अधिक पुराने तक विसरा कथित रूप से ‘सुरक्षित’ रखे हैं। कई पर तो मृतकों के नाम तक मिट चुके हैं। पुलिस विभाग की लापरवाही अपराधियों के लिये वरदान साबित हो रही है। लापरवाही जब एक सीमा से गुजर जाये तो उसे मिलीभगत कहा जाता है, परंतु हमारी सीमायें हैं। हम तो इतना ही कह सकते हैं ‘विसरा दिये बिसार, सोवैं अपराधी पायें पसार’

पोस्टमार्टम हाउस के करीब पहुंचते ही ही जिस तीखी बदबू से मुकाबला करना पड़ता है उसका अंदाजा अंदर दशकों से कांच के जारों में सड़ रहे मानव अंगों (विसरा) को देख कर लगाया जा सकता है। वास्तंव में यह उन निरीह म़ृतकों के जिस्म के हिस्से हैं, जिनके हत्याकरे आज भी खुले आम भुजायें फटकारते फिर रहे होंगे। हिंदू धर्म में मान्ययता है कि जब तक मृतक के शव का पूर्ण रूप से अंतिम संस्कार न हो जाये उसकी आत्मा भटकती रहती है। इन अभागे मृतकों की आत्माओं को मरने के बाद भी इंसाफ तो दूर शायद भव सागर से तरना भी नहीं नसीब हो पाया है।

बीते 22 वर्षों पूर्व तक की हत्याओं में शवों का विसरा कांच के जारों में बंद करके रख दिया गया। न ही उन्हें जांच के लिए भेजा गया और न ही उसकी अवधि समाप्ति होने के बाद उसे नष्ट किया गया। जिसके चलते पोस्टमार्टम हाउस विसरा गोदाम सा बन गया है। लेकिन पुलिस, प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग की लचर व्यवस्था के चलते इस ओर बिलकुल ही ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

विदित है 19 मार्च 1990 में शहर कोतवाली क्षेत्र के 4/33 कूंचा भवानीदास निवासी 30 वर्षीय मीरा दुबे पत्नी संतोष कुमार की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत होने पर उसे पोस्टमार्टम हाउस भेजा गया। जहां मौत का कारण स्पष्ट न हो पाने से उसका बिसरा सुरक्षित कर लिया गया। पुलिस ने आज तक न ही उसे जांच के लिए भिजवाया और न ही विसरा का समय समाप्त होने के बाद उसे नष्ट कराया गया। ऐसा ही एक मामला 26 मार्च 1991 का है। जब राजेपुर क्षेत्र के ग्राम अलीगढ़ निवासी 35 वर्षीय श्यामप्रकाश पुत्र राजबाबू की मौत के बाद पोस्टमार्टम में मौत की बजह स्पष्ट न हो पाने से उसका बिसरा सुरक्षित कर लिया गया था। तब से लेकर आज तक पोस्टमार्टम हाउस के अंदर एक जार में उसका विसरा रखा है। यही हाल 12 मार्च 1992 में भोलेपुर निवासी 25 वर्षीय जगदीश कुमार पुत्र मेवाराम का बिसरा आज तक पोस्टमार्टम हाउस में बंद है। लेकिन पुलिस ने इस सम्बंध में कोई भी कदम नहीं उठाया।

पोस्टमार्टम हाउस में पूरे जनपद के लगभग एक हजार से अधिक बिसरा हैं। अकेले वर्ष 2012 में ही अब तक 70 मृतकों के विसरा को सुरक्षित किया गया। कई पर तो जार के ऊपर लिखा गया मृतक का नाम पता तक समय अधिक हो जाने की बजह से गायब हो चुका है। अब प्रश्न इस बात का उठता है कि जब जार पर नाम पता ही नहीं है तो आखिर पुलिस यह कैसे पहचानेगी कि इस जार में किस व्यक्ति का विसरा सुरक्षित किया गया है।

इस सम्बंध में डा0 बृजेश सिंह ने बताया कि विसरा के सुरक्षित रहने की अवधि महज 6 महीने की ही है। जिसमें से दो माह जांच में लग जाते हैं, जांच लखनऊ विज्ञान प्रयोगशाला में भेजी जाती है। छः माह के बाद विसरा सुरक्षित नहीं रहता फिर उसके रखने का कोई औचित्य नहीं रह जाता। उन्होंने कहा कि दो तरह के विसरा सुरक्षित किये जाते हैं एक तो एल्कोहल वाले जिन्हें नमक के पानी में रखा जाता है तो वहीं अन्य बिसरों को स्प्रिट में रखकर सुरक्षित किया जाता है। लेकिन छः माह की अवधि के बाद विसरा को रखने का कोई औचित्य नहीं है।

12 सालों से पुलिस उपलब्ध नहीं करा रही केमिकल व जार

फर्रुखाबाद: सन 2000 से पूर्व पुलिस विभाग पोस्टमार्टम हाउस में लाये गये मृतकों के विसरा सुरक्षित रखने के लिए खुद ही जार व केमिकल की व्यवस्था करता था। लेकिन सन 2000 के बाद बीते 12 सालों से पुलिस ने विसरा सुरक्षित रखने के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले जार व केमिकल को स्वास्थ्य विभाग को उपलब्ध कराना ही बंद कर दिया। जिससे अब इसका खर्चा मृतकों के परिजनों पर आ गया है। जिसके चलते पोस्टमार्टम हाउस में ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मी मृतकों के परिजनों से सामग्री के खर्च से कई गुना वसूली करके केमिकल व जार उपलब्ध कराते हैं। एक विसरा को सुरक्षित करने के लिए तकरीबन ढाई सौ से तीन सौ रुपये का खर्चा आता है।

इस सम्बंध में मुख्य चिकित्साधिकारी राकेश कुमार ने बताया कि बिसरा हटाने के लिए समिति बनायी जाती हैं जिसमें पुलिस अधीक्षक के आदेश के बगैर कुछ नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि वर्षों पुराने खराब हो चुके बिसरों को रखने का काम स्वास्थ्य विभाग का नहीं है। जिसके चलते अब मृतकों के विसरा को सम्बंधित थाना व कोतवाली को सौंप दिया जाता है। उन्होंने कहा कि वह पुराने विसरा को नष्ट करने के लिए पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखेंगे और शीघ्र ही पुराने विसरों को हटा दिया जायेगा।

इस सम्बंध में अपर पुलिस अधीक्षक ओपी सिंह ने बताया कि वह इस प्रकरण पर जांच कर शीघ्र कार्यवाही की जायेगी।