बाल अधिकार बन गये नेताओं व अधिकारियों के मुंह का निवाला

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फर्रुखाबाद: मंगलवार 20 नवंबर को अतर्राष्‍ट्रीय बाल अधिकार दिवस है।  भोजन, शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य, आवास, कपड़ा, आत्‍म सम्‍मान और यौन शोषण से निजात जैसे मौलिका बाल अधिकारों को सुनिश्‍चित करने के लिये यूनीसेफ की ओर से जो दिशा निर्देश जारी किये गये थे, वह अधिकारियों और नेताओं की लालच और कर्तव्‍यहीनता का ग्रास बन कर रह गये हैं। गरीब कुपोषित बच्‍चों के लिये आने वाला पुष्‍टाहार का 10 प्रतिशत भाग भी पात्रों को नहीं मिल रहा है। निजी स्कूल आज भी शिक्षा के अधिकार के अंतर्गत गरीब छात्रों के निशुल्‍क शिक्षा के हक को देने को राजी नहीं हैं। सरकारी स्‍कूल फर्जी पंजीकरण के सहारे आंकड़ों का पेट भर रहे हैं। दिन भर अस्‍पतालों और होटलों के बाहर, सड़कों के किनारे नालियों व कूड़े के ढेरों से कचरा बीनते बच्‍चों के अलावा हजारों की संख्‍या में बच्‍चे खतरनाक तम्‍बाकू उद्योग में लगे हैं। इनके तन पर झूलते चीथड़ों और उनके नीचे झांकती हड्डियां इनके रहन सहन व भोजन की गुणवत्‍ता के विषय में चीख चीख कर बाताती होती हैं। परंतु समाज के जिम्‍मेदार अधिकारी व नेता इनसे नजर चुरा जाने में ही भलाई समझकर आगे बढ जाते हैं।

वैसे संयुक्त राष्ट्र के बाल अधिकार कनवेंशन के मुताबिक यह सभी देशों-सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे बाल अधिकारों की सुरक्षा करें और बच्चों को मुश्किल हालात से बाहर निकालें। परंतु वास्‍तव में विधायिका व कार्यपालिका दोनों ही समस्‍या से मुंह चुराना तो दूर इसके कारकों में सक्रिय भागीदार बनती नजर आती हैं।

बच्‍चों के नि:शुल्‍क शिक्षा के अधिकार को ही ले लें तो इसका खुला मखौल उड़ रहा है। सत्‍ता में बैठे लोग नियुक्‍तियों में वसूली और वोट बैंक की लालच में शिक्षकों की भर्ती के लिये शिक्षकों की कमी का तो रोना रोते नजर आ जायेंगे, परंतु वर्तमान व्‍यवस्‍था के सुधार के लिये कोई प्रयास नहीं किया जाता। सरकारी शिक्षक स्‍कूलों से नदारद रहते हैं, नौकरी बचाने के लिये खुले आम रिश्‍वत के दम पर फर्जी उपस्‍थिति व नामांकन के बूते आंकड़ों का पेट भर दिया जाता है। निजी स्‍कूलों में शिक्षा के अधिकार को लागू करने का प्रयास न के बराबर है।

स्‍वास्‍थ्‍या सेवाओं की तो वैसे भी दुर्दशा है। परंतु बच्‍चों के लिये और भी भयावह है। करोड़ों रुपये की लागत से तैयार लोहिया अस्‍पताल में एक भी बाल-रोग विशेषज्ञ तैनात नहीं है। कुपोषित बच्‍चों के लिये केंद्र सरकार और यूनीसेफ की ओर से आने वाला पुष्‍टाहार नियमित रूप से बड़ी ही सफाई से जिले के बड़े डेरी संचालकों के गोदामों में चला जाता है। आंगनबाड़ी केंद्रो पर बच्‍चों को भोजन देने के लिये आने वाली नगद धनराशि विभागीय कार्यकत्रियां व अधिकारी निहायत बेशर्मी के साथ बांट कर खा जाते हैं। स्‍थिति यह है कि बच्‍चों के आने वाली दवाइयां व खिलौने तक आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों के घरों पर पड़े रहते हैं।

बाल-श्र्रम को रोकने के लिये श्र्रम विभाग के अधिकारी भी आंखों पर पट्टी व कानों में तेल डाले बैठे हैं। शहर में जगह जगह ढाबों व चाय के होटलों पर छोटू चाय व खाने की थालियां परोसते नजर आते हैं। जनपद के तंबाकू उद्योग में हजारों की संख्‍या में लगे बच्‍चों का बचपन वीरान हो रहा है। बीड़ी बनाने से लेकर खैनी पैकिंग तक में बच्‍चे लगे हुए हैं। इनको इस खतरनाक उद्योग की जद से बचाने की दशा में कोई कार्रवाई नहीं होती है। शहर में ही हजारों बच्‍चे जरदोजी उद्योग में लग कर कम रोशनी में बारीक कढाई कर अपनी शिक्षा व आंखों की रोशनी के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।