फर्रुखाबाद परिक्रमा : – राजनीति के अखाड़े में केजरीवाल की गुगली

EDITORIALS FARRUKHABAD NEWS

खबरीलाल की प्रसन्नता का आज कोई ओर छोर नहीं था। रास्ते में जो भी मिलता। स्वयं ही रामजुहार करते। धीरे से पूंछ देते। कहो भाई कैसी रही। जब कोई पलट कर पूंछता क्या रही। खुशी से दोहरे हो कर खबरीलाल कहते। अरे वही अपने केजरीवाल भैया की बेमिसाल गुगली। सुनने वाला अपने अंदाज में हंसकर आगे बढ़ जाता। खबरीलाल कहते अभी क्या हुआ- आगे आगे देखिए होता है क्या! तेल देखो तेल की धार देखो।

खबरीलाल इसी तरह मस्ती में डूबे चले जा रहे थे। रेलवे रोड पर जो मजमा आज कल होरीलाल मार्केट के आस पास जुटता है। बैठने वाले जुदा हैं। बैठने की व्यवस्था जुदा है। परन्तु चर्चा परिचर्चा हास परिहास छींटा कशी का वही दौर रहता है। केवल समय और शैली के परिवर्तन के साथ। यहां आते आते खबरीलाल और ज्यादा हंसी के शैलाव में गोते लगाने लगे। अपनी अपनी बाइक के सहारे नौजवानों के एक छोटे से मजमें ने खबरीलाल को देखते ही सामूहिक रूप से उनका जोरदार अभिवादन किया। खबरीलाल खुश होकर बोले। शाबाश! मेरे मिट्टी के शेरों! तुम्हारा जबाब नहीं। तुमने और तुम्हारे जांबाज साथियों ने पिछले दस बारह दिनों से जो रणकौशल दिखाया है। उसके चलते अपने प्यारे दुलारे फर्रुखाबाद का नाम पूरे देश में ही नहीं पूरी दुनिया में रोशन हो गया। किसी ने सही ही कहा है-

अक्ल और दानिश के जो माने हुए उस्ताद हैं,
ऐसे उस्तादों का मरकज शहर फर्रुखाबाद हैं।

इसी दौरान अगल बगल खड़े नौजवान भी खबरीलाल के पास आकर खड़े हो गए। उन्हीं में से एक बोला! खबरीलाल जी जरा खुलकर और विस्तार से बताइए न। खबरीलाल बोले बताऊंगा बताऊंगा। परन्तु विस्तार से नहीं- संक्षेप में समझो- जैसे

सत सैया के दोहरे जस नाविक के तीर।
देखन में छोटे लगें घाव करें गंभीर।।

खबरीलाल बोले सबसे पहिले धन्यवाद दो फर्रुखाबाद की जनता को जिसने 2009 के चुनाव में मतदान करने में जबर्दस्त कंजूसी दिखाई। नतीजतन अपने सलमान साहब कुल मतदाताओं का मात्र तेरह प्रतिशत वोट पाकर सांसद हो गए। फिर धन्यवाद दो देश के महान शिक्षाविद पूर्व राष्ट्रपति डा0 जाकिर हुसैन को जो सलमान साहब के नाना थे।

अपने नाना की नाक और ऊंची करने के लिए अपने सलमान साहब उनके नाम के सहारे मंत्रि मण्डल में स्थान पा गए। अपने नाना के नाम पर ही उनकी स्मृति में चार चांद लगाने के लिए चेरटेबिल ट्रस्ट बनाया। इसके बाद अपने सलमान साहब ने टीम अन्ना के केजरीवाल नाम के एक सदस्य से पंगा ले लिया। पता नहीं दोनो में किस जनम का बैर था कि केजरीवाल छुट्टा सांड की तरह अपने सलमान साहब के पीछे ही पड़ गया। पहिले उसने सलमान साहब पर उनके ट्रस्ट पर परियोजना डायरेक्टर उनकी पत्नी पर जाने क्या क्या घटिया बेबुनियाद आरोप लगाए। सलमान साहब ठहरे भले आदमी। 1857 के गदर से लेकर आज तक उनके परिवार और अब स्वयं उनका देश भक्ति पूर्ण शालीनता शिष्टाचार में खासा शानदार इतिहास रहा है। लेकिन केजरीवाल क्या जाने। मैया मैं तो चन्द्र खिलौना ली हौं की तर्ज पर एक नवम्बर को फर्रुखाबाद आने के लिए मचल गए। सलमान साहब इस पर भी कुछ नहीं बोले। उनकी पत्नी ने भी कुछ नहीं कहा। आओ भाई आओ सारा देश तुम्हारा है। जहां चाहो वहां जाओ।

खबरीलाल बोले खड़े खड़े हमारा मुहं क्या देख रहे हो। एक पानी की बोतल लाओ जरा गला तर कर लें। अपने सलमान साहब की लंदन से लौटकर की जाने वाली प्रेस कान्फ्रेंस नहीं देखी थी क्या। बेचारे बात बात में पानी पीते थे। परन्तु क्या मजाल कि गुस्सा चेहरे या जवान पर आ जाए। इसे कहते हैं सलीका, तहजीव। परन्तु सलमान साहब की तरह उनके इस क्षेत्र में जहां उनकी अपार लोकप्रियता है। उनके समर्थक क्यों शांत बैठें। शहर और जिलों में पुतला, अर्थी फूंकने का जबर्दस्त सिलसिला चलाया मजबूरन अपने प्यारे दीवाने समर्थकों की इज्जत रखने के लिए पहली बार थोड़े गर्म लहजे में सलमान साहब को कहना पड़ा – जाओ केजरीवाल जाओ फर्रुखाबाद जाने के इतने ही उतावले हो तो जाओ। परन्तु यह ध्यान रखना कि वहां से सकुशल वापस आने की कोई गारंटी हमारे पास नहीं है।

खबरीलाल बोले जीवन भर विचार और संघर्ष की राजनीति करने वाले समाजवादी चिंतक डा0 राममनोहर लोहिया की कर्मभूमि से सांसद और केन्द्रीय मंत्री सलमान साहब के इस एक बयान ने फर्रुखाबाद का नाम देश ही नहीं पूरी दुनिया में रोशन कर दिया। क्रिया प्रतिक्रिया का ऐसा दौर चला कि लोग सीधे साधे लगने वाले केजरीवाल की उस्तादी की दाद देने लगे। वह भड़काते रहे। वह भड़कते रहे। वह रोकते रहे परन्तु वह आने की जिद ही ठाने रहे। वह रोते रहे। वह रुलाते रहे। वह हंसते रहे वह हंसाते रहे। वह जलते रहे वह जलाते रहे। देखना है भारतीय राजनीति के अखाड़े का यह नया गुगलीबाज अरविंद केजरीवाल एक नवम्बर 2012 को सलमान साहब के संसदीय क्षेत्र में आकर क्या गुल खिलाता है।

खबरीलाल लाल चौक की ओर बढ़े ही थे। किसी ने पीछे से फिकरा कसा खबरीलाल जी! केजरीवाल यहां आ भी पायेंगे। हमें इसमें भी शक है। खबरीलाल बोले बात तुम्हारी भी ठीक है। बात हमारी भी ठीक है। लेकिन सब कुछ जनता पर निर्भर करता है। वह जनता जो अपने सलमान साहब से दलीय, जातीय, मजहवी सारे बंधन छोड़कर तोड़कर वेहद प्यार करती है। उनके लिए कुछ भी कर सकती है। अब ऐसा नेक काम केवल तेरह प्रतिशत मतदाता ही करते हैं या कर पाते हैं। तब फिर इसमें बेचारे केजरीवाल का क्या कसूर है। उसने इस तेरह प्रतिशत में भी डकैती डालकर भारतीय राजनीति के सुपर स्टार हीरो को जीरो करने की कसम खा रखी है। परन्तु अपने सलमान साहब भी कम नहीं हैं। निष्ठा, आस्था, वफादारी के सारे रिकार्ड तोड़ते हुए भरी सभा में ऐलान कर दिया। अगर राष्ट्रीय जीजा जी रावर्ट वाड्रा की शान के खिलाफ या उनकी सासू मां भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी के खिलाफ कुछ भी कहा। तब वह रावर्ट वाड्रा और सोनिया गांधी के लिए अपनी जान तक दे सकते हैं।

खबरीलाल रुके और बोले! अरे दूसरे की तरक्की पर जलने वाले अरविंद केजरीवाल और उनके चिरकुट चमचों! भारतीय राजनीति में वफादारी का अपने सलमान साहब द्वारा स्थापित यह कीर्तिमान कौन तोड़ पाएगा। इस एक वाक्य ने ही सारे पुख्ता सबूतों और हालातों के बाद भी केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में अपने सलमान भैया की कुर्सी बचा दी। सोनिया जी यही करना था। तब फिर सरकारी दलबल के साथ हज पर जाने से अंतिम समय पर नाम क्यों काटा।

अब मिला सेर को सवा सेर!

केजरीवाल का हमला सोनियागांधी के दामाद पर हुआ। भाजपाई बल्लियों उछलने लगे। वही जमे जमाए डायलाग नगर जिला स्तर से लेकर प्रान्तीय राष्ट्रीय नेताओं द्वारा उछाले जाने लगा। केजरीवाल ने विधि मंत्री सलमान खुर्शीद उनके ट्रस्ट पर जोरदार हमला किया। लगा भाजपाइयों को मुहंमांगी मुराद मिल गई, चेहरे चुनाव निशान कमल फूल की तरह खिल गए। जमकर पैंतरेवाजी होने लगी। चुनाव जब हो जायें दिल्ली की कुर्सी कोई रोक नहीं सकता। केजरीवाल और उनके आंदोलन की सराहना के फूल बरसने लगे। भाजपाइयों की प्रसन्नता छुपाए नहीं छुप रही थी। सब कह रहे थे। जो काम बड़े बड़े सूरमा नहीं कर पाए वह केजरीवाल ने एक झटके में कर दिया।

परन्तु केजरीवाल ठहरे आम आदमी। कर दिया भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी पर पूरे गोला बारूद और पुख्ता सबूतों के साथ हमला। खुशी में झूम रहे भाजपाइयों को सांप सूघ गया। शर्मा शर्मी पार्टी के नाम पर मामले को कुछ साधने का प्रयास किया। परन्तु हमला इतना करारा और जोरदार था कि दूसरी बार राजतिलक के स्थान पर विदाई की बातें होने लगीं। हर समय चेहरे पर मुस्कान चिपकाए रखने वाले गडकरी और भाजपाई बीच चौराहे पर राष्ट्रीय स्तर पर हो रही अपनी फजीहत पर हक्के बक्के खड़े हैं। बोलती बंद है।

कांग्रेस और कांग्रेसियों के भ्रष्टाचार के मुकाबले अपने आपको पाक साफ और ‘पार्टी विद द डिफरेंस’ घोषित करने वाले भाजपाइयों को पहली बार यह एहसास सार्वजनिक रूप से और राष्ट्रीय स्तर पर हुआ कि राजनीति के अखाड़े में वह और कांग्रेस चोर-चोर मौसेरे भाई ही हैं। साथ ही साथ भ्रष्टाचार के हमाम में वह कांग्रेस से कहीं भी कम नंगे नहीं हैं। कांग्रेसी तो चोरी की चोरी और ऊपर से सीना जोरी करते हैं। वह भ्रष्टाचार को अपना आभूषण मानते हैं। परन्तु बात बात में सभ्यता, संस्कृति, नैतिकता, चाल चलन और चरित्र की दुहाई देने वाले भाजपाइयों को अब चेहरा छुपाने की ठौर भी मिलेगी। निकट भविष्य में यह आसान नहीं लगता। इसे कहते हैं अब मिला सेर को सवा सेर। या यूं कहो अब सींका टूट ही गया। थोड़ी राहत तो मिली।

समय है भ्रष्टाचार और महंगाई पर हमला करने का!

माहौल देखकर ऐसा लगता है कि पूरा देश भ्रष्टाचार और महंगाई का गुलाम बन गया है। भ्रष्टाचार नया युग धर्म बनकर उभरा है। महंगाई थाने नहीं थम रही है। लोगों का धैर्य चुक रहा लगता है। परन्तु शायद हम जानते नहीं या जानना ही नहीं चाहते। इस सब का समाधान हमारे हाथों में ही है।

चौंकिए मत। आज देश में जो भी ज्वलंत समस्यायें हैं। इस लोकतांत्रिक देश में व्याप्त सारी समस्याओं के लिए दोषी केवल और केवल वह लोग हैं जो मतदान नहीं करते। पार्टी सिस्टम अप्रासंगिक और अविश्वसनीय होता जा रहा है। सारी पार्टियों को मिलने वाला वोट एकजुट कर देने पर भी कुल मतदाताओं की संख्या के आधे से भी कम रहता है। मतदान के प्रति यह उदासीनता ही सारी समस्याओं की जड़ है।

गांव में डकैती पड़ती है। आप सोते रहते हैं। लूट हो जाती है। आप जागते हैं। घर से बाहर निकलते हैं। डकैत भाग जाते हैं। मारे जाते हैं या पकड़े जाते हैं। वैष्णव देवी जाते हैं। अमरनाथ यात्रा पर जाते हैं। हज करने जाते हैं। परन्तु मतदान के दिन निष्पक्ष और निर्भीक होकर मतदान के लिए नहीं निकलते।

अब यह कहने से भी काम चलने वाला नहीं है। सब एक जैसे हैं किसे चुनें। मतदान के लिए निकलिए। रास्ता भी निकलेगा। याद रखिए जातिवाद की बात करने वाले, महंगा चुनाव लड़ने वाले चुनाव से पूर्व पैसा या दारू बांटने वाले कभी यह नहीं चाहेंगे कि मतदान का प्रतिशत बढ़े। इन्हें यदि पराजित करना है तब फिर मतदान के लिए निकलना होगा। सब मर्जों का एक और केवल एक इलाज है। मतदान का प्रतिशत बढ़ाइए।

मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण का कार्य चल रहा है। लोकतंत्र के सजग प्रहरी बनिए। फर्जी वोटर हटाइए। नए पात्र मतदाता बनबाइए। मतदाता सूचियां त्रुटिपूर्ण न हों। इसके लिए बीएलओ को सहयोग करिए। उसे मनमानी मत करने दीजिए। अपने देश के लिए इतना कर लीजिए। सब कुछ अपने आप ठीक हो जाएगा।

दरबारों की राजनीति या राजनीति का दरबार

बहुत समस्यायें हैं। आम आदमी बहुत परेशान है। मायूस है। आओ चलें उसकी सुनें। सुनने के लिए दरबार लगाऐं। दिल्ली लखनऊ से लेकर जिले जिले नगर नगर जनप्रतिनिधियों नेताओं के दरबार लगने लगे। मीडिया को बैठे बिठाये काम मिल गया। दरबार लगाओ। फोटो खिंचाओ। खबर छपाओ। घर या दफ्तर जाकर सो जाओ या आराम फर्माओ। अब जब दरबार लग गया फिर बाद में काम ही क्या रह गया। ज्यादा हो तहसील दिवस थाना दिवस और लगा लो। इसके बाद करना ही क्या है।

नेता समझता है। दरबार लगाना उसका जन्मसिद्ध अधिकार है। अधिकारी कहता है। काम हम करते हैं दरबार हमारा है। अब हमारे अंगने में नेता का क्या काम है। नेता कहता है अधिकारी का काम है केवल काम करना। वह भी हमारे आदेश पर कार्य करना। बिना कुछ सोचे बिचारे हमारे आदेश पर कार्य करना। अधिकारी को दरबार लगाने से क्या मतलब। अब जब अधिकारी ही दरबार लगाने लगेंगे। तब फिर हमारे दरबारों में कौन आएगा। नेता लगभग रोता हुआ यह बात अपने बड़े नेता से कहता है।

अधिकारी कहता है। काम हम करते हैं। यह नेता या नेती हर काम में अडंगेबाजी करते हैं। गलत शिफारिशें करेगा। हमें सही काम करने ही नहीं देगा। नेता कहता है। हम जनप्रतिनिधि हैं। अफसर कहता है हम जनसेवक है। लोगों की बातें सुनने के लिए दरबार लगाना और जनता की समस्याओं का समाधान करना हमारा काम है। आरोप प्रत्यारोप लगाते हुए नेता और अधिकारी उलझने लगे तकरार करने लगे। नतीजतन जनता की समस्यायें जस की तस बनी रहीं। परन्तु दरबार लगते रहे। लग रहे हैं। लगते रहेंगे।

एक नए अगिया बेताल बोले। यह नेता और अधिकारी क्या होता है। हम संगठन हैं। सब हमारे नीचे हैं। दरबार हम लगायेंगे। संगठन संगठन ही ठहरा। हम जिला हैं। हम नगर हैं। हम प्रकोष्ठ हैं। हम युवा हैं। हम छात्र हैं। हम आर्मी हैं। हम ब्रिगेड हैं। हम गेंग हैं। हम मण्डल हैं। हम यह हैं। हम वह हैं। हम हैं हमारा संगठन है। मजबूत है गली गली फैला है। हम दरबार लगायेंगे। नतीजतन दरबार लगने लगे। फोटो छपने लगे। जनता और समस्याओं का समाधान हर जगह नदारद है।

अब आने की बारी सीएम साहब की है!

दो अक्टूबर गांधी जयंती को सलमान साहब अपने जिले में आए। गांधी की भजन संध्या पर लगे होर्डिंगों पर पति पत्नी के बड़े बड़े चित्र। गांधी जी गायब। भजन संध्या हो गई। सर मुड़ाते ही ओले पड़े। राशन पानी लेकर केजरीवाल पीछे पड़ गए।

अब वही केजरीवाल लाख रोकने के बाद भी पहली नवम्बर को सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है- देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है। का अलाप लेते हुए अपने दल बल के साथ लोहिया की कर्मभूमि सलमान खुर्शीद के संसदीय क्षेत्र में आ रहे हैं। पक्ष विपक्ष सब दिल थामकर बैठे हैं। लोग पाबंद मुचलका किए जा रहे हैं। पुलिस प्रशासन परेशान है।

इसी के तुरंत बाद दीपावली के आस पास देश के सबसे बड़े सूबे के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के फर्रुखाबाद आने की संभावना है। केजरीवाल हैं न। यह भले नौकरी छोड़ चुके हैं। परन्तु रहे तो आयकर अधिकारी ही। अपने अलावा किसी की सुनते ही नहीं। इनकी नजर में सभी चोर हैं। जैसे लाला व्यापारी करदाता की नजर में पूरा आयकर विभाग ही चोरों सीना जोरों, लुटेरों का गिरोह है। सच्चाई क्या है। सब जानते हैं। परन्तु मानता कोई नहीं।

केजरीवाल अखिलेश और उनके पिता मुलायम सिंह यादव को सलमान के प्रकरण में भला बुरा कह चुके हैं। देखना है मुख्यमंत्री अखिलेश यादव यहां आकर अपनी सरकार तथा विभिन्न संदर्भों के साथ ही सलमान केजरीवाल आदि आदि के लिए क्या कहते हैं। जिले के विकास अपने जनप्रतिनिधियों अपनी पार्टी के नेताओं कार्यकर्ताओं के लिए क्या कहते हैं। शासन प्रशासन अधिकारियों को फेल करते हैं या पास। चुनाव आ रहे हैं। यह सिलसिला अब रुकेगा नहीं जारी रहेगा।

और अंत में – विमल तिवारी और विजय सिंह

26 अक्टूबर को कांग्रेस के वयोवृद्व नेता विमल तिवारी की छठी पुण्य तिथि थी। उनके एक समर्थक ने स्वर्गीय श्री तिवारी को जिले की राजनीति का द्रोणाचार्य कहा। मंच पर नगर विधायक विजय सिंह भी बैठे थे। उत्साही समर्थक यहीं पर नहीं रुके। विजय सिंह को जिले की राजनीति का अर्जुन बता दिया। सबके सब हक्के बक्के रह गए। विमल तिवारी अच्छे बुरे हर वक्त में पूरे जीवन भर कांग्रेस से ही जुड़े रहे। योग्यता ईमानदारी की मिशाल दी जाती है उनके नाम के साथ। उनके विरोधी तक उनका सम्मान करते हैं।

मौजूदा विधायक विजय सिंह लगभग सभी राजनैतिक दलों की खाक छान आए हैं। राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हत्या के एक मामले में उच्च न्यायालय से जमानत पर हैं। बहुत सी बातें हैं जो उनसे जुड़ी हैं। जिनका स्वर्गीय विमल और विजय के कट्टर समर्थक ही बता सकते हैं कि उन्होंने दोनो में कौन सी समानता देखी। किसी को महिमा मंडित करने से पहले कम से कम स्वर्गवासी लोगों की गरिमा मर्यादा का ध्यान तो रखा करो। वैसे तुम्हारी मर्जी। क्योंकि तुम सरल कम हो गहरे ज्यादा हो। चाहो तो इसे कुएं का मेढक भी कह सकते हो।

चलते चलते –

कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने कहा उनके पास पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण अडवाणी के परिजनों के विरुद्व भ्रष्टाचार के बहुत पुख्ता सबूत हैं। हर समय चुनौती और चेतावनी देने को तैयार रहने वाले भाजपाई अपने अध्यक्ष पर सीधे हमले के बाद इतने डर गए हैं कि किसी की भी इस सम्बंध में कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं पड़ी।

आज बस इतना ही। जय हिन्द!

सतीश दीक्षित
एडवोकेट