केंद्र और राज्य में अलग अलग सरकारों से उत्तर प्रदेश में इ-गवर्नेंस को लग रहा पलीता

EDITORIALS FARRUKHABAD NEWS Lokvani Jan Seva Kendra Politics

Editorफर्रुखाबाद: केंद्र और राज्य सरकार में अपने अपने कामो को प्रचारित करने के चक्कर में उत्तर प्रदेश में इ-गवर्नेंस की ऐसी तैसी हो रही है| इसका खामियाजा उत्तर प्रदेश के 2 लाख से ज्यादा लोकवाणी/जन सेवा केंद्र संचालकों के साथ साथ जनता भी भुगत रही है| राज्य सरकार द्वारा संचालित इ-डिस्ट्रिक्ट सेवाओं को केंद्रीय CSC से जोड़ने की जगह प्राइवेट 5-6 कम्पनियो को ठेके पर दे दिया गया है| ये कम्पनिया ही लूट का माध्यम बनी हुई है| जहाँ देश के कई प्रदेशों में जनता को 100 से ऊपर सरकारी सेवाएं इन केंद्रों से मिल रही है वहीँ उत्तर प्रदेश में इन केंद्रों पर राज्य सरकार की 4-5 सेवाओं से से काम आगे नहीं बढ़ पा रहा है भले ही 27 सेवाओं की लिस्टिंग कर इ गवर्नेंस का ढिंढोरा पीटा जा रहा हो| सरकारी बाबू तंत्र अभी भी गिद्ध नजर से अपने टुकड़े को नहीं छोड़ रहा| और इन सबके बीच एक और दलाल के बैठा देने से सेवाएं सस्ती नहीं महगी ही पड़ रही है| और केंद्र संचालक को भी कुछ मिल नहीं रहा| कुल मिलाकर चुनाव में राज्य की सबसे बड़ी आबादी ग्रामीण जनता मेट्रो और आगरा लखनऊ एक्सप्रेस वे से गुजर कर वोट देने नहीं जाएगी उसे तो पटवारी, ग्राम सचिव, सरकारी दफ्तरों के बाबुओं की घूस और प्रायमरी स्कूल के मास्टर के स्कूल आने ही याद आएगी|

उठ प्रदेश में इ डिस्ट्रिक्ट दवाओं को जनता तक पहुंचाने के लिए पहले से चल रहे लोकवाणी केंद्रों के बीच कुल 5-6 कंपनियों को घुसेड़ कर दलाली का रेट बढ़ा दिया गया है| अब लोकवाणी केंद्र सीधे इन आई सी के कंट्रोल में न होकर सजह, वयमतेक, सी एम एस कंप्यूटर लिमिटिड जैसे कंपनियों के हवाले कर दिया गया है| टेंडर देते समय उत्तर प्रदेश की सरकार के अधिकारियो ने देश के प्रगतिशील प्रदेशों के मॉडल को न अपनाकर लगता है कमीशन की संस्कृति ही अपनाई है| वर्ना ऐसा न होता की जो सबसे ज्यादा काम कर रहा है उसे सबसे कम पैसे मिलते| उदहारण के लिए कानपूर मंडल में इ डिस्ट्रिक्ट का काम हथियाने वाली कम्पनी अपने जन सेवा केंद्र संचालक को केवल 1.67 रुपये का भुगतान प्रति फ़ार्म कर रही है| अब जिस जन सेवा केंद्र में लाखो रुपये लगाकर केंद्र खोला हो वो 1.67 रुपये प्रति फार्म में जनता का काम कैसे करे? सवाल बड़ा है मगर जबाबदेही किसी की नहीं|

केंद्र सरकार की होल्डिंग वाली कम्पनी इ गवर्नेंस प्राइवेट लिमिटिड और csc-spv ने उत्तर प्रदेश को बिना किसी अतिरिक्त शुल्क के इ डिस्ट्रिक्ट सेवाओं को जनता तक पहुंचाने के लिए प्रस्ताव भेज था मगर यूपी के अफसरों/मंत्रियो ने इस निशुल्क प्रस्ताव को दरकिनार कर प्राइवेट कंपनियों को इ डिस्ट्रिक्ट सेवा देने के लिए टेंडर स्वीकृत कर दिए| नतीजा ये हुआ कि इन कंपनियों ने जन सेवा केंद्र खोलने के लिए संचालकों से मनमाने शुल्क करोडो में वसूल डाले (ऐसा नहीं माना जा सकता कि ये सब सरकारी अफसरों की सहमति से न हुआ हो)| एक एक संचालक से 9000/- प्रति केंद्र लिखापढ़ी में और 10 से 15हजार तक जो जागरूक नहीं थे उनसे अंडर टेबल भी लिए गए| बात यहीं तक नहीं रही| लोकवाणी केंद्रों पर पहले सरकार ने 20 रुपये का शुल्क प्रति आवेदन रख था| उसमे से 10 रुपये सरकार ले लेती थी| अब नए बिचौलिए के आने से उस 20 रुपये में से 18.37 रुपये संचालक से ले लिए जाते है| यानि की कुल मिलाकर 1.67 में जन सेवा केंद्र संचालक को काम करना है| है न कमाल की बात| भारत के अन्य किसी भी प्रदेश में जन सेवा केंद्र संचालक को इतने कम रुपये में काम के लिए नहीं कहा जाता| आंध्रा प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, बिहार यहाँ तक की पडोसी राज्य उत्तरांचल तक में ये सेवाएं जनता को देने के लिए जन सेवा केंद्रों पर 30 रुपये से 50 रुपये के बीच में शुल्क निर्धारित है| इन प्रदेशों में काम ईमानदारी से करने पर भी संचालक ठीक ठाक कमा लेता है| मगर उत्तर प्रदेश में 1 रुपये में काम करने के लिए कह कर सरकार खुद भ्रष्टाचार करने के लिए एक तरीके से प्रोत्साहित करती है| क्योंकि जो काम 30 रुपये में होता हो उसे 1 रुपये में करने के लिए कहना क्या है?

अब केंद्र सरकार की सीएससी और राज्य सरकार की इ डिस्ट्रिक्ट सेवा अलग अलग प्लेटफॉर्म में होने के कारण संचालक को अलग अलग जगह माथा मारना पड़ता है| दोनों ही अपने अपने कामो का ढोल पीटते है| जहाँ केंद्रीय सीएससी को लेने के लिए जोर शोर से बिना शुल्क का प्रचार किया जाता है वहीँ उत्तर प्रदेश की इ डिस्ट्रिक्ट सेवाओं को संचालित करने के लिए खूब भ्रष्टाचार हो रहा है| कहीं कोई बंदिश नहीं है| लूटो और हिस्सा दो| मगर इन सबमे पिसता कौन है? छोटा मोटा कारोबार करने वाला केंद्र संचालक और आम जनता|

कुल मिलाकर निष्कर्ष यही निकलता है कि केंद्र और राज्य में अलग अलग पार्टी की सरकार होने मायने विकास में असंतुलन और प्रचार की रस्साकसी है| इनके बीच खड़ा वोटर यानि की आम आदमी केंद्रीय और राज्य के संघीय ढांचे में काम के बटवारे से होने वाले नुकसान का ही भागीदार है| सरकार प्रचार की प्रतिद्वन्धितता में फसी है और जिन्हे इनके बीच रहना और काम करना है उनसे पुछा भी नहीं जाता की तुम्हे क्या ठीक लगता है| ये लोकतंत्र है| एक बार वोट देने के बाद पांच साल तक मनमानी का लाइसेंस देने से ज्यादा कुछ नहीं है वर्तमान का लोकतंत्र| अन्ना आंदोलन में उठी आवाज राइट तो रिकॉल शायद कहीं खो गयी| उत्तर प्रदेश के 2.5 लाख लोकवाणी संचालकों से एक बार भी पुछा नहीं गया कि क्या ठीक रहेगा| केंद्र की सी एस सी से जुड़ना या फिर अलग से प्राइवेट कम्पनियो को बीच में बिठा कर दलाली बढ़ा देना| जिनके कंधो पर जनता तक जन सेवा केंद्रों की सेवा जनता तक पहुंचाने का काम था उनके कंधे और छील दिए गए| कभी पूछा नहीं गया कि दूर गाँव में बिना बिजली के कैसे केंद्र चलाते हो? सोलर प्लेट खरीदने के लिए एक ग्रामीण लोकवाणी संचालक ने गाँव के साहुकार से खेत का एक टुकड़ा गिरवी रखकर ब्याज में पैसे लिए थे| कमाई नहीं आई तो खेत चला गया| अखिलेश सरकार की योजनाओं को ग्रामीणों तक पहुंचाने वाला वो जन सेवा केंद्र संचालक खेत भी गवां बैठा| अब सरकार बदलने का इन्तजार नहीं करे तो क्या करे ?………