डॉ० युवराज से जानें क्या है एंडोस्कोपी, क्यों पड़ती है इसकी जरूरत?

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फर्रुखाबाद:(ब्यूरो)कई बार अंदरूनी रोग होने पर डॉक्टर आपको एंडोस्कोपी जांच (गुहांतदर्शन) करवाने की सलाह देते हैं। क्या आप जानते हैं एडोस्कोपी जांच क्या है और कैसे काम करती है?
एंडोस्कोपी जांच में शरीर में एक पतली नली डाली जाती है जिसके अगले हिस्से पर एंडोस्कोप कैमरा लगा होता है। ये कैमरा आपके शरीर के अंदरूनी अंगों की तस्वीर लेता है, जिसे सीधे मॉनीटर पर देखा जा सकता है। इसका अर्थ है कि एंडोस्कोपी जांच का मतलब है शरीर के अंदर देखना।
बढ़पुर स्थित जोगराज हास्पिटल के कैंसर सर्जन डॉ० युवराज सिंह से जेएनआई टीम नें बात की| डॉ० युवराज नें बताया कि उनके अस्पताल में बीते 2017 से एंडोस्कोपी जांच की सुबिधा उपलब्ध है| अब तक लगभग 2200 से अधिक मरीजों की एंडोस्कोपी की गयी है | जिसमे से 70 से अधिक मरीजों को एंडोस्कोपी जांच के द्वारा बायोप्सी की गयी|
2200 में से 500 मरीजों में मिली कैंसर की सम्भावना
डॉ० युवराज सिंह नें बताया कि कुल 2200 मरीजों की एंडोस्कोपी जांच करने में लगभग पांच सैकड़ा मरीजों के प्री कैंसर की सम्भावना दिखी| इसके बाद उनका इलाज किया गया|  उन्होंने बताया कि लम्बे समय तक एसिडिटी होनें पर उसमे कैंसर की सम्भावना बढ़ जाती है| इस लिए यदि काफी दिनों से गैस (एसिडिटी बन रही है तो एंडोस्कोपी जांच चिकित्सक की सलाह से जरुर कराना चाहिए|
कैसी तकनीक है एंडोस्कोपी
अगर आपके शरीर के अंदरूनी हिस्से में कोई समस्या है, तो पहले उसे लक्षणों के आधार पर पहचाना जाता था क्योंकि तब हम शरीर के अंदर की जांच नहीं कर सकते थे। मगर एंडोस्कोप तकनीक के मामले में काफी एडवांस है। इसकी सहायता से शरीर के अंदर पतली फाइबरयुक्त नली को पहुंचाकर कैमरे द्वारा अंदरूनी अंगों की जांच आसान हो गई। इस प्रक्रिया के दौरान किसी रिपोर्ट का भी इंतजार नहीं करना पड़ता है क्योंकि जांच के समय ही समस्या वाली जगह को सीधे स्क्रीन पर देखा जा सकता है। आजकल परफेक्ट फ्लेक्सिबल एंडोस्कोपी की मदद से न सिर्फ नलियों बल्कि किसी भी हिस्से की जांच आसान हो गई है।
कब पड़ती है एंडोस्कोपी जांच की जरूरत
जब शरीर के अंदर कोई परेशानी या संक्रमण होता है या मरीज में कोई ऐसे लक्षण दिखते हैं, जिन्हें ऊपर से देखकर डॉक्टर नहीं समझ पाते हैं, तो एंडोस्कोपी जांच के लिए कहते हैं। आमतौर पर निम्न बीमारियों में ये जांच की जाती है।
नांक समस्या की समस्या या साइनस के लक्षण, गले में छाले या दाने होने पर, अगर किसी को खाना-पानी निगलने में परेशानी है, ग्रास नली की समस्या, उल्टी के साथ खून आने पर, आंतों में सूजन या दर्द होने पर, कब्ज से ग्रसित रहने पर, पित्ताश की पथरी होने पर, पेट के अल्सर होने पर, गर्भाश्य की जांच के लिए, गर्भाशय में फाइब्राइड या रसौली होने पर, अग्नाश्य की समस्या में, पेशाब में खून आने पर, मल में खून आने पर, गम्भीर सर्जरी से पहले व कान के पर्दे के रोगों में एंडोस्कोपी जांच की जरूरत पड़ती है|
क्या एंडोस्कोपी से होता है कोई नुकसान
डॉ० युवराज सिंह ने जेएनआई बताया कि अगर आप किसी अच्छे चिकित्सक की देखरेख में एंडोस्कोपी करवाते हैं और अस्पताल में साफ-सफाई का ध्यान रखा जाता है, तो एंडोस्कोपी की जांच बहुत आसान और सुरक्षित है। कई बार जांच की प्रक्रिया के दौरान सामान्य उल्टी, पेट दर्द या चक्कर आने की समस्या हो सकती है, मगर वो बाद में ठीक हो जाती है। एंडोस्कोपी की जांच के आमतौर पर 1-2 दिन के आराम की सलाह दी जाती है यानी इसके तुरंत बाद काम नहीं करना चाहिए। कई बार जांच के दौरान रोग वाले अंग में संक्रमण हो सकता है, जिसके लिए डॉक्टर जांच के बाद एंटीबायोटिक दवाएं देते हैं। आमतौर पर एंडोस्कोपी के बाद कुछ समय तक तरल पदार्थों के सेवन की सलाह दी जाती है।
कैसे होती है एंडोस्कोपी जांच
एंडोस्कोपी की प्रक्रिया के दौरान शरीर के अंदर लचीले फाइबरयुक्त नली के द्वारा कैमरा पहुंचाया जाता है। इस काम में बहुत सावधानी बरती जाती है ताकि अंगों को कोई नुकसान न पहुंचे। मुंह के रास्ते से की गई एंडोस्कोपी में कई बार छेदनुमा रबड़ गार्ड लगा दिया जाता है, जिससे अंगों पर किसी तरह की रगड़ न लगे। इसे एंडोस्कोपी माउथ गार्ड कहते हैं। आमतौर पर जांच करने में 45 मिनट से एक घंटे का समय लग सकता है और अगर एंडोस्कोपी विधि से ऑपरेशन करना है, तब इसमें लगभग 2 घंटे लग सकते हैं। कई बार शरीर में नली जाने के समय घबराहट के कारण मरीज को उल्टी या बेहोशी हो जाती है। कई बार अंदरूनी अंगों के लिए डॉक्टर एनस्थीसिया भी देते हैं। नली पर लगा कैमरा अंदरूनी अंगों की तस्वीर सीधे कंप्यूटर स्क्रीन पर दिखाता है।
(प्रमोद द्विवेदी नगर प्रतिनिधि जेएनआई)