फर्रुखाबाद: राधाश्याम शक्ति मंदिर लोहाई रोड में चल रही कृष्ण कथा में प्रवचन करते हुए आचार्य सुरेन्द्रनाथ द्विवेदी ने कहा कि संसार में निवास करने वाला प्रत्येक जीव उस परम पिता परमात्मा का ही अंश है। जिस बजह से प्रत्येक आत्मा का परमात्मा से स्वाभाविक प्रेम है।
आचार्य डा0 सुरेन्द्र नाथ द्विवेदी ने श्रोताओं को कथा का रसपान कराते हुए कहा कि संसार का प्रत्येक जीव परमात्मा का अंश है सो प्रत्येक आत्मा का परमात्मा से स्वाभाविक प्रेम होता है। जन्म जन्मांतर से परमात्मा से बिछड़ा जीव जब तक प्रभु से एकाकार नहीं हो जाता तब तक उसके जीवन में सुख शांति और आनंद की वर्षा नहीं होती। उन्होंने भगवान कृष्ण के रासलीला का विस्तार से वर्णन करते हुए बताया कि शुद्ध जीवात्मा और परमात्मा का पूर्ण मिलन ही रास है। रासलीला में स्थूल शरीर का कोई प्रयोजन नहीं है। शरीर तो मलमूत्र और सप्त धातुओं को बनाने की मशीन है। इस शरीर का तो साधना में रहने वाले साधु संत भी स्पर्श नहीं करते, फिर जो योग योगेश्वर हैं वह श्रीकृष्ण इस शरीर के साथ रमण कैसे कर सकते हैं। रासलीला स्थूल शरीर के साथ नहीं, गोपियों के नित्य, चिन्मय, आनंदरूप के साथ सम्पन्न हुई है। क्योंकि ऐसा ही श्रीमद भागवत में लिखा है।
भगवान श्रीकृष्ण के वियोग में व्याकुल गोपियों के बारे में वर्णन करते हुए आचार्य सुरेन्द्रनाथ द्विवेदी ने कहा कि श्रीकृष्ण के वियोग अग्नि परीक्षा में गोपियों के सभी पाप भस्मभूत हो गये। श्रीकृष्ण विरह में वे मूर्छित होने लगीं। जिस गोपी को मूर्छा आती, श्रीकृष्ण उसके विरह को शांत करने के लिए धीरे से उसके कान में कहते कि मैं तुम्हें शरण पूर्णिमा की रात्रि में मिलूंगा तब तक धैर्य धारण करो। यह सुनकर गोपियां पुनः सचेत होकर कृष्ण मिलन की प्रतीक्षा करतीं हुईं सांसारिक कार्यों में व्यस्त हो जाती। उन्होंने कहा कि कृष्ण प्रेम में आनंदित रहना ही गोपियों की साधना का व्यवहारिक रूप है। इस तरह से आचार्य ने भगवान श्रीकृष्ण की विभिन्न कथाओं का श्रवण श्रोताओं करवाया।
इस अवसर पर रामचन्द्र जालान, रामकिशन सिगतिया, सावरमल अग्रवाल, विनय अग्रवाल, कृष्ण गोपाल जालान, प्रवीन सफ्फड़, गौरव अग्रवाल, अवनीश प्रताप आदि लोगों ने श्रीकृष्ण के दरबार में सेवक के रूप में कार्य किया।