फर्रुखाबाद: परिक्रमा सावधान! वोटों के सौदागर आ रहे हैं!

EDITORIALS

कंपिल से कमालगंज तक और शमशाबाद से मोहम्मदाबाद तक निकाय चुनाव की घोषणा होते ही जनसेवा के प्रति समर्पित महारथी पूरी तैयारी के साथ हाथ जोड़ते मिलाते, खींसे निपोरते सड़कों, गलियों, कूंचों की खाक छानने निकल पड़े हैं। जातियों के बंधन टूट गए हैं या तोड़े जा रहे हैं। कई प्रतिष्ठित राजनैतिक परिवारों की प्रतिष्ठा दांव पर है। पत्नियां नेताओं के लिए सर्वाधिक विश्वसनीय हैं, राजनीति के अखाड़े में। लालू की रावड़ी, अखिलेश की डिंपल की तर्ज पर विधायक की दमयंती और एम0एल0सी0 साहब की वत्सला राजनीति की शतरंज पर शह और मात का खेल खेलेंगी। अन्य अनेक महानुभाव की अपनी पत्नियों या माता श्री के नाम पर वोटों की जंग में आ सकते हैं। आज से नामांकन प्रारंभ हो गए।

आरक्षण तथा सपा, बसपा द्वारा किसी को पार्टी चुनाव चिन्हं न देने की घोषणा ने चुनावी खेल को और रोचक बना दिया है। भाजपा कांग्रेस की भूमिका सीमित हैं। परन्तु गरजेंगे खूब क्योंकि चुनाव चिन्हं का सहारा साथ होगा। वहीं 2012 के विधानसभा चुनाव और 2014 के प्रस्तावित लोकसभा चुनाव में अपने चुनाव चिन्हं के लिए प्राणों की बाजी लगा देने वाले सपा और बसपा के कार्यकर्ता नगर और बाजारों में अपनों से ही लड़ेंगे। जो जीतेगा वही सिकंदर। उसे ही पार्टी अपना लेगी। हर्रा लगे न फिटकरी रंग चोखा जाए। परन्तु कार्यकर्ताओं की इस जमीनी जंग में आपसी कटुता कितनी बढ़ेगी। इसकी चिन्ता हाईकमानों को नहीं है।

आदरणीय मतदाताओं! लेकिन आप मत चूकना। कौन मैदान में है। आप किसे वोट देंगे यह आप जाने। परन्तु हम आपको एक बात बता दें। यदि आप निष्पक्ष और निर्भीक होकर वोट डालेंगे। शत प्रतिशत मतदान करेंगे। तब फिर आपको सबसे अच्छा जन प्रतिनिधि मिलेगा। इसलिए कृपा करके चाहें जितनी गर्मी हो मतदान अवश्य करना।

वक्त-वक्त की बात है भइया………………..

चौक में मैकूलाल के घंटाघर का जीर्णोद्धार नगर पालिका के सौजन्य से हुआ। प्रस्तावित लोकार्पण पर विध्नसंतोषी लोगों ने खींचतान शुरू कर दी। सार्वजनिक जीवन जी रहे लोगों में सहनशीलता, संवेदनशीलता का दिन पर दिन अभाव होता जा रहा है। लोगों की जिद पर एक पत्थर इसलिए हटाया गया क्योंकि उस पर निवर्तमान अध्यक्ष का नाम था। दूसरा पत्थर मंत्री जी के नाम का लगना था। जमकर तैयारियां हुईं। परन्तु स्थानीय निकाय चुनाव की घोषणा ऐन उसी दिन हो गई। नतीजतन सारी तैयारियां धरी की धरी रह गईं।

अब जब भी लोकार्पण होगा नगर पालिका में निर्वाचित अध्यक्ष होगा। उसी का पत्थर होगा। पहिले के दोनो पत्थर अतीत की वस्तु बन सकते हैं। पत्थरों का मोह केबल बहिन जी को ही नहीं है। तरीका और शैली भले अलग हो। परन्तु पत्थरों का मोह हमारे माननीय कहे जाने वाले अधिकांश लोगों को है। लोकार्पण का पत्थर शिलान्यास का पत्थर जीर्णोद्धार का पत्थर और पता नही काहे के पत्थर। अमर होने की अदमनीय परन्तु हास्यास्पद कामना। क्षणिक सुख और बाद में पान की पीक पोस्टरों से सज जाने वाले उपेक्षा के शिकार पत्थर। यह तो वक्त-वक्त की बात है- जरा सी पी और वहक गए- कुछ ही लोग हैं ऐसे जो नशे में और सम्हल गए।

निकाय चुनावों की मतगणना तो सात जुलाई को है। देखना है पिछली बार के विनर रनर या किसी और के नाम का पत्थर, घंटाघर के लोकार्पण को समर्पित होता है। एक बिन मांगी सलाह- अच्छी लगे तो मान लेना। मैकूलाल का घंटाघर चौक ही नहीं शहर की शान है। लोकार्पण के पत्थर या उसके साथ के पत्थर पर समीप व अध्यक्षों और सदर सीट से विधायक रहे सभी माननीयों के नाम हों। तब आपको अच्छा लगेगा या बुरा। हमें अपनी सुविधा अनुसार अवश्य बताइयेगा।

हम करेंगे अपने मन की – हमारा क्या कर लोगे!

मन्नीगंज लिंजीगंज में जिला और पुलिस प्रशासन द्वारा जमाखोरों, मिलावटखोरों और कालाबाजारियों के विरुद्व की गई प्रभावी कार्यवाही ने जिले के माथे पर कलंक का बहुत बड़ा टीका लगा दिया है। इसकी भरपाई लंबे समय तक नहीं हो सकेगी। पैसे की प्यास लोगों की जान की कीमत पर। यह तो पाप की पराकाष्ठा है। लम्बे समय से जब यह गोरख धंधा चल रहा था। तब सम्बंधित सरकारी विभाग क्या कर रहे थे। इनका दोष व्यापारियों से कम नहीं है। इस कलंक कथा और पाप में यह सभी बराबर के साझीदार हैं। इन पर निष्पक्ष और निर्भीक होकर कड़ी से कड़ी कार्यवाही तो की ही जानी चाहिए। साथ ही सम्बंधित विभागों को थोड़े से लालच के चलते अपनी कुम्भकर्णी निद्रा छोड़कर जागरूकता परिचय देकर इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति न होने के पक्के और स्थायी प्रयास करने होंगे।

कलंक कथा को मिटाने में असमर्थ सपाई!

सपाई सत्ता में है। उत्साह है उमंग है। जो चाहेंगे वही कर डालेंगे ऐसा विश्वास है। परन्तु जिला पंचायत की कलंक कथा को मिटाने की हिम्मत नहीं है। परिस्थितियां देखकर यही लगता है। अवसरवादी माननीयों के चलते सपा स्पष्ट बहुमत में है। दो ब्लाक प्रमुख, जिला पंचायत सदस्य, दम्पत्तियों को अभयदान मिल चुका है। एक दम्पत्ति सजायतीय मंत्री की शरण और सहारे बसपाई से सपाई हो गए हैं। बसपा में रहकर विधानसभा चुनाव में सपा की मदद की। अब सपा में आकर अपनी कुर्सी बचायेंगे। दूसरे की पैरवी का प्रार्थनापत्र संस्तुति सपा हाई कमान तक पहुंच चुका है। उत्साही सजातियों को समझाया जा रहा है कि और लोगों को भी जोड़ो। केवल एक जाति से लोकसभा का चुनाव नहीं जीत पाओगे। अल्पमत होते हुए भी बसपाई अध्यक्ष बना रहे। तब फिर आश्चर्य की कोई बात नहीं। माननीयों का ह्रदय परिवर्तन सत्ता परिवर्तन के साथ ही होता है। बसपा तब बसपा सपा तब सपा। यहां सपा बसपा का मन चाहा घालमेल। देखना है बढ़पुर, मोहम्मदाबाद विकासखण्डों के ब्लाक प्रमुखों के विरुद्व लाए गए अविश्वास प्रस्तावों के फैसले के बाद सपाई क्या गुल खिलाते हैं या फिर चुपचाप बैठ जाते हैं।

चलते चलते………………..

एक ने एक से पूछा – भैया बताओ आजकल हो रहे फसादों की जड़ क्या है। दूसरे ने तपाक से जबाव दिया नेता पुलिस और वकील। पहले ने कहा यह तीनो न हों तब क्या होगा। दूसरे ने कहा तब होगा सच्चा राम राज्य। दूसरे ने समझने के अंदाज में कहा- दुरुस्त फरमाया आपने- राम राज्य में नेता पुलिस और वकीलों में से कोई नहीं था। यही तीनो सारे फसादों की जड़ हैं।

जय हिन्द!