फर्रुखाबाद परिक्रमा – तलवार की धार पर जिला पंचायत की अध्यक्षी, इज्जत बचा ले मौला

EDITORIALS FARRUKHABAD NEWS

वाह रे मौला, जब देते हो छप्पर फाड़कर देते हो। सपा ने बसपा के अविश्वास प्रस्ताव लाने के दो साल की समय सीमा वाले अध्यादेश को धता क्या बताया यारों की बाछें खिल गयीं। बांदा और कन्नौज से जो सिलसिला शुरू हुआ अब वह फर्रुखाबाद सहित पूरे प्रदेश में बसपा समर्थक जिला पंचायत अध्यक्षों और ब्लाक प्रमुखों की रवानगी पर ही जाकर थमेगा।

खुला खेल फरक्कावादी के लिए विख्यात इस जिले ने पिछले जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में जो कारनामा अंजाम दिया वह अपने आप में अभूतपूर्व है। पूरे उत्तर प्रदेश में बसपा की दबाव, धौंस, धमकी के बाद भी ऐसा नहीं हुआ जैसे परिणाम फर्रुखाबाद में देखने को मिले। हारने जीतने की बात बहुत दूर की है। यहां पर पार्टी प्रत्याशी तक ने कथित रूप से अपना वोट बेच दिया। कहने का मतलब यह है कि इस जिले में सपा प्रत्याशी को एक भी वोट नहीं मिला। पूरे सूबे  में जमकर थू-थू हुई।  डेढ़ महीने से पूरे जिले में अपना स्वागत सत्कार अभिनंदन करा रहे मंत्री महोदय को लेकर जाने क्या-क्या कहा गया। परन्तु बिगड़ा उनका कुछ भी नहीं। अब यह बात अलग है कि जिला पंचायत सदस्यों की थोक और दोहरी, खरीद विक्री के चलते फजीहत बहुत हुई। परन्तु बदले हुए हालात में अविश्वास प्रस्ताव का खेल शुरू होते ही नोटों की झमाझम बरसात शुरू हो जाएगी। रहा मंत्री जी जी के माथे पर लगा कलंक का टीका सो वह भी साफ हो जायेगा।

आने वाले दिनों में नई कीमती गाड़ियों, नोटों के बंडलों और गोवा जैसे पर्यटक स्थलों की पांच सितारा होटलों में सैर का सिलसिला प्रारंभ हो जाएगा। यह जानना समझना बडे़-बड़े धुरंधरों के लिए कठिन हो जाएगा कि कौन निर्दलीय, कांग्रेसी, सपाई, बसपाई है। भाजपा की इस खेल में न के बराबर उपस्थिति है। इसलिए वह  नैतिकता, चरित्र आदि आदि का ढोल और ज्यादा जोर से पीटेंगे।

अवसर वादियों और ढपोर शंखियों ने ऐलान कर दिया है कि जिला पंचायत अध्यक्ष व ब्लाक प्रमुखों की कुर्सी मंत्री जी के रहमो करम पर है। परन्तु वास्तविकता यह है कि सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा मंत्री जी की ही है। बसपा जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने का जो खेल उन्होंने पिछली बार किया था। अब उसके विरुद्व अविश्वास प्रस्ताव लाने और पास कराने में, पुरानी दोस्ती और लेनदेन की चर्चाओं के बीच वह कहां तक जा पायेंगे यही सबसे महत्वपूर्ण है। पार्टी से ज्यादा पुराने सम्बंधों और कथित एहसानों को महत्व दिया। तब फिर नोटों, प्रलोभनों की दावत अविश्वास प्रस्ताव पास ही नहीं होने देगीं पहिले पेंच यहीं पर फंसेगा। बसपा के दमखम पर जोर भले हो। परन्तु पुराना रिकार्ड यही बताता है कि यहां सपा और बसपा जब चाहें तब नूरा कुस्ती खेल लेती हैं।

मान लो अविश्वास प्रस्ताव अपने गुनाहों को साफ करने और पार्टी दबाव में पारित हो गया। तब फिर नए अध्यक्ष के लिए नाम तय करना मुश्किल हो जाएगा। तब जिसने अपना स्वयं का वोट भी अपने आपको नहीं दिया हो, फिर उस पुराने प्रत्याशी को दोहराना संभव नहीं होगा । भितरघात और विश्वासघात के कारण जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लाक प्रमुखों के चुनाव में हारे अनेक सूरमा तथा सपा की सरकार के चलते कुछ महत्वाकांक्षी लोग मैदान में आ जायें और नया इतिहास रच दें तब फिर इस पर आश्चर्य नहीं होगा। चलते-चलते हम फिर दोहराये देते हैं – जो मान जाए वह सपाई क्या, जो जलेवी न बनाए वह हलवाई क्या। किसे कितना मिलेगा, कितना खर्च होगा इस पर जोड़ घटाना दिन प्रतिदिन तेज होता जा रहा है। फिलहाल जिलापंचायत अध्यक्ष की गाड़ी हाथीखाने की ओर से गुजरना शुरू हो गयी है।

दिल के अरमा आंसुओं में बह गए!

विधानसभा के चुनाव परिणाम घोषित हुए दो माह हो गए। सपा की शानदार जीत ने गली मोहल्ले तक के कार्यकर्ताओं के अरमानों में पंख लगा दिये। कोई बार्ड सदस्यता और कोई चेयरमैन बनने के लिए लंगर लंगोट लेकर जुट गया। दुआ सलाम, पैंलगी, शादी-व्याह, मरी-मौत की हाजिरी में जर्बदस्त इजाफा हुआ। मंदिरों दरगाहों और क्षेत्र के असरदार लोगों से सुबह शाम मिलने जुलने का सिलसिला तेज हो गया।

यह जो अपनी बहन जी हैं न। इन्हें केवल और केवल वही चुनाव अच्छा लगता है जो उन्हें मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री की कुर्सी के नजदीक ले जाए। मुख्यमंत्री की कुर्सी गयी तत्काल दिल्ली आकर 2014 में प्रस्तावित लोकसभा चुनावों की तैयारी में जुट गयी। ऊपर से फरमान यही जारी हो गया कि उनकी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, स्थानीय निकाय चुनावों में भाग नहीं लेगी। सूबे भर का हजारों छोटे बड़े कार्यकर्ता मन मसोस कर रह गये। कहने सुनने का कोई सिलसिला यहां है ही नहीं।

बसपा के इस फैसले से सपाई बाग बाग हो गए। उन्हें भाजपा और कांग्रेस से किसी प्रकार का कोई डर भय नहीं लगता। थोड़ा बहुत बसपा के कैडर की सक्रियता खटकती है। बहन जी के फरमान के बाद यह डर भी जाता रहा। अपना-अपना चुनाव सजाने संवारने में सपाई लगे थे। परन्तु मुखिया के फरमान ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। अब कारण तो मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव जाने। परन्तु फरमान यही है कि सपा केवल महानगरों में मेयर का चुनाव पार्टी (सिंवल) पर लड़ेगी। नगर निकाय के बाकी पदों के चुनाव में पार्टी किसी को भी पार्टी सिंबल आवंटित नहीं करेगी।

मतलब साफ है जिसे चुनावी हिलहिली या लड़ास सवार हो वह निर्दलीय की हैसियत से चुनाव लड़कर अपनी औकात देख ले। ऊपर से यह भी फरमान दिया कि पार्टी किसी भी कार्यकर्ता को चुनाव लड़ने से नहीं रोकेगी। अब आने वाले दिनों में डा0 लोहिया और जनेश्वर मिश्रा के अनुयायियों, मुलायमसिंह यादव के दीवानों और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कै शैदाइयों का आपसी दंगल पूरे प्रदेश के गली मोहल्लों और छोटे बड़े कस्बों में देखेने को मिलेगा। अब चुनाव आते आते सपा और बसपा की तर्ज पर भाजपा और कांग्रेस क्या फैसला लेती है। नगर निकाय के चुनावों में यह देखना दिल चस्पी भरा होगा।

इन बातों से एक बात साफ जाहिर है कि बड़े नेताओं को अपने छोटे स्तर के कार्यकर्ताओं पर रंचमात्र भी भरोसा नहीं है। हर पार्टी बूथ स्तर पर अपने मजबूत संगठन की दुहाई देते नहीं थकती। परन्तु जब उसके अजमाने का मौका आता है। तब तरह-तरह के लंगड़े बहानों का सहारा लेकर पार्टी की आन वान शान और सिंवल की पहिचान के लिए लड़ने वालों के अंगूठा दिखा दिया जाता है। निष्ठा, आस्था और अनुशासन की दुहाई देकर अपने ही सदस्यों, सक्रिय सदस्यों पदाधिकारियों को आपस में ही लड़ने के लिए चुनाव मैदान में छोड़ दिया जाता है। भले ही इससे जिले स्तर के बड़े नेताओं की हैसियत बढ़ती हो। परन्तु कार्यकर्ता उत्साह अरमान और पार्टी के प्रति रुझान और लगाव में निश्चित रूप से कमी आती है। तिकड़ी नेता आपस में ही चुनाव लड़ने वाले अपने ही कार्यकर्ताओं के आपस में ही उलझाए रहते हैं। समाजवाद के नाम पर निचले स्तर से लोकतंत्र और चुनाव की इस प्रारंभिक पाठशाला में अराजकता का यह खेल किसी भी दृष्टि से उचित नहीं ठहराया जा सकता। सपा कार्यकर्ताओं से अच्छे तो बड़े नेताओं के दरबारी चमचे हैं। जिनकी बिना चुनाव के बल्ले बल्ले रहती है।

यह कैसा समाजवादी शासन, इंसानों से दूना कुत्तों को राशन
मतलब साफ है, तुम भी दुम हिलाओ और दूना राशन पाओ।

गेहूं खरीद में भी फेल हुए अखबारी इंतजाम

दृढ़ इच्छा शक्ति हो काम के प्रति जुनून हो। कुछ भी कठिन और असंभव नहीं है। परन्तु इसके विपरीत स्थिति में वही होगा जो बोर्ड की परीक्षाओं में पिछले वर्षों की तरह इस बार भी हुआ। जानकारों का यह कहना है कि वसूली इस बार बढ़ कर हुई। किसी भी जन प्रतिनिधि, सामाजिक संस्था शिक्षक संघों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। यही हाल लगातार दो वर्षों से चलायी जा रही एक मुश्त विद्युत बिल समाधान योजना का हुआ। न तो बिजली की चोरी रुकी और न ही विद्युत बिलों में सुधार हुआ।

किसानों को अच्छी दरों पर गेहूं विक्री। खरीद की व्यवस्था जबर्दस्त अखबारी इंतजामों और घोषणाओं के बावजूद पूरी तरह फ्लाप हो गई। इस योजना से गेहूं उत्पादकों को छोड़कर बांकी सभी को लाभ ही लाभ हुआ। किसान लुटा, पिटा, भटका, हैरान-परेशान हुआ। परन्तु अभी तीन महिने पहले गली गांव मुहल्लों में घूम-घूम कर वोट मांगने वालों को किसान की बदहाली पर रंचमात्र भी दया नहीं आयी। उन्हें अपने वंदन अभिनंदन, स्वागत समारोहों से फुरसत ही नहीं है। हमारी सभी योजनाओं में आम आदमी गरीब आदमी किसान मजदूर का जिक्र जमकर होता है। परन्तु उसकी बदहाली को दूर करने की बात गंभीरता से कोई नहीं सोचता।

किसान की गेहूं खरीद केन्द्रों, बिचौलियों, आढ़तियों दबंगों द्वारा खुली लूट हो रही है। क्रिश्चियन कालेज में किसान मेला पूरे ठाठ से चल रहा है। सब मौजूद हैं मंत्री अधिकारी नेता और वह सभी जो ऐसे आयोजनों की अनिवार्य बुराई है। नाम किसान का काम विज्ञापन के नए फंडे का। यह किसान मेला नहीं ब्रांडों का मेला जिसमें प्रायोजकों का अपना फंडा है। यहां किसान क्या करे-क्या खरीदे कैसे अपनी उपज बढ़ाये, कैसे उठे, कैसे बैठे। सरकारी कृषि सम्बंधी विभागों को बैठे ढाले काम मिल गया। अब गांव-गांव खेत-खेत जाने की क्या जरूरत।

परन्तु इस इन्द्र धनुषी विज्ञापनी फंडे में किसान को उसकी फसल का बाजिव मूल्य कैसे मिले। इस पर तीन दिन में किसी को बनाने समझाने के लिए तीन मिनट नहीं मिले।

सब कुछ है अपने देश में रोटी नहीं तो क्या,
वादा ही लपेट लो गर लंगोटी नहीं तो क्या!

साहब हम क्या करें 70 प्रतिशत कमीशन देना पड़ता है!

बाहर की दवा लिखोगे कड़ी कार्यवाही होगी। एफआईआर तक हो सकती है। नए जिलाधिकारी लोहिया अस्पताल की व्यव्सथा सुधारने में पूरी दिलचस्पी ले रहे हैं। परन्तु मर्ज अस्पताल से भी पुराना है। लोहिया अस्पताल में आने वाले मरीज और उसके तीमारदारों को चक्रव्यूह के सात दरबाजों से गुजरने के बाद भी राहत मिलेगी, निश्चित रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता। यह हालत तब है जब कि स्वास्थ्य विभाग का कर्ताधर्ता मंत्री इसी विधान सभा क्षेत्र से विधायक था। यहां भी ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा मिशन में करोड़ों के घोटाले हुए हैं।

लोहिया अस्पताल से डाक्टर के हाथ का दवा का परचा लेकर एक सज्जन फर्रुखाबाद फतेहगढ़ के लगभग सभी मेडिकल स्टोरों पर हो आए। डाक्टर की खिली दवा कहीं नहीं मिली। परेशान थे पूछताछ की पता लगा कि यह दवा केवल तीन दुकानों पर ही मिलेगी। मिलती जुलती दवाओं से कई गुनी ज्यादा कीमत। पूछताछ की तब पता लगा दवा लिखने वाले को 60 से 70 प्रतिशत तक कमीशन देना पड़ता है। यह तो एक फन्डा है। हर जगह खेल है, किसी से कोई हमदर्दी नहीं। डाक्टर, मास्टर और वकील यह तीनो सेवा के कार्य माने जाते हैं। अब इनमें सबसे आगे कौन है। अपने अनुभव के आधार पर हमें लिख भेजिए। तब फिर हम कुछ  और खुलासा करेंगे।

मुंशी, मियां और खबरीलाल गए हड़ताल पर

मई दिवस – दुनिया के मजदूरों एक हो- मजदूर हितों के लिए शिकागो में अपनी कुर्बानी देने वालों तुम्हारे सपने सच करके रहेंगे। जगह-जगह तमाम कार्यक्रम मजदूरों के हितों का ठेका लिए कुछ बुद्धिजीवी, जिन्हें खुली सामूहिक नकल के लिए जबर्दस्ती वसूली करते रंचमात्र भी शर्म नहीं आती। बाहें फड़का फड़का कर मजदूरों के हितों की दुहाई दे रहे हैं। मई दिवस का ठेका कामरेडों ने ले रखा है। बाकी किसी भी राजनैतिक दल सामाजिक संस्थाओं को मई दिवस मजदूरों से क्या लेना देना। यह लड़ाई बहुत छोटी है। वह तो बड़ी लड़ाई के सेनापति हैं।

इसी आपाधापी के बीच मुंशी, मियां और खबरीलाल हाथ में बैनर लिए त्रिपौलिया चौक पर आकर डट गए। बैनर पर लिखा था- दुनिया वालों एक हो- शोषण दमन, अत्याचार के खिलाफ एक हो। अपने इसी लक्ष्य के लिए हम एक माह की हड़ताल पर जा रहे हैं। किसी ने कहा अरे भाई बताओगे भी बात क्या है। तुम तो सभी को जगाते हो। तुम्हें हड़ताल पर जाने की क्या जरूरत पड़ गई।

मुंशी मियां और खबरीलाल बम के गोले की तरह फट पड़े। जगाते क्या खाक हैं। भलाई बुराई हम लें। झूठ के ठेकेदार सारी मलाई स्वयं उतार जायें और डकार भी न लें। अरे भाई कुछ बताओ भी आखिर माजरा क्या है। तीनो कोरस स्वर में बोले एक बात हो तो बतायें। मजदूरों के हितों की दुहाई देते हो। सादगी ईमानदारी से नफरत करते हो। चार घंटे के लिए गरीबों किसानों मजदूरों के जले पर नमक छिड़कने के लिए चार्टेड प्लेन से आते हो। नाना के निवास का इस्टाइल न बदलने की नसीहत मजदूरों को देकर चले जाते हो। सारी नसीहतें हमारे लिए ही हैं तुम्हारे अपने लिए कुछ भी नहीं। नाना की सादगी और ईमानदारी का स्टाइल स्वयं अपनाने की कोशिश क्यों नहीं करते।

अब पूरा फर्रुखाबाद समझ गया है कि तुम सुधर नहीं सकते। जनता तुम्हें तुम्हारी मैडम के माध्यम से चेतावनी दे चुकी है। परन्तु तुम्हारा सुधरना नामुमकिन लगता है। इसलिए हम तीनों तुम्हें आखिरी चेतावनी देते हैं। प्रायोजित खबरों से जिले के लोगों को ठगने की कोशिश बंद करो। अन्ना हजारे को कोसने से पहले अन्ना की सादगी और ईमानदारी को अपनाओ।मुंशी मियां और खबरीलाल बोले ही जा रहे थे। तुम्हारे चंगूमंगू चमचे जो कुछ कहें हम तुम्हारे दुश्मन नहीं हैं। हमने तुम्हारे नाना को देखा है उनका इस्टाइल भी देखा है। उनके इस्टाइल को अपनाओ सबके लाड़ले दुलारे बन जाओगे। केवल उनके आवास के इस्टाइल को बनाए रखने से कुछ नहीं होता। उनका स्टाइल ऑफ लिविंग अपनाओ-
बड़े वंश से क्या होता है, खोटे हों यदि काम,
   नर का गुण  चरित्र है, नहीं रूप, कुल,ग्राम!

तीनो यह कहते हुए चल दिये! सुधर जाओ नहीं तो पहली जून से जनता के सहयोग से तुम्हें सुधारने का अहिंसक शान्तिप्रिय अभियान हम शुरू कर देंगे। जय हिन्द!

सतीश दीक्षित