3 बच्चों के बाद करायी थी नसबंदी
पहले से 15 मामले रजिस्टर में दर्ज हैं
फर्रुखाबाद: डाक्टर नसबंदी जैसे महत्वपूर्ण आपरेशन के लिए भी कितनी लापरवाही बरतते हैं इसका सबूत गाँधी गाँव की आशा है। आशा के 3 बच्चे हैं। आशा ने 2008 में नसबंदी करा ली थी। आशा का पति राधे कहता था कि परिवार सीमित हो जायेगा तो वह सीमित आमदनी से घर का खर्च चला सकेगा। लेकिन डाक्टरों कि लापरवाही ने उसके अरमानों पर पानी फेर दिया। नसबंदी करने के बावजूद गूंगी-बहरी आशा ने एक बेटी को जन्म दे दिया। अब आशा का पति राधे कठेरिया अपनी समस्या लेकर मारा- मारा घूम रहा है और कोई उसकी सुनने वाला नहीं है।
सरकार परिवार कल्याण कार्यक्रम पर करोड़ों रुपये खर्च करती है। परिवार सीमित रखने का सुरक्षित उपाए नसबंदी है। नसबंदी के फायेदे भी गिनाये जाते हैं। लेकिन नसबंदी आपरेशन में डाक्टरों की कोई रूचि नहीं रहती। अधिकांश नसबंदी करने वाले लोग गरीब तबके के लोग होते हैं। उनसे कुछ मिलना- जुलना होता नहीं है। ऐसे में डाक्टर चालू काम कर चलते बनते हैं। ऐसा ही आशा के साथ हुआ। आशा की लाचारी यह है कि वह न तो बोल सकती है और न सुन सकती है। आँखों से भी कम दीखता है। पति राधे मेहनत मजदूरी कर पेट पालता है। राधे ने पत्नी की नसबंदी करायी थी कि सीमित आमदनी में परिवार का बोझ उठा सके। लेकिन डाक्टरों की लापरवाही से उसकी पत्नी ने बेटी को जन्म दे दिया। अब तो राधे कि परेशानी और बाद गयी है।
फर्रुखाबाद में नसबंदी के बाद बच्चा होने का यह पहला मामला नहीं है। पहले से ऐसे 15 मामले रजिस्टर में दर्ज हैं। अब सी एम् ओ कह रहे हैं कि दूरबीन विधि से नसबंदी में २ प्रतिशत नसबंदी फेल होने की सम्भावना रहती है। लेकिन इससे आशा की समस्या का हल कैसे हो। एक निजी बीमा कम्पनी नसबंदी फेल होने पर 30 हज़ार तक मुआबजा देती है। इसलिए नसबंदी फेल होने पर महकमा मुआबजे का फार्म भरवाकर पीड़ित का मुह बंद कर देता है। पर मुआबजा लेने में पसीने छूट जाते हैं। सीएमओ डा. कमलेश कुमार ने बताया कि दूरबीन विधि से नसबंदी में 2 प्रतिशत मामलों में नसबंदी फेल होने की सम्भावना रहती है।