आपके बच्चे का भविष्य बनाने के लिए गुरुजी उसे क्या और कैसे पढ़ा रहे हैं? यह सब सिर्फ उनकी मर्जी पर ही नहीं होगा। बच्चों के माता-पिता भी उसमें दखल दे सकेंगे। देखेंगे कि पढ़ाई के कायदे-कानून क्या हैं? खास तौर पर वे यह जांचेंगे कि पूरे साल बच्चों का समग्र मूल्यांकन कैसे हो रहा है। इस काम के लिए खुद केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ही वालंटियर के रूप में ‘पैरेंट एडवोकेट’ नाम से एक राष्ट्रीय नेटवर्क खड़ा कर रहा है।
सूत्रों के मुताबिक सीबीएसई की पहल पर ‘पैरेंट एडवोकेट’ ही देश भर में योग्य अभिभावकों का एक ऐसा समूह तैयार करेगा, जो अपने-अपने राज्य में बच्चों के सतत-समग्र मूल्यांकन की निगरानी करेगा। उन्हें इस निगरानी की ट्रेनिंग सीबीएसई देगा। इस समूह को खड़ा करने के लिए सीबीएसई ने बच्चों की पढ़ाई में योगदान देने वाले अभिभावकों से ऑनलाइन आवेदन मांगे हैं। शिक्षा के क्षेत्र में स्वयंसेवक की भूमिका वाले इन अभिभावकों में उन्हें तरजीह दी जाएगी, जिन्हें अंग्रेजी व हिंदी भाषा का न सिर्फ अच्छा ज्ञान हो, बल्कि उनमें दूसरों को समझने-समझाने की बेहतरीन कूबत भी हो।
सीबीएसई ने आवदेकों के लिए एक प्रारूप भी जारी किया है। जिसमें उन्हें सूचना संचार तकनीक, विचारों के आदान-प्रदान में भाषा पर पकड़, चुनौतियों से जूझने का जच्बा और वे किन क्षेत्रों में इस पर काम करना चाहेंगे, की जानकारी देना है। ऐसे स्वयंसेवकों को दूसरे अभिभावकों को प्रेरित करने के लिए कम से कम तीन तरीकों के बारे में भी आवेदन में बताना होगा।
सीबीएसई के चेयरमैन विनीत जोशी कहते हैं, ‘सारे आवेदन आने के बाद उनमें से काबिल अभिभावकों का चयन कर सीबीएसई उनसे खुद संपर्क साधेगा। बाद में उन्हें प्रशिक्षित करेगा और स्कूली पढ़ाई में बतौर वालंटियर [स्वयंसेवक] उनकी मदद लेगा।’ उन्होंने कहा कि शिक्षा जैसे मामले में सिर्फ सरकारी अधिकारी ही अकेले सारी निगरानी नहीं रख सकता। नई पहल से बोर्ड को अभिभावकों के और करीब ले जाएगी।
दरअसल, सीबीएसई को भी यह खयाल यूं नहीं आया। दसवीं बोर्ड परीक्षा की अनिवार्यता को खत्म करने के साथ स्कूली पढ़ाई में शुरू हुए सतत समग्र मूल्याकंन [सीसीई] के तजुबरें ने इस नई सोच को जन्म दिया। बोर्ड खत्म करने के पीछे मंशा बच्चों पर बोर्ड परीक्षा का तनाव को खत्म करना और सभी पहलुओं पर अलग-अलग तरीके से पूरे साल उनका मूल्याकंन करना था, लेकिन वैसा हुआ नहीं। सीबीएसई के पास भी शिकायतों का अंबार लगा। तह में जाने पर पता चला कि कई मामलों में शिक्षकों ने सीसीई को खुद ठीक से नहीं समझा।
मसलन, सीसीई के तहत यह जरूरी नहीं कि सभी बच्चों को व्यक्तिगत प्रोजेक्ट दिए जाएं। जो बच्चे कोई प्रोजेक्ट अकेले नहीं कर सकते, उन्हें कुछ बच्चों की एक टीम को दिया जा सकता है। उस टीम में भी किसी बच्चे की समझ और प्रतिभा का व्यक्तिगत आकलन किया जा सकता है। इसी तरह शिक्षक एक सवाल दे। हल करने के बाद बच्चे आपस में ही सही जवाब चेक सकते हैं। इससे शिक्षक का भी बोझ कम हो सकता है।