ज्येष्ठ शुक्ला दशमी को गंगा दशहरा मनाया जाता है। गंगा का अवतरण पृथ्वी पर इस दिन हुआ था। यदि इस तिथि को सोमवार हो और हस्त नक्षत्र हो तो यह तिथि सब पापों का हरण करने वाली होती है। यह दशमी संवत् का मुख कही जाती है।
इस दिन स्नान और दान का विशेष महत्व होता है। यथासंभव स्नान गंगा में करना चाहिए अन्यथा आसपास किसी पवित्र नदी या सरोवर में करना चाहिए। गंगा स्नान से दस तरह के पाप (3 कायिक, 4 वाचिक तथा 3 मानसिक) नष्ट होते हैं इसलिए इसे गंगा दशहरा कहा गया है।
जहां भगीरथ के घोर तप से गंगा स्वर्ग से जमीन पर अवतरित होकर संसार के लिए सुखदायी बनी। उसी तरह ब्रह्मदेव के प्रयासों से गायत्री शक्ति जगत के लिए कल्याणकारी बनी। विश्वमित्र द्वारा तप से पाई यही गायत्री महाशक्ति विष्णु अवतार श्री राम के माध्यम से जगत के लिए संकटमोचक बनी।
मां गायत्री के हाथों में गंगाजल भरे कमण्डल के ही दर्शन होते हैं। इसलिए गायत्री साधना के लिए गंगा तट का भी बहुत महत्व माना गया है। सार यही है कि गंगा स्नान से पाई पवित्रता और पाप नाश से ही उपासक में गायत्री की शक्ति का अवतरण होता है और उसका मन पावन और कलहमुक्त होकर ईश्वरीय शक्ति के अनुभव या साक्षात्कार की दशा में पहुंच जाता है। जिसमें उपासक दिव्य और चमत्कारिक व्यक्तित्व और सिद्धियों का स्वामी बन सकता है।