फर्रुखाबाद: चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के चुनाव नतीजों के आधार पर क्या साल भर बाद यूपी में होने वाले चुनाव को लेकर कोई भविष्यवाणी की जा सकती है? इसका जवाब लोग अपनी-अपनी तरफ से देने की कोशिश में लगे हुए हैं। बदलाव की बयार साफ़ नज़र आ रही है। इन नतीजों ने एक साल बाद यूपी में होने वाले चुनावों को लेकर फ़िलहाल सत्तारूढ़ दल बसपा की नींद उड़ा दी है।
असम -126 |
|
Cong |
73 |
AGP |
11 |
BJP |
5 |
Others |
37 |
पश्चिम बंगाल -294 |
|
TMC |
225 |
Left |
63 |
Other |
6 |
तमिलनाडु -234 |
|
ADMK |
202 |
DMK |
32 |
केरल -140 |
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Cong+ |
72 |
Left |
68 |
पांडीचेरी – 30 |
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NRC+ |
20 |
Cong+ |
9 |
Others |
1 |
बंगाल और तमिलनाडु में सत्ताधारी पार्टियों के खिलाफ जनता में जबर्दस्त आक्रोश था। केरल में वृद्ध अच्युतानंदन को वहां की जनता रिपीट नहीं करना चाहती थी और राहुल को अमूल बेबी कहे जाने का जनता ने बुरा माना। पश्चिम बंगाल में साफ साफ दिख रहा था कि जनता ममता के साथ है तमिलनाडु में भी तय था कि अबकी बारी जयललिता की है। असम में लगातार तीसरी बार कांग्रेस का सत्ता में आना उपरोक्त दो राज्यों के नतीजों से अलग परिघटना है। केरल में भी कांग्रेस भारी पड़ी है। केन्द्र शासित प्रदेश पांडीचेरी में एनआरसी आगे रही है।
कहते हैं जब जनता करवट बदलती है तो बड़े-बड़े सूरमा चारों खाने चित्त जमीन पर छटपटाते नजर आते हैं। यह परिदृश्य में यूपी में घटित होगी? इस सवाल को लेकर यूपी में भी कयासों का दौर शुरू हो गया है। क्योंकि मुख्यमंत्री मायावती नौकरशाहों के बल पर जैसा बर्ताव प्रदेश की आम जनता के साथ कर रही हैं, उससे जनता की मानसिकता में नाराजगी आती जा रही है। उत्पीड़नों, उगाहियों से त्रस्त, पुलिस वालों से पस्त यूपी की जनता अगर कहीं शिकायत भी करती है तो उसकी तनिक सुनवाई नहीं होती। जिला मुख्यालय से लेकर लखनऊ तक बड़े, अफसरों-नेताओं के यहां तक कहीं सुनवाई नहीं होती। यहां तक कि भी वह जाता है तो दर दर भटक कर निराश होकर लौट आता है। दलित वोट बैंक में भी अब फूट पड़ चुकी है और कई उप जातियों के लोग अपनी उपेक्षा से बेहद नाराज हैं।
ऐसे में अगर कहीं समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की अंदरखाने एकजुटता हो गई, जिसकी संभावना काफी दिख रही है, तो संभव है कि मायावती का भी यूपी से सूपड़ा साफ हो जाए परिवारवाद के मोह में फंसे मुलायम और अमर सिंहों को बढ़ावा देकर अपनी काफी जमीन खो देने वाले मुलायम को कांग्रेसी की बैसाखी की सख्त जरूरत है। और कांग्रेस यूपी में किसी भी तरह मायावती को बेदखल कर पावर में आना चाहती है पूर्वी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के साथ कई वामपंथी नेताओं ने एक अलग फ्रंट बनाकर काम शुरू कर दिया है। राहुल का युवा चेहरा भी कांग्रेस को काफी फायदा पहुंचाएगा। वहीं, सपा का वोटबैंक और सत्ता से लगातार रही दूरी के कारण जनता के मन में साफ्ट कार्नर डेवलप होने लगा है। भाजपा के साथ सांप्रदायिकता का ठप्पा किसी गठबंधन के आड़े आ जाता है। ऐसी हालत में कह सकते हैं कि यूपी में साल भर बाद मायावती और उनकी पार्टी को झटका लग सकता है।