नगरपालिका के चीरहरण के लिए संघर्ष करते जनसेवक-2

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फर्रुखाबाद की नगरपालिका के पास दो साल से कोई जिन्दा फोन तक नहीं है जनसमस्या सुनने के लिए| फतेहगढ़ के बाशिंदों को कम से कम सतुआ बाँध कर नगर के दूसरे छोर टाउन हाल 8 किलोमीटर जाना पड़ता है| सतुआ इसलिए कि पता नहीं जनसमस्या सुनने वाला कब और कहाँ मिले, मिले भी या न मिले और सबसे बड़ा सवाल कौन मिले?|

फर्रुखाबाद नगरपालिका के सम्बन्ध में आम जनता का सामान्य ज्ञान बढाने के लिए शुरू इस कालम के दूसरे अंक में हमारा प्रयास है कि तस्वीरो के माध्यम से जनता को फर्रुखाबाद की नगरपालिका के इतिहास और भूगोल से परिचित करा दिया जाए| इसके लिए जेएनआई की टीम जब नगरपालिका फर्रुखाबाद कार्यालय पहुची तो और विभिन्न कोनो की तस्वीरे लेनी शुरू की तो चंद मौजूद द्फ्तरियो ने अपनी अपनी कुर्सी पर बैठना ही सही समझा| मगर क्या करते दफ्तरी कम पद गए और कुर्सिया भर नहीं पायी| एक बात और जो बेहद चौकाने वाली लगी- बात तो सबने की मगर अपना नाम बताने और तस्वीरो को न छापने की गुहार लगभग हर कर्मचारी ने ये टिपण्णी करते हुए की-“भैया क्यूँ नौकरी लोगे- चेयरमेन (मनोज अग्रवाल) साहब नाराज हो जायेंगे| काफी देर तो समझ नहीं आया क्यूंकि वर्तमान चेयरमेन मनोज अग्रवाल तो बिलकुल भी दबंग किस्म के व्यक्ति नहीं है| ऐसे सरल और मिलनसार व्यक्ति के बारे में ये भय क्यूँ? इस बात पर कोई जबाब अपन के दिमाग ने नहीं दिया| हो सकता है कि नगरपालिका अध्यक्ष की कुर्सी में ही कोई खास बात हो| मिलते और बैठते ही कुछ हो जाता हो वैसे भी मनोज जी के पास इन दिनों ट्रिपल पावर है, दो पद और तीसरी उनकी पार्टी की सरकार | खैर छोड़ो राजनीति में नहीं पड़ते है नगरपालिका फर्रुखाबाद की सैर करते है कुछ तस्वीरो और टिप्पणियो के माध्यम से|

थोडा रुक जाए ये पूरा मसाला कल यानि रविवार 8 मई 2011 को प्रकाशित होगा|