दूषित पानी पिलाने में सभासदों की भी जबाबदेही थी

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गत वर्ष यानि मई 2011 में प्रकाशित खबरे नगरपालिका की हकीकत बयान कर रही थी| नेता ये सोचता है कि जो वो करता है उसे जनता भूल जाती है| शराब, जाति, धर्म और चंद विकास (भ्रष्टाचार सहित) से उसे बेबकूफ बनाया जा सकता है| मगर अब दौर बदल रहा है| आखिर कब तक जनता खुद को लुटती देखती रहेगी| पांच साल जो जनता की मर्जी पर चुने जाते है| वे पांच साल तक उस सत्ता का दुरूपयोग करते है| चेयरमेन के घर पर नगरपालिका चलती थी| एक फोन तक सार्वजनिक नहीं था जिस पर जनता शिकायत दर्ज कराती| चेयरमेन, सभासदों और सरकारी नौकरों ने जनता के पैसे से अपने नाम के पत्थर पूरे शहर में लगवा दिए| अरे इतना ही शौक था तो अपनी अंटी से खर्च करके लगवाते| पांच साल बाद मौका आया है| नेताओ से इनका एजेंडा पूछो| पूछो की शहर की जीतने के बाद कैसे दशा करोगे| न प्लान है न अजेंडा| बीएस रता रटाया एक वाक्य- विकास किया था, विकास करेंगे| सही कह रहे है| विकास जरुर हुआ मगर नगरपालिका की गलिओं में लगने वाली ईंटो के कारखाने के मालिक सुरेश बाथम का नहीं| वो तो बेचारा मोहरा था| वो आज भी वहीँ का वहीँ है उसके नाम का पैसा कैसे रास्तो से चल कर कहाँ गया- इसका हिसाब भी हम जनता तक पहुचाएंगे| कैसे हुई थी टैक्सों की चोरी मय सबूतों के सब सुनवायेंगे| अब हिसाब जनता लेगी|
पढ़िये पिछले साल की एक खबर इन्ही दिनों की-

फर्रुखाबाद की नगरपालिका में रहने वाले वाशिंदों के लिए दो खबरे हैं, एक अच्छी और एक बुरी| बुरी खबर पढ़ने से पहले अच्छी खबर पढ़िये और बाद में बुरी खबर क्यंकि बाद वाली बात ताजी होगी और देर तक याद रहेगी| अच्छी खबर ये है कि नगरपालिका के चुनाव में अब एक महीने से कम वक़्त लगेगा| पांच साल पहले हुए चुनाव में जिस शख्स को नगरपालिका में चेयरमेन चुना था उसके कार्यो की समीक्षा करने का वक़्त है| उस वक़्त जो आपसे वादे किये गए थे, जो गली गली चरण वंदना उनके द्वारा वोट के लिए की गयी थी क्या वो वादे पूरे हुए| नेता तो चुनाव जीत पांच साल गद्दी पर बैठ सरकारी संसाधनो का सदुपयोग एवं दुरूपयोग (अपनी अपनी निगाह में) कर मौज मरता रहा मगर बेचारी जनता को तो ये मौका पांच साल में एक बार मिलता है कि उसे उसके किये गए कृत्यों का इनाम दे| इसलिए ये अच्छी खबर है|

बुरी खबर ये है कि फर्रुखाबाद की जनता पिछले कई साल से नगरपालिका का दूषित (बगैर क्लोरीन का) जल पी रही थी यानि जिन्दगी को अनजाने में रत्ती रत्ती कम कर रही थी| ये बात वैसे तो सार्वजनिक व् प्रमाणिक थी मगर हिंदुस्तान में बगैर लिखा पढ़ी के कोई बात साबित नहीं होती तो इस बात पर अब सरकारी मोहर लग गयी है| जिला स्वास्थ्य अधिकारी ने नगरपालिका के पानी सप्लाई में लम्बे समय से क्लोरीन न मिलाने की रिपोर्ट जिलाधिकारी को भेज दी है जिसे जिलाधिकारी ने अध्ययन कर लिया है| इसके बाद क्या हुआ अभी खबर आनी बाकी है| होगा क्या अधिक से अधिक सरकारी कर्मचारियो और अधिकारिओं के खिलाफ शासन को लिखा जायेगा| कारवाही होगी या नहीं इस बात की कोई गारंटी नहीं है क्यूंकि ये उत्तर प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था है|

मगर सवाल यानि नहीं रुकता है| क्या जनता की अनदेखी के लिए अकेले चेयरमेन जिम्मेदार थे, शायद नहीं| नगरपालिका के चुने हुए वे सभासद भी बराबर के जिम्मेदार थे जिनके समर्थन व् बहुमत से नगरपालिका के सभी बजट पास हुए| इनमे से कई सभासद ठेकेदारी भी करते रहे| अध्यक्ष के कैम्प कार्यालयों में नियमित रूप से हाजिरी लगाते रहे| ऐसे हालात में पूरे पांच साल तक इन सभासदों ने पानी में क्लोरीन मिलाने की बात क्यूँ नहीं उठाई| क्या ये सभासद जनता ने इसलिए चुने थे कि वे सिर्फ ठेकेदारी करते रहे, कोटेदारो से माल बटोरते रहे, सरकारी स्कूल में मिड डे मील बनाकर खिलाने वाले एनजीओ की फर्जी रिपोर्ट पर दस्खत करने के एवज में पैसे वसूले और उनके खुद के घरो के आगे रोज सफाई हो जाये और पडोसी के दरवाजे पर कूड़ा पड़ा रहे|

वक़्त आ गया है सवाल पूछने का-
पांच साल तक सभासद महोदय सिर्फ नेताजी कहलाने के लिए चुने गए थे क्या| क्या सभासदों को व्यवस्था का विरोध नहीं करना चाहिए था| अगर कोई सभासद ये कहता है कि बहुत कहा तो पूछिए उससे अविश्वास प्रस्ताव लाकर पालिका अध्यक्ष को गद्दी से हटाने के लिए उन्होंने क्या किया| पूछिए उनसे ऐसे अक्षम और बेकार की नेतागिरी करने के लिए उन्हें दुबारा क्यूँ चुने?